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नस्लीय भेदभाव : संबंधित चिंताएँ तथा निवारण

(प्रारंभिक परीक्षा- अंतर्राष्ट्रीय महत्त्व की सामयिक घटनाएँ;  मुख्य परीक्षा- सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र-2; विषय- सामाजिक न्याय)

संदर्भ

  • प्रत्येक वर्ष 21 मार्च को नस्लीय भेदभाव के उन्मूलन तथा पूर्वाग्रहों एवं असहिष्णुता से लड़ने के लिये ‘नस्लीय भेदभाव के उन्मूलन हेतु अंतर्राष्ट्रीय दिवस’ का आयोजन किया जाता है और वैश्विक स्तर पर कार्यक्रम एवं गतिविधियाँ आयोजित की जाती हैं। वर्ष 2021 के लिये इस दिवस का विषय है- ‘नस्लवाद के विरुद्ध खड़े युवा’।
  • यह दिवस आधुनिक नस्लवाद के लिये उत्तरदायी कारणों एवं परिणामों का पता लगाने और भेदभाव से निपटने के लिये महत्त्वपूर्ण प्रतिबद्धताओं को दोहराने का अवसर प्रदान करता है।
  • कोविड-19 महामारी के कारण नस्लीय भेदभाव एवं मानवधिकारों के हनन संबंधी मामलों में बढ़ोतरी देखी गई है। इस संदर्भ में यूनेस्को प्रमुख ऑड्री अंजुले ने चिंता व्यक्त करते हुए सभी देशों से एकजुट होकर इस समस्या से निपटने का आह्वान किया है।

नस्लवाद/ प्रजातिवाद तथा इसके विभिन्न स्वरूप

  • नस्लवाद अथवा प्रजातिवाद एक अवधारणा है, जिसके तहत कोई एक नस्ल या जाति स्वयं को किसी दूसरी नस्ल या जाति से श्रेष्ठ होने का दावा करती है और इस आधार पर दूसरी नस्ल से घृणा एवं भेदभावपूर्ण व्यवहार करती है या उसके सामान्य मानवाधिकारों का हनन करती है।     
  • नस्लवाद का वर्तमान स्वरूप अत्यंत जटिल और अप्रकट अथवा छिपा हुआ है। कुछ समूहों के प्रति बढ़ती आक्रामकता व तिरस्कार सहित नस्लीय भेदभाव के संरचनात्मक रूप में भी वृद्धि हुई है।
  • इंटरनेट की व्यापक उपलब्धता और यहाँ पहचान छुपी होने के कारण नस्लवादी रूढ़ियों तथा भ्रामक सूचनाओं के ऑनलाइन प्रसार में वृद्धि हुई है।
  • महामारी की शुरुआत से लेकर अब तक अमेरिका में ऑनलाइन साइटों पर एशियाई तथा एशियाई मूल के अमेरिकी नागरिकों के विरुद्ध नफरत फ़ैलाने संबंधी पोस्ट्स में 200% तक वृद्धि दर्ज की गयी है। मार्च 2020 से लेकर वर्ष के अंत तक यहाँ नफरत से प्रेरित हिंसा के 2800 से भी अधिक मामले दर्ज किये गए।
  • भारत और श्रीलंका में सोशल मीडिया ग्रुप एवं मैसेजिंग प्लेटफॉर्म्स का प्रयोग धार्मिक अल्पसंख्यकों के विरुद्ध नफरत फ़ैलाने और उनके सामाजिक व आर्थिक बहिष्कार के लिये अधिक किया गया। साथ ही, भारत में सोशल मिडिया पर अल्पसंख्यकों द्वारा कोरोना वायरस के प्रसार का आरोप लगाते हुए भ्रामक सूचनाएँ प्रसारित की गईं।
  • वर्तमान में नई तकनीक व कृत्रिम बुद्धिमत्ता का प्रयोग 'तकनीकी-नस्लवाद' को बढ़ावा देता है, क्योंकि इन तकनीकों के माध्यम से नस्लीय समूह अपनी पहचान छुपाने में सक्षम होते हैं।

नस्लवाद के दुष्परिणाम

  • नस्लीय भेदभाव अथवा पक्षपातपूर्ण व्यवहार समाज में विद्यमान असमानताओं को और बढ़ाता है। मानवाधिकारों के उल्लंघन के अतिरिक्त, नस्लीय भेदभाव का मानव स्वास्थ्य एवं कल्याण पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है, जिससे सामाजिक समरसता में बाधा उत्पन्न होती है।
  • ‘द लांसेट’ में प्रकाशित एक अध्ययन ने कोविड-19 महामारी के सामाजिक आयामों और अल्पसंख्यकों के नस्लीय भेदभाव के प्रति अधिक संवेदनशीलता की ओर ध्यान आकर्षित किया, जो अलग-अलग रूप से प्रभावित हुए हैं।
  • विश्व स्वास्थ्य संगठन ने प्रोफाइलिंग के जोखिमों और समुदायों के प्रति व्याप्त पूर्वाग्रहों से संबंधित खतरों के बारे में चेतावनी दी है कि इससे भय का वातावरण निर्मित होगा और नस्लीय भेदभाव संबंधी मामलों का पता लगाने में भी विलंब होगा।
  • महिलाओं और बालिकाओं को भी नस्लीय एवं लैंगिक भेदभाव तथा पूर्वाग्रहों का दोहरा बोझ उठाना पड़ता है, जिससे वे मानसिक रूप से कमज़ोर होने लगती हैं।
  • नस्लीय भेदभाव का सर्वाधिक शिकार अफ्रीकी मूल के व्यक्ति, धार्मिक एवं प्रजातीय अल्पसंख्यक तथा हाशिये पर रहने को मजबूर अन्य समूह होते हैं। साथ ही, नस्लीय भेदभाव के कारण सबसे अधिक मौतें भी इन्हीं समुदायों में होती हैं।
  • भले ही नस्लीय भेदभाव सभी मानवाधिकारों का हनन नहीं करता, किंतु यह 'बहुत से अधिकारों के उल्लंघन' का कारण आवश्य बनता है और व्यक्ति के गरिमापूर्ण जीवन जीने के अधिकार को सर्वाधिक प्रभावित करता है।

नस्लीय भेदभाव:  निपटने के उपाय एवं रणनीति

  • यूनेस्को ने कोरिया गणराज्य के सहयोग से पेरिस में 22 मार्च, 2021 को नस्लीय भेदभाव के विरुद्ध एक वैश्विक फोरम की मेज़बानी की। इस फोरम में नस्लीय भेदभाव के से निपटने के लिये रणनीति सुनिश्चित करने के उद्देश्य से नीति- निर्माता, शिक्षाविद् और अन्य भागीदार एकत्रित हुए।
  • फोरम में नस्लवाद के मूल कारणों से निपटने के लिये असहिष्णुता विरोधी कानूनों, नीतियों एवं कार्यक्रमों के माध्यम से बहुपक्षीय प्रयासों की तत्काल आवश्यकता बताई गई।
  • नस्लवाद से निपटने के लिये शिक्षा एक महत्त्वपूर्ण कारक है। यूनेस्को शिक्षा के माध्यम से युवाओं में नस्लीय भेदभाव के विरुद्ध एवं मानवाधिकारों के संरक्षण हेतु जागरूकता उत्पन्न करता है।
  • साथ ही, यूनेस्को स्कूलों और समुदायों में छात्रों में नस्लवाद विरोधी दृष्टिकोण विकसित करने के लिये विशेष कक्षाएँ भी आयोजित करता है।
  • ‘समावेशी एवं सतत् शहरों का अंतर्राष्ट्रीय गठबंधन’ नस्लवाद के विरुद्ध लड़ाई में शहरी स्तर की नीतियों के लिये एक अतिरिक्त मंच प्रदान करता है, जो कि अच्छे व्यवहारों के लिये एक प्रयोगशाला के रूप में कार्य करता है।
  • वर्तमान में सोशल मीडिया पर हैशटैग ‘#StopAsianHate’ के माध्यम से एशियाई और एशियाई मूल के लोगों के विरुद्ध हिंसा की घटनाओं को रोकने के लिये एक मुहिम शुरू की गई है।
  • इन प्रयासों के अतिरिक्त, अंतर-सांस्कृतिक संवाद एवं सीखने के नए दृष्टिकोण के माध्यम से युवाओं एवं समुदायों में सहिष्णुता को बढ़ावा देने तथा हानिकारक रूढ़ियों के उन्मूलन के लिये महत्त्वपूर्ण प्रयास किये जा सकते हैं।

निष्कर्ष

  • नस्लीय भेदभाव किसी भी समाज में असमानता को और गहरा करता है। हालाँकि, वर्तमान में नस्लवादी विचारधारा की सामाजिक स्वीकार्यता में कमी के कारण नस्लवाद विरोधी सार्वजनिक दृष्टिकोण में सुधार हुआ है, तथापि नस्लीय भेदभाव की नवीनतम अभिव्यक्तियाँ समानता सुनिश्चित करने के लिये नए सिरे से प्रयासों की आवश्यकता पर बल देती हैं।
  • नस्लीय भेदभाव को केवल विश्वास के आधार पर समाप्त नहीं किया जा सकता, बल्कि इसे नस्लवाद विरोधी कार्रवाइयों के साथ जोड़ा जाना चाहिये। साथ ही, इसके लिये आवश्यक है कि वैश्विक स्तर पर विभिन्न समुदायों में सहिष्णुता, समानता एवं भेदभाव विरोधी संस्कृति को विकसित किया जाए।
  • इस संदर्भ में संयुक्त राष्ट्र के पूर्व महासचिव कोफी अन्नान का कथन कि “हमारा उद्देश्य ज्ञान के साथ अज्ञानता का सामना करना है, सहिष्णुता के साथ कट्टरता का त्याग करना और उदारता के साथ भेदभाव को दूर करना है। नस्लवाद हरसंभव स्थिति में और आवश्य ही समाप्त होना चाहिये।

स्मरणीय तथ्य

  • 21 मार्च, 1960 को दक्षिण अफ्रीका में नस्लीय भेदभाव क विरोध कर रहे छात्रों पर पुलिस द्वारा कार्यवाई की गई, जिसमें 66 छात्रों की मृत्यु हो गई थी। इस घटना को मानवाधिकारों के हनन के रूप में देखा गया।
  • अतः उपरोक्त घटना के उपरांत संयुक्त राष्ट्र महासभा द्वारा 21 मार्च, 1966 को पहली बार ‘नस्लीय भेदभाव के उन्मूलन हेतु अंतर्राष्ट्रीय दिवस’ मनाया गया। इस संदर्भ में वर्ष 1979 में महासभा ने नस्लीय भेदभाव के विरुद्ध ‘एक्शन फॉर कॉम्बैट’ नामक कार्यक्रम अपनाया।
  • नस्लीय भेदभाव तथा असहिष्णुता से निपटने के लिये वर्ष 2001 में ‘डरबन घोषणा एवं कार्रवाई कार्यक्रम’ (DDPA) शुरू किया गया
  • वर्ष 2013 में अफ्रीका मूल के लोगों के लिये ‘अफ़्रीकी मूल के लोग: स्वीकार्यता, न्याय एवं विकास’  विषय के साथ वर्ष 2015 से वर्ष 2024 को अंतर्राष्ट्रीय दशक घोषित किया गया।
  • भारत में नस्लीय भेदभाव को समाप्त करने के लिये संवैधानिक उपबंध किये गए हैं। संविधान का अनुच्छेद 14 सभी के लिये समानता का अधिकार सुनिश्चित करता है और अनुच्छेद 15  धर्म, जाति, नस्ल, लिंग या जन्म स्थान के आधार पर किसी भी प्रकार के भेदभाव को प्रतिबंधित करता है।
  • अनुच्छेद 16 सभी नागरिकों को अवसर की समता प्रदान करता है तो वहीं अनुच्छेद 39 A सभी नागरिकों को समान रूप से आजीविका के साधन प्राप्त करने का अधिकार प्रदान करता है।
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