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अनुसूचित जाति और जनजातीय क्षेत्रों के प्रावधान 

प्रारंभिक परीक्षा- अनु. 244, अनु.244(1), अनु. 244(2), भूरिया समिति, PESA
मुख्य परीक्षा- सामान्य अध्ययन, पेपर- 1 और 2

संदर्भ-

  • भारत में लगभग 705 अनुसूचित जनजाति (एस.टी.) समुदाय हैं,जिनकी जनसंख्या देश की आबादी का 8.6% है और वे 26 राज्यों तथा 6 केंद्र शासित प्रदेशों में रहते हैं।

मुख्य बिंदु-

  • अनुसूचित जाति और जनजातीय क्षेत्रों के प्रशासन से संबंधित संवैधानिक प्रावधान अनुच्छेद 244 में है।
  • आदिवासी संगठनों की लगातार मांग के बावजूद भारत के लगभग 59% एसटी अनुच्छेद 244 के दायरे से बाहर हैं।
  • अनुच्छेद 244(1) असम, मेघालय, त्रिपुरा और मिजोरम के अलावा किसी भी राज्य में अधिसूचित अनुसूचित क्षेत्रों में पांचवीं अनुसूची प्रावधानों को लागू करने का प्रावधान करता है। 

Scheduled-Caste

भारत में पाँचवीं अनुसूची और छठी अनुसूची के जिलों को दर्शाने वाला मानचित्र।

  • अनुच्छेद 244(2) के अनुसार, छठी अनुसूची असम, मेघालय, त्रिपुरा और मिजोरम पर लागू होती है।

Tribal-areas

पाँचवीं अनुसूची के अंतर्गत पूर्णतः एवं आंशिक रूप से अनुसूचित क्षेत्र (छठी अनुसूची के क्षेत्रों को नहीं दिखाते हुए)

एस.टी. समुदायों का महत्वपूर्ण क्षेत्र-

  • अनुसूचित क्षेत्र भारत के 11.3% भूमि क्षेत्र को कवर करते हैं और इन्हें 10 राज्यों में अधिसूचित किया गया है, यथा- आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, ओडिशा, झारखंड, छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश, राजस्थान, गुजरात, महाराष्ट्र और हिमाचल प्रदेश। 
  • 2015 में केरल सरकार ने 2,133 बस्तियों, पांच ग्राम पंचायतों और पांच जिलों में दो वार्डों को अधिसूचित करने का प्रस्ताव रखा। इसे भारत सरकार की मंजूरी का इंतजार है।
  • हालाँकि, आदिवासी संगठनों की लगातार माँगों के बावजूद अनुसूचित क्षेत्रों वाले 10 राज्यों और एस.टी. आबादी वाले अन्य राज्यों में कई गाँवों को छोड़ दिया गया है। परिणामस्वरूप, भारत के 59% एसटी अनुच्छेद 244 के दायरे से बाहर हैं। 
  • ये अनुसूचित क्षेत्रों पर लागू कानूनों के तहत मिलने वाले अधिकारों से वंचित हैं, जिसमें भूमि अधिग्रहण, पुनर्वास और पुनर्स्थापन अधिनियम,2013 और जैविक विविधता अधिनियम,2002 में उचित मुआवजा और पारदर्शिता का अधिकार शामिल है। 
  • 1995 में अनुसूचित क्षेत्रों में पंचायती राज के विस्तार के प्रावधानों की सिफारिश करने के लिए गठित ‘भूरिया समिति’ ने इन गांवों को शामिल करने की सिफारिश की थी, लेकिन इसे अभी तक लागू नहीं किया गया है। 
  • शायद प्रशासनिक अधिकरणों में उचित एसटी-बहुमत की कमी के कारण नौकरशाही की प्रतिक्रिया अनुचित रही है ।
  • एक तर्क यह भी है कि, जिसका उपयोग अनुसूचित क्षेत्रों के उन हिस्सों को डीनोटिफाई करने की मांग करने के लिए भी किया गया है, जहां गैर-आदिवासी व्यक्तियों के अंतर्वाह के कारण एस.टी. अब अल्पसंख्यक हो गए हैं।

अनुसूचित क्षेत्र का शासन-

  • भारत के राष्ट्रपति भारत के अनुसूचित क्षेत्रों को अधिसूचित करते हैं। 
  • अनुसूचित क्षेत्रों वाले राज्यों को 20 तक एस.टी. सदस्यों वाले एक जनजातीय सलाहकार परिषद का गठन करने की आवश्यकता होती है। वे एस.टी. के कल्याण के संबंध में उन्हें भेजे गए मामलों पर राज्यपाल को सलाह देते हैं। इसके बाद राज्यपाल अनुसूचित क्षेत्रों के प्रशासन के संबंध में हर साल राष्ट्रपति को एक रिपोर्ट सौपते हैं।
  • केंद्र सरकार अनुसूचित क्षेत्रों के प्रशासन के संबंध में राज्य को निर्देश दे सकती है। 
  • राज्यपाल उस राज्य के अनुसूचित क्षेत्र पर लागू होने वाले संसद और राज्य विधान सभा द्वारा अधिनियमित किसी भी कानून को निरस्त या संशोधित कर सकते हैं। 
  • राज्यपाल अनुसूचित क्षेत्र के लिए नियम भी बना सकते हैं, विशेष रूप से एस.टी. के सदस्यों द्वारा या उनके बीच आदिवासी भूमि के हस्तांतरण को प्रतिबंधित करने और एस.टी. को भूमि आवंटन या बाहरी लोगों द्वारा एस.टी. को धन उधार देने को विनियमित कर सकते हैं।
  • राष्ट्रपति की निगरानी में राज्यपालों को दिए गए ये महत्वपूर्ण प्रावधान, अधिकार और विशेष जिम्मेदारी, 2014-2020 तक महाराष्ट्र में कुछ समय को छोड़कर काफी हद तक एक मृत पत्र बनकर रह गए हैं।
  • यह उस समय हुआ, जब संसद ने 1996 में ‘पंचायत प्रावधान (अनुसूचित क्षेत्रों तक विस्तार) अधिनियम’(PESA) को अधिनियमित किया गया। उसी समय संविधान और संविधान सभा की मंशा वास्तव में जीवंत हुई। 
  • राज्य पंचायत कानूनों ने निर्वाचित पंचायत निकायों को सशक्त बना दिया था, जिससे ग्राम सभाएं विवादास्पद हो गईं। 
  • PESA ने ग्राम सभाओं को प्रत्यक्ष लोकतंत्र के माध्यम से पर्याप्त अधिकार का प्रयोग करने का अधिकार दिया और कहा कि "उच्च स्तर पर संरचनाएँ ग्राम सभा की शक्तियों और अधिकार को ग्रहण नहीं करती हैं"।

अनुसूचित क्षेत्र का निर्णय कौन करता है-

  • पांचवीं अनुसूची किसी भी क्षेत्र को अनुसूचित क्षेत्र घोषित करने के लिए राष्ट्रपति को विशेष रूप से शक्तियां प्रदान करती है।
  • 2006 में, सुप्रीम कोर्ट (सिविल अपील संख्या 484-491) ने कहा कि "अनुसूचित क्षेत्रों की पहचान एक कार्यकारी कार्य है" और उसके पास "इसके अनुभवजन्य आधार की जांच करने की विशेषज्ञता नहीं है"।
  • 2010 में झारखंड उच्च न्यायालय (डब्ल्यू.पी. संख्या 689) ने अनुसूचित क्षेत्र की अधिसूचना की चुनौती को खारिज कर दी क्योंकि वहां एस.टी. की आबादी कुछ ब्लॉकों में 50% से कम थी। अदालत ने कहा कि अनुसूचित क्षेत्र की घोषणा "राष्ट्रपति के विशेष विवेक के अंतर्गत" है।

अनुसूचित क्षेत्र की पहचान-

  • न तो संविधान और न ही कोई कानून अनुसूचित क्षेत्रों की पहचान के लिए कोई मानदंड प्रदान करता है। लेकिन 1961 की ‘ढेबर आयोग’ की रिपोर्ट के आधार पर उनकी घोषणा के लिए मार्गदर्शक मानदंड निम्नलिखित हैं-
  1.  आदिवासी आबादी की प्रबलता 
  2. क्षेत्र की सघनता और उचित आकार
  3. एक व्यवहार्य प्रशासनिक इकाई जैसे कि जिला, ब्लॉक या तालुका
  4. पड़ोसी क्षेत्रों के सापेक्ष क्षेत्र का आर्थिक पिछड़ापन
  • कोई भी कानून ऐसे क्षेत्र में एस.टी. का न्यूनतम प्रतिशत निर्धारित नहीं करता है और न ही इसकी पहचान के लिए कोई कट-ऑफ तारीख निर्धारित करता है। 
  • इसमें कहा गया है कि, 2002 के ‘अनुसूचित क्षेत्र और अनुसूचित जनजाति आयोग’ ने सिफारिश की थी कि "1951 की जनगणना के अनुसार 40% और अधिक आदिवासी आबादी वाले सभी राजस्व गांवों को योग्यता के आधार पर अनुसूचित क्षेत्र माना जा सकता है"। 
  • जनजातीय मामलों के मंत्रालय ने इस पर विचार करने के लिए 2018 में राज्यों को सूचित किया, लेकिन कोई प्रतिक्रिया नहीं मिली।
  • किसी क्षेत्र की सघनता का मतलब है कि सभी प्रस्तावित गांवों को एक-दूसरे के साथ या मौजूदा अनुसूचित क्षेत्र के साथ सटे होने की आवश्यकता है। यदि सटे नहीं हैं, तो उन्हें छोड़ दिया जाएगा। 
  • लेकिन निकटता एक अनिवार्य सीमांकन मानदंड नहीं है। इसका एक उदाहरण केरल का लंबित प्रस्ताव है, जो शर्तों की अनदेखी करता है।
  • भूरिया समिति ने अनुसूचित क्षेत्रों के अंतर्गत स्व-शासन की मूल इकाई के रूप में एक आमने-सामने समुदाय, एक बस्ती या अपने स्वयं के मामलों का प्रबंधन करने वाली बस्तियों के समूह को मान्यता दी। लेकिन यह भी ध्यान दिया गया कि सबसे अधिक संसाधन-संपन्न आदिवासी-बसे हुए क्षेत्रों को प्रशासनिक सीमाओं द्वारा विभाजित किया गया है, जिससे वे हाशिये पर चले गए हैं।
  • इस प्रकार, विचार किए जाने वाले क्षेत्र की इकाई का निर्धारण - चाहे एक राजस्व गांव, पंचायत, तालुका या जिला, एस.टी.बहुमत आबादी के साथ हो- ने राजनीतिक-प्रशासनिक निर्णयों का मार्ग प्रशस्त किया।

मुद्दे को सुलझाना-

  • पेसा अधिनियम ने आखिरकार कानून में इस अस्पष्टता को सुलझा दिया। 
  • पेसा अधिनियम में एक 'गांव' को इस प्रकार परिभाषित किया गया है, जिसमें आम तौर पर "एक बस्ती या बस्तियों का एक समूह शामिल होता है, उसमें एक समुदाय शामिल होता है, जो परंपराओं और रीति-रिवाजों के अनुसार अपने मामलों का प्रबंधन करता है"। ऐसे गाँव में वे सभी ग्राम सभा का गठन करते थे,जिनके नाम मतदाता सूची में शामिल हैं ।
  • ‘अनुसूचित जनजाति और अन्य पारंपरिक वन निवासी (वन अधिकारों की मान्यता) अधिनियम-(FRA),2006 ने भी इस परिभाषा को अपनाया है। यहाँ भी, ग्राम सभाएँ अपने अधिकार क्षेत्र के तहत जंगलों पर शासन करने के लिए वैधानिक प्राधिकारी हैं। अतः PESA परिभाषा ने इसे अनुसूचित क्षेत्रों के अतिरिक्त वन सीमा और वन गांवों तक भी विस्तारित किया।
  • हालाँकि, उपयुक्त कानून के अभाव में ग्राम सभाओं को राजस्व भूमि पर अपनी पारंपरिक या प्रथागत सीमाओं का सीमांकन करना बाकी है। 
  • FRA,2006 के तहत उन्हें 'सामुदायिक वन संसाधन' का सीमांकन करने की आवश्यकता है, जो कि "गांव की पारंपरिक सीमाओं के अंतर्गत सामूहिक वन भूमि या आरक्षित वनों, संरक्षित वनों और संरक्षित क्षेत्रों सहित या झूम कृषि के उपयोग से है।" जैसे कि अभयारण्य और राष्ट्रीय उद्यान जिन तक समुदाय की पारंपरिक पहुँच थी"।
  • राजस्व और वन भूमि (जहां लागू हो) के भीतर पारंपरिक सीमा अनुसूचित क्षेत्र में गांव के क्षेत्रीय अधिकार क्षेत्र का गठन करेगी।

आगे की राह-

  • संक्षेप में, सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में अनुसूचित क्षेत्रों के बाहर सभी बस्तियों या बस्तियों के समूहों को, जहां एस.टी. सबसे बड़ा सामाजिक समूह है, उनकी निकटता न होने के बावजूद भी अनुसूचित क्षेत्रों के रूप में अधिसूचित करने की आवश्यकता होगी। 
  • इन गांवों की भौगोलिक सीमा को FRA,2006 के तहत वन भूमि पर 'सामुदायिक वन संसाधन' क्षेत्र तक विस्तारित करने की आवश्यकता होगी और प्रासंगिक राज्य कानूनों में उपयुक्त संशोधनों के माध्यम से राजस्व भूमि के भीतर परंपरागत सीमा तक संभव बनाया जाएगा।
  • अंततः, राजस्व गांव, पंचायत, तालुका और जिले की भौगोलिक सीमाओं को फिर से तैयार करने की आवश्यकता होगी ताकि ये पूरी तरह से अनुसूचित क्षेत्र हों।

प्रारंभिक परीक्षा के लिए प्रश्न-

प्रश्न- निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिए।

  1. अनुसूचित जाति और जनजातीय क्षेत्रों के प्रशासन से संबंधित संवैधानिक प्रावधान अनुच्छेद 244 में है।
  2. अनुच्छेद 244(2) के अनुसार, छठी अनुसूची असम, मेघालय, त्रिपुरा और मिजोरम पर लागू होती है।

नीचे दिए गए कूट की सहायता से सही उत्तर का चयन कीजिए।

(a) केवल 1

(b) केवल 2

(c) 1 और 2 दोनों

(d) न तो 1 और न ही 2

उत्तर- (c)

मुख्य परीक्षा के लिए प्रश्न-

प्रश्न- अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित क्षेत्रों के प्रशासन से संबंधित प्रावधानों को स्पष्ट करें।

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