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रूस की नई कोविड वैक्सीन: स्पुतनिक-V

(प्रारम्भिक परीक्षा: राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय महत्त्व की सामयिक घटनाएँ, मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र 3,2: विषय- विविध)

हाल ही में रूस, कोविड-19 की वैक्सीन को आधिकारिक रूप से पंजीकृत करने और इसे उपयोग के लिये तैयार घोषित करने वाला पहला देश बन गया।

प्रमुख बिंदु:

  • रूस द्वारा इस वैक्सीन का नाम स्पुतनिक-V रखा गया है, जिसका नाम सोवियत संघ द्वारा लॉन्च किये गए पहले कृत्रिम पृथ्वी उपग्रह, स्पुतनिक-I के नाम पर रखा गया है। किसी देश द्वारा अनुमोदन प्राप्त करने वाली यह पहली कोविड -19 वैक्सीन है।
  • हालाँकि, इससे पहले 'सीमित उपयोग' के लिये चीन ने भी अपनी एक वैक्सीन बनाई थी। यह भी एक एडेनोवायरस वेक्टर वैक्सीन थी, जिसे केवल पीपुल्स लिबरेशन आर्मी के सैनिकों पर लगाया जाना था।
  • रूसी वैक्सीन ने अन्य कोविड -19 वैक्सीनों जैसे ऑक्सफोर्ड-एस्ट्राएनेका,मोडेर्नाएंड फाइज़र (Moderna and Pfizer) आदि को पीछे छोड़ दिया है।
  • भारत की कोवाक्सिन (COVAXIN) को मानव नैदानिक ​​परीक्षणों के लिये अभी अनुमोदित किया गया है। एक अन्य भारतीय वैक्सीन Zycov-D क्लीनिकल परीक्षण के I/II चरण में पहुँची है।
  • इस वैक्सीन को रूस के रक्षा मंत्रालय के सहयोग से मॉस्को के गैमालेया संस्थान (Gamaleya Institute) द्वारा विकसित किया गया है।
  • वैक्सीन आम तौर पर सर्दी-ज़ुकाम के लिये उत्तरदाई एडेनोवायरस (सार्स-cov -2 प्रकार) के डी.एन.ए.पर आधारित है।
  • वैक्सीनद्वारा एक कमज़ोर एडेनोवायरस का प्रयोग रोग जनक (pathogen) के छोटे हिस्सों को वितरित करने और प्रतिरक्षा प्रतिक्रिया को बढ़ाने के लिये किया जाता है।
  • टीके को दो खुराक में दिया जाता है और इसमें दो प्रकार के मानव एडेनोवायरस होते हैं, प्रत्येक में नए कोरोना वायरस का एस-एंटीजन होता है, जो मानव कोशिकाओं में प्रवेश करता है और प्रतिरक्षा प्रतिक्रिया को शुरू करता है।
  • रूसी अधिकारियों ने कहा है कि वैक्सीन का बड़े पैमाने पर उत्पादन सितम्बर में शुरू होगा और वृहत स्तर पर इसका टीकाकरण अक्तूबर के शुरू हो सकता है।

एडेनोवायरस वेक्टर वैक्सीन (Adenovirus Vector Vaccine):

  • इस वैक्सीन के द्वारा जीन या वैक्सीन एंटीजन को लक्षित मेजबान ऊतकों तक पहुँचाने के लिये एडेनोवायरस को एक ऑब्जेक्ट के रूप में प्रयोग किया जाता है।
  • एडेनोवायरस (Adenoviruses-ADVs), 70-90 नैनोमीटर आकार के डी.एन.ए. वायरस हैं, जो मनुष्यों में कई बीमारियों जैसे सर्दी, श्वसन संक्रमण आदि के लिये उत्तरदाई हैं।
  • वैक्सीन के लिये एडेनोवायरस को वरीयता दी जाती है क्योंकि उनका डी.एन.ए. दोहरा फँसा (double stranded) हुआ होता है जो उन्हें आनुवंशिक रूप से अधिक स्थिर बनाता है और इंजेक्शन में दिये जाने के बाद उनके बदलने की सम्भावना कम होती है।
  • रेबीज़ वैक्सीन एक एडेनोवायरस वैक्सीन हीहै।
  • हालाँकि एडेनोवायरस वैक्सीन में कुछ सामान्य दिक्कतें भी अक्सर देखी जाती हैं, जैसे मनुष्यों में इसके प्रति पहले से मौजूद प्रतिरक्षा तथा आन्तरिक जलन आदि।
  • जिस तरह मानव शरीर अधिकतर वास्तविक वायरल संक्रमणों के लिये प्रतिरक्षा प्रतिक्रिया विकसित करते हैं, वे एडेनोवायरल वैक्टर के लिये भी प्रतिरक्षा विकसित करते हैं। चूँकि एडेनोवायरल वेक्टर प्राकृतिक वायरस से लिये जाते हैं, अतः ऐसा हो सकता है कि कुछ व्यक्ति पहले से ही इसके प्रभाव में आ चुके हों अतःये टीके सभी व्यक्तियों के लिये प्रभावी नहीं होते हैं।

वैक्सीन से जुड़ी चिंताएँ:

  • विशेषज्ञों ने वैक्सीन की सुरक्षा और प्रभाव के बारे में कई चिंताएँ व्यक्त की हैं क्योंकि एक तो इसका उत्पादन बहुते तेज़ी से किया जा रहा है दूसरा टीके से जुड़े प्रकाशित आँकड़ों की कमी है।
  • रूस ने केवल नैदानिक ​​परीक्षणों के चरण-1 के परिणामों को सार्वजनिक किया है, जिनके द्वारा रूस ने यह दावा किया था कि इसके प्रयोग से वांछित प्रतिरक्षा प्रतिक्रिया मानव शरीर में उत्पन्न हो रही है।
  • सामान्य परिस्थितियों में कई साल तक चलने वाले मानव परीक्षणों को स्पुतनिक-V के द्वारा दो महीने से भी कम समय में पूरा किया गया है। ध्यातव्य है कि बाद के चरण मानव परीक्षण के लिये अधिक महत्त्वपूर्ण हैं क्योंकि विभिन्न जनसंख्या समूहों पर वैक्सीन की प्रभावकारिता अलग-अलग हो सकती है।
  • हालाँकि, रूस ने दावा किया है कि उसकी कोविड -19 वैक्सीन को मध्य पूर्व रेस्पिरेटरी सिंड्रोम (MERS) बीमारी के लिये वैक्सीन के रूप में बड़े पैमाने पर प्रयोग व परीक्षण किया जा चुका है।

भारत में उपयोग:

  • रूस ने दावा किया है कि भारत सहित लगभग 20 देशों ने स्पुतनिक-V वैक्सीन में रुचि दिखाई है।
  • यद्यपि भारत ने आधिकारिक रूप से कोविड -19 वैक्सीन के विकास के लिये यू.एस.ए. के साथ भागेदारी की है।
  • वैक्सीन को मंज़ूरी केंद्रीय औषधि मानक नियंत्रण संगठन (सी.डी.एस.सी.ओ.) द्वारा दी जाएगी।
  • केंद्रीय औषधि मानक नियंत्रण संगठन (सी.डी.एस.सी.ओ.), स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय के स्वास्थ्य सेवा महानिदेशालय के तहत, भारत का राष्ट्रीय नियामक प्राधिकरण (एन.आर.ए.) है।
  • ड्रग्स एंड कॉस्मेटिक्स एक्ट, 1940 के तहत, सी.डी.एस.सी.ओ. ड्रग्स को मंज़ूरी देने, क्लीनिकल ट्रायल के संचालन, ड्रग्स के लिये मानकों को पूरा करने, देश में आयातित ड्रग्स की गुणवत्ता पर नियंत्रण और राज्य औषधि नियंत्रण संगठनों की गतिविधियों का समन्वय तथा विशेषज्ञ की सलाह प्रदान के लिये ज़िम्मेदार है।
  • सी.डी.एस.सी.ओ. रूस को भारतीय आबादी पर चरण-2 और 3 के मानव परीक्षण करने के लिये  भी कह सकता है।भारत के बाहर विकसित सभी टीकों के लिये इन चरणों के मानव परीक्षण ज़रूरी हैं।
  • किसी असाधारण स्थिति में CDSCO द्वीतीय व तृतीय चरणों के परीक्षणों के बिना वैक्सीन को आपातकालीन अनुमति भी दे सकता है।
  • रेम्डेसिविर को हाल ही में नए कोरोनोवायरस रोगियों पर एक चिकित्सीय दवा के रूप में इस्तेमाल करने के लिये इसी तरह की आपातकालीन मंज़ूरी दी गई थी।
  • हालाँकि, वर्तमान समयमें यह सम्भव नहीं लग रहा क्योंकि वैक्सीन बड़ी संख्या में लोगों को दिये जाते हैंऔर इसमें शामिल जोखिम बहुत अधिक होते हैं।
  • वैक्सीन के निर्माण में भी समस्याएँ दिख रही हैं क्योंकि भारत में अभी इसके उत्पादन के लिये कोई समझौता नहीं हुआ है।
  • पुणे स्थित सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया, जो दुनिया में टीके का सबसे बड़ा निर्माता है, पहले ही डेवलपर्स के साथ अनुबंध कर चुका है ताकि वे अपने टीकों का बड़े पैमाने पर उत्पादन कर सकें। अन्य भारतीय कम्पनियों ने भी इसी तरह के समझौते किये हैं लेकिन रूस के साथ कोई नहीं है।

टीके का विकास

वैक्सीन के विकास चक्र के सामान्य चरण निम्नलिखित हैं:

1. खोजपूर्ण चरण
2. पूर्व नैदानिक ​​चरण
3. नैदानिक ​​विकास
4. विनियामक समीक्षा और अनुमोदन
5. विनिर्माण और
6. गुणवत्ता नियंत्रण।

नैदानिक ​​विकास तीन चरण की प्रक्रिया है:

  • मनुष्यों में नैदानिक ​​परीक्षणों को तीन चरणों में वर्गीकृत किया जाता है: चरण I, चरण II और चरण III और कई देशों में इनमें से किसी भी चरणका विस्तृत अध्ययन करने के लिये औपचारिक विनियामक अनुमोदन आवश्यक है।
  • प्रथम चरण में नैदानिक अध्ययन के लिये टीके का प्रारम्भिक परीक्षण छोटी संख्या में स्वस्थ वयस्कों पर किया जाता है, ताकि टीके के सभी गुणों, सहनशीलता और अन्य मानकों का परीक्षण किया जा सके। प्रथम चरण के अध्ययन मुख्य रूप से सुरक्षा से सम्बंधित हैं।
  • द्वितीय चरण के अध्ययन में बड़ी संख्या में अन्य विषयों को शामिल किया जाता है और इसका लक्ष्य, लक्षित आबादी पर टीके के वांछित प्रभाव (आमतौर पर इम्युनोजेनेसिटी- immunogenicity) उत्पन्न करने की क्षमता तथा इसकी सामान्य सुरक्षा से जुड़ी प्रारम्भिक जानकारी प्रदान करना है।
  • व्यापक चरण III के परीक्षणों में वैक्सीन की सुरक्षात्मक प्रभाव और सुरक्षा का पूरी तरह से आकलन करने की आवश्यकता होती है। किसी टीके को लाइसेंस प्रदान करने या घोषित करने के लिये कि वैक्सीन अपने उद्देश्य के लिये सुरक्षित और प्रभावी है या नहीं, चरण III नैदानिक ​​परीक्षण सबसे महत्त्वपूर्ण है। इससे जुड़े आँकड़े सबसे पुष्ट होते हैं और इनका सकारात्मक आना सबसे ज़्यादा ज़रूरी है।
  • कई टीके चरण IV के औपचारिक अध्ययन से भी गुज़रते हैं,जब टीके को स्वीकृति मिल जाती है और उसका लाइसेंस मिल जाता है।

आगे की राह:

रूस द्वारा वैक्सीन की खोज हालाँकि एक स्वागत योग्य कदम है फिर भी इसकी प्रभावकारिता और सुरक्षा के बारे में उठ रही चिंताओं को निर्माताओं द्वारा प्राथमिक रूप से सम्बोधित किया जाना चाहिये। साथ ही, विनिर्माण और वितरण प्रक्रियाओं को स्पष्ट रूप से निर्धारित करने की आवश्यकता है ताकि उन्हें महामारी के समय में त्वरित और कुशल तरीके से पूरेदेश में वितरित किया जा सके।

(स्रोत: इन्डियन एक्सप्रेस)

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