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कोविड-19 महामारी में बाल श्रम की समस्या एवं भारत

(प्रारंभिक परीक्षा:राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय महत्त्व की सामयिक घटनाएँ)
(मुख्य परीक्षा: सामान्य अध्ययन, प्रश्नपत्र-2, विषय: शासन और सामाजिक न्याय)

संदर्भ-

  • वैश्विक महामारी कोविड-19 के कारण विद्यालय बंद होने से बच्चों की शिक्षा में आए अवरोध,अभिभावकों के समक्ष उत्पन्न हुए आजीविका के संकट तथा इस अवधि में पर्याप्त सरकारी सहायता के अभाव ने बालश्रम की समस्या को और गंभीर बना दिया है । हालाँकि, इस संदर्भ में वास्तविक आँकड़ों का आना अभी शेष है परंतु इसके गंभीर होने की आशंका जताई जा रही है।
  • उल्लेखनीय है कि अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन के अनुसार वर्ष 2000 में दुनिया भर में लगभग 24.6 करोड़ बच्चे बाल श्रम में संलग्न थे,जबकि वर्ष 2017 में इनकी संख्या लगभग 15.2 करोड़ थी । कोविड-19 महामारी के कारण बाल श्रमिकों की संख्या में वृद्धि का अनुमान है।

बालश्रम से तात्पर्य

  • अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन (ILO) बालश्रम को एक ऐसे कार्य के रूप में परिभाषित करता है जो बच्चों(18 वर्ष से कम आयु) को उनके बचपन, क्षमता एवं गरिमा से वंचित करता है तथा उनके शारीरिक एवं मानसिक विकास में अवरोध उत्पन्न करता है।
  • बच्चों या किशोरों द्वारा किसी ऐसे कार्य में संलग्न होने,जिसमे उनका स्वास्थ्य एवं व्यक्तिगत विकास प्रभावित नहीं होता हो तथा उनकी विद्यालयी शिक्षा बाधित न होती हो,बालश्रम की श्रेणी में नहीं आएगा। इसमें माता-पिता की सहायता करना, पारिवारिक व्यवसाय में सहायता करना, विद्यालय की छुट्टियों की अवधि में पॉकेट मनी कमाने जैसी गति विधियों को शामिल किया गया है।
  • कोविड-19 महामारी के कारण पिछले दो दशकों में बालश्रम उन्मूलन के लिये किये गए प्रयासों को झटका लगा है। अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन (ILO) एवं संयुक्त राष्ट्र बाल कोष (UNICEF) द्वारा जारी संयुक्त रिपोर्ट में लाखों बच्चों के बाल मजदूरी का शिकार होने की आशंका व्यक्त की गई है।

भारत में बाल श्रम की समस्या

  • वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार 5-14 वर्ष की आयु के 10.1 मिलियन बच्चे बालश्रम में संलग्न हैं। इनमे 8.1 मिलियन बच्चे ग्रामीण क्षेत्र में प्रमुखतया कृषि कार्य (26%) एवं खेतिहर मजदूर (32.9%) के रूप में कार्यरत हैं।
  • वर्ष 2011 की जनगणना के आधार पर यूनेस्को के अनुमान के अनुसार 6-13 वर्ष की आयु के 18.3 % (38.1 मिलियन) बच्चे विद्यालय से वंचित हैं।
  • महिला एवं बाल विकास मंत्रालय और यूनिसेफ द्वारा संयुक्त रूप से किये गए एक रैपिड सर्वे (2013-14) के अनुसार 10-14 वर्ष की आयु के आधे से भी कम बच्चों ने प्राथमिक शिक्षा पूर्ण की है।
  • एन.एस.एस.रिपोर्ट 2017-18 के अनुसार 6-13 वर्ष आयु वर्ग के 95% छात्र शैक्षणिक संस्थानों में शिक्षा ग्रहण करते हैं,जबकि 14-17 वर्ष आयु वर्ग के मात्र 79.6% बच्चे ही शिक्षा ग्रहण कर रहे हैं।
  • भारत में पिछले वर्षों में बाल श्रमिकों की दर में कमी आई है,परंतु अभी भी यहाँ विभिन्न उद्योगों,जैसे- ईट भट्ठा उद्योग, गलीचा (कालीन) उद्योग, वस्त्रउद्योग, घरेलु काम काज, कृषि कार्य इत्यादि में बाल श्रमिकों को संलग्न देखा जा सकता है।
  • कोविड-19 महामारी के कारण हुए आर्थिक नुकसान एवं लॉकडाउन ने विश्व के सभी देशों को प्रभावित किया है। भारत भी इससे अछूता नहीं है । इसके कारण बढ़ती आर्थिक एवं सामाजिक असुरक्षा तथा घरेलु आय की कमी के कारण गरीब परिवारों के बच्चों को शोषण कार्यों के जोखिम के साथ परिवार की आय में योगदान के लिये प्रेरित किया जा रहा है। इससे बालश्रम की समस्या और भी गंभीर हो सकती है।

बालश्रम के मामलों में गिरावट

  • भारत में 2001 से 2011 के दशक में बालश्रम के मामलों में गिरावट देखी गई है। यह गिरावट दर्शाती है कि नीति एवं कार्य क्रम संबंधी हस्तक्षेपों के सही संयोजन से बालश्रम पर अंकुश लगाया जा सकता है।
  • मनरेगा (वर्ष 2005), शिक्षा का अधिकार अधिनियम (वर्ष 2009) तथा मध्यान्ह भोजन योजना जैसे नीतिगत हस्तक्षेपों ने ग्रामीण परिवारों के लिये गारंटी शुदा अकुशल रोज़गार के साथ बच्चों के विद्यालय में रहने का मार्ग सुनिश्चित किया है।

बालश्रम का प्रभाव

  • बालश्रम गरीबी का कारण एवं परिणाम दोनों है।गरीबी के कारण बच्चों को मजदूरी करने के लिये विवश होना पड़ता है। जिससे वे शिक्षा के अवसर से वंचित रह जाते हैं। परिणामस्वरूप यह एक दुष्चक्र का रूप ले लेता है।इससे आने वाली पीढियों को भी गरीबी का सामना करना पड़ता है।
  • बच्चों के श्रम कार्यों में संलग्न होने से उनकी शिक्षा एवं उनके कौशल के संदर्भ में दीर्घ कालिक एवं विनाश कारी परिणाम उत्पन्न होते हैं। इससे गरीबी, अधूरी शिक्षा एवं निम्न गुणवत्ता वाली नौकरियों की संभावनाएँ प्रबल होती हैं।
  • बाल श्रम में संलग्न होने वाले बच्चों के स्वास्थ्य पर इसका नकारात्मक प्रभाव पड़ता है तथा उनका विकास बाधित होता है।इस से वे बीमार होने, दुर्घटना होने तथा स्वास्थ्य संबंधी अन्य जटिलताओं का सामना करते हैं।

कोविड-19 महामारी के दौर में शिक्षा

  • महामारी के कारण शिक्षा में आया अवरोध बालश्रम में वृद्धि का एक प्रमुख कारण है। विद्यालयों के बंद होने एवं दूरस्थ शिक्षा की चुनौतियों के कारण बच्चो की शिक्षा में अवरोध उत्पन्न हुआ है।इस संदर्भ में जब तक सकारात्मक एवं तत्काल कार्रवाई नहीं की जाती उनकी वापसी की उम्मीद बहुत कम है।
  • विद्यालयों एवं शिक्षण संस्थाओं के द्वारा ऑनलाइन मोड का प्रयोग किया जा रहा है,जबकि भारत के लिये ‘डिजिटलडिवाइड’ अभी भी एक चुनौती है ।इसे सुलझाने के लिये प्रयास किया जाना चाहिये।
  • एन.एन.एस.की ‘भारत में शिक्षा पर घरेलू सामजिक उपभोग’ रिपोर्ट के अनुसार वर्ष 2017-18 में मात्र 24% भारतीय परिवारों (15% ग्रामीण परिवारों तथा 42% शहरी परिवारों) के पास इंटरनेट सुविधा उपलब्ध थी।
  • शिक्षा की वार्षिक स्थिति रिपोर्ट (ASER) 2020 के अनुसार कुल नामांकित बच्चों में एक तिहाई को शिक्षा के डिजिटल मोड के चयन के कारण संदर्भ अवधि (अक्तूबर 2020) के दौरान अपने शिक्षकों से किसी भी प्रकार की शिक्षण सामग्री प्राप्त नहीं हुई।

भारतीय संविधान में बालश्रम उन्मूलन संबंधी प्रावधान

  • अनुच्छेद 21 (क) में 6 वर्ष की आयु से 14 वर्ष की आयु तक के सभी बच्चों के लिये निःशुल्क एवं अनिवार्य शिक्षा को मूल अधिकार बनाया गया है। (86 वें संविधान संशोधन द्वारा जोड़ा गया)
  • अनुच्छेद 23 मानव के दुर्व्यापार और बेगार तथा इसी प्रकार के अन्य बलात श्रम का निषेध करता है।इसके अनुसार इस उपबंध काउल्लंघन अपराध होगा तथा विधि के अनुसार दण्डनीय होगा।
  • अनुच्छेद 24 में चौदह वर्ष से कम आयु के बच्चों को किसी कारखाने, खान या जोखिम पूर्ण कार्यों में नियोजन का निषेध किया गया है।
  • अनुच्छेद 39 (च) में बच्चों को स्वतंत्रता एवं सम्मान के साथ विकसित होने की सुविधाएँ एवं अवसर प्रदान करने का प्रावधान किया गया है। इसके साथ ही राज्य यह भी सुनिश्चित करेगा कि बचपन नैतिक एवं भौतिक शोषण से मुक्त हो।(42 वें संविधान संशोधन द्वारा जोड़ा गया)

आगे की राह

  • बालश्रम के संदर्भ में चुनौतियाँ अत्यधिक हैं,परंतु उनका सामना करना असंभव नहीं है। सभी हितधारकों के बीच प्रतिबद्धता के सही स्तर और नीति एवं कार्यक्रमों के उचित क्रियान्वयन से इस समस्या का समाधान किया जा सकता है।
  • बालश्रम गरीबी, बेरोजगारी, अल्परोज़गार एवं कम वेतन का एक दुष्चक्र है।इस स्थिति से निपटने के लिये परिवारों की आर्थिक स्थिति को सुदृढ़ बनाने तथा बच्चों के काम पर जाने की आवश्यकता को कम करने के लिये सामजिक सुरक्षा कार्यक्रमों एवं नकद हस्तांतरण की दिशा में प्रयास किये जाने की आवश्यकता है।
  • शैक्षिक बुनियादी ढाँचे में सुधार किया जाना चाहिये। जिससे शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार के साथ ही शैक्षिक संस्थाओं तक पहुँच सुनिश्चित की जा सके।
  • बालश्रम से संबंधित मौजूदा कानूनों में एक रूपता लाने तथा उनका उचित क्रियान्वयन सुनिश्चित करने की आवश्यकता है।
  • बालश्रम के खतरों के प्रतिलोगों को जागरूक करने के लिये बड़े पैमाने पर राष्ट्रीय अभियान प्रारंभ किया जाना चाहिये।
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