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ऑनलाइन आधारित अर्थव्यवस्था की व्यावहारिकता

(मुख्य परीक्षा: सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र- 3 : भारतीय अर्थव्यवस्था तथा योजना, विकास तथा रोज़गार संबंधी मुद्दे)

संदर्भ

कोरोना महामारी ने वैश्विक स्तर पर कार्य करने के तरीकों और पद्धतियों में काफी परिवर्तन कर दिया है। इससे कार्य-पद्धतियों में कुछ परिवर्तन आने के साथ-साथ ‘घर से कार्य’ (Work From Home) करने की संस्कृति का तेज़ी से विकास हुआ है। हालाँकि, तकनीकी ज्ञान की कमी और तकनीकी सुविधाओं तक पहुँच के अभाव से नई प्रकार की समस्याएँ उत्पन्न हो रही हैं।

घर से कार्य : स्वास्थ्य आधारित और आर्थिक महत्त्व

  • महामारी के कारण दुनिया भर में लोगों को आर्थिक समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है लेकिन घर से कार्य करने का विकल्प होने के चलते कई लोग आर्थिक रूप से अपेक्षाकृत अधिक सुरक्षित महसूस कर रहे है।
  • ऐसे लोग जिनको नौकरी के लिये कार्यस्थल पर जाने या ग्राहकों के साथ निकट संपर्क की आवश्यकता होती है उनके लिये यह समय औसत रूप से अधिक कठिन है। इन लोगों के वेतन में कटौती होने या आजीविका खोने की संभावना अधिक है।
  • इसके अतिरिक्त, जिन कर्मचारियों को कार्यस्थलों पर जाना पड़ रहा है, उनको तुलनात्मक रूप से अधिक स्वास्थ्य संबंधी जोखिमों का सामना करना पड़ रहा है। जबकि जो कर्मचारी ऑनलाइन कार्य करने में सक्षम है, उनको स्वास्थ्य संबंधी जोखिम कम है।

घर से कार्य की स्थिति

  • कार्य की प्रकृति और विशेष रूप से लचीले ढंग से घर से कार्य करने की क्षमता व आजादी श्रम बाजार की अपेक्षा अतिरिक्त सुविधाएँ तथा सहूलियत प्रदान करती है। इस बीच, भारतीय अर्थव्यवस्था निगरानी केंद्र के अनुसार, अप्रैल में 7.35 मिलियन भारतीयों को नौकरी गँवानी पड़ी है।
  • अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन के तीन अर्थशास्त्रियों के एक अनुमान के अनुसार, वर्ष 2020 की दूसरी तिमाही में लगभग 557 मिलियन कर्मचारियों ने घर से काम किया है, जो 3.2 बिलियन की कुल वैश्विक श्रमबल का 17.4% है।
  • इसके लिये 31 देशों के घरेलू और श्रमबल सर्वेक्षण का प्रयोग किया गया। इन व्यापक निष्कर्षों में एक महत्त्वपूर्ण परिणाम यह है कि कुल वैश्विक कार्यबल के पाँचवें हिस्से से भी कम कर्मचारी घर से कार्य कर सकते है।

अर्थव्यवस्था और कार्य की प्रकृति

  • किसी अर्थव्यवस्था में काम की प्रकृति और उसकी मुख्य संरचनात्मक विशेषताओं पर बहुत कुछ निर्भर करता है। कई अध्ययनों से पता चलता है कि उन्नत अर्थव्यवस्थाओं के श्रमिक भारत जैसी उभरती अर्थव्यवस्थाओं की तुलना में घर से काम करने की बेहतर स्थिति में हैं। यद्यपि विशिष्ट क्षेत्रों से संबंधित अनुमान कभी-कभी भिन्न हो सकते हैं परंतु अमेरिका, जर्मनी और सिंगापुर जैसी उन्नत अर्थव्यवस्थाओं के 40% श्रमिक घर से कार्य कर सकने में सक्षम हैं।
  • हाल ही में, अर्थशास्त्रियों के एक समूह ने अनुमान लगाया है कि विकासशील देशों में 10% से भी कम शहरी नौकरियाँ घर से की जा सकती हैं। यह एक बड़ा अंतर पैदा करता है और शायद इस बात की पुष्टि भी करता है कि लॉकडाउन का आर्थिक प्रभाव विकसित देशों की तुलना में उभरती बाजार अर्थव्यवस्थाओं में अधिक है।
  • इस प्रकार की असमानता देशों के अंदर भी दृष्टिगत होती है। अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष द्वारा प्रयुक्त कई देशों के आँकड़ों और अन्य शोध-पत्रों के अनुमान के अनुसार टेलीवर्किंग (Teleworking) के लिये उपयुक्त क्षेत्रों का अवरोही क्रम इस प्रकार है: सूचना प्रौद्योगिकी (IT), वित्त, कानून, शिक्षा, लोक प्रशासन, स्वास्थ्य, विनिर्माण, खुदरा बिक्री, सपोर्ट सर्विसेज़, परिवहन, निर्माण, आवास और खाद्य जैसे व्यवसाय। विदित है कि भारत में कृषि के बाद विनिर्माण और खुदरा बिक्री सबसे बड़े नियोक्ता (रोज़गार प्रदाता) हैं।
  • इसके अतिरिक्त, अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष के अनुसार, उच्च औसत कमाई (आय) वाले क्षेत्रों (रोजगार) में घर से काम करने की संभावना अधिक है। अनुपातिक रूप से कम आय वाले श्रमिक पहले से ही खाद्य और आवास सेवाओं जैसे सबसे प्रभावित क्षेत्रों में केंद्रित हैं, जोकि टेलीवर्किंग के लिये अनुकूल नहीं हैं। साथ ही, कम आय वाले श्रमिकों की बचत कम होने के साथ-साथ क्रेडिट तक पहुँच भी सीमित होती है।

भारत में ऑनलाइन बाजार का भविष्य

  • श्रम बाजार से उपभोक्ता बाजार की ओर ध्यान आकर्षित किये जाने के परिणामों और संभावनाओं पर गौर करने की आवश्यकता है। हाल ही में, महामारी-पूर्व स्थिति की तुलना में ऑनलाइन खरीदारी का इरादा रखने वाले उपभोक्ताओं के व्यवहार के बदलाव पर एक अध्ययन किया गया। इसके लिये भारत सहित नौ देशों में उपभोक्ताओं का सर्वेक्षण किया गया।
  • अध्ययन के अनुसार, भारत में ऑनलाइन शिफ्ट की एक बड़ी संभावना मौजूद है। विशेष रूप से घरेलू सामानों की खरीद में इसकी संभावना अधिक है, हालाँकि, आने वाले वर्षों में इस बदलाव के महत्त्व व परिणाम को देखा जाना बाकी है।
  • इसको एक उदाहरण (केस स्टडी) से समझा जा सकता है। मान लीजिये यदि रेस्तराँ में जाने की अपेक्षा खाने को घर पर ऑर्डर करने में तेज़ी से उछाल आता है तो इस शिफ्ट का क्या प्रभाव होगा? क्या इसका मतलब यह होगा कि वेटर की तुलना में रसोइये (Chefs) अधिक सुरक्षित हैं? क्या इसका यह मतलब होगा कि डिलीवरी सेवाओं में और अधिक रोजगार उत्पन्न होंगे? साथ ही, यह प्रश्न भी उठता है कि श्रम का पुन: आवंटन किस प्रकार होगा?

निष्कर्ष

  महामारी ने कार्य करने और उपभोग की शैली में परिवर्तन किया है और ऐसे में कुछ कार्यों की स्थिति अन्य की तुलना में बेहतर भी हुई हैं। हालाँकि, लंबे समय तक के लिये इसका प्रभाव स्पष्ट नहीं है, फिर भी इस संदर्भ में सरकारों को सोचने के साथ-साथ इस विषय पर नीतिगत कदम उठाने की भी आवश्यकता होगी।

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