New
GS Foundation (P+M) - Delhi : 05th Jan., 2026 Winter Sale offer UPTO 75% + 10% Off GS Foundation (P+M) - Prayagraj : 15th Dec., 11:00 AM Winter Sale offer UPTO 75% + 10% Off GS Foundation (P+M) - Delhi : 05th Jan., 2026 GS Foundation (P+M) - Prayagraj : 15th Dec., 11:00 AM

विद्युत : एक सार्वजनिक संपत्ति

(प्रारंभिकपरीक्षा: समसामयिक घटनाक्रम)
(मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्न पत्र-2: सरकारी नीतियों और विभिन्न क्षेत्रों में विकास के लिये हस्तक्षेप और उनके अभिकल्पन तथा कार्यान्वयन के कारण उत्पन्न विषय।)

संदर्भ

सर्वोच्च न्यायालय ने अपने हालिया निर्णय में कहा है कि विद्युत एक "सार्वजनिक संपत्ति" (Public good) है, जिसे ‘सामग्री संसाधन’ (Material resource) के रूप में देखा जाता है, जो समाज के सभी वर्गों के लिए आवश्यक है। विद्युत  न केवल दैनिक जीवन का आधार है, बल्कि आर्थिक विकास, शिक्षा, स्वास्थ्य और सामाजिक समानता के लिए भी महत्त्वपूर्ण है।

हालिया मुद्दा क्या है

  • नियामक संपत्तियों का बढ़ता बोझ: विद्युत  वितरण कंपनियों द्वारा नियामक संपत्तियों (रेगुलेटरी असेट्स) को दशकों तक बिना निपटान के बढ़ने दिया गया है, जिससे उपभोक्ताओं पर अतिरिक्त वित्तीय बोझ पड़ रहा है।
  • टैरिफ शॉक: लागत और वास्तविक राजस्व के बीच अंतराल को कम करने के लिए नियामक आयोगों द्वारा नियामक संपत्तियों का उपयोग किया जाता है, लेकिन इसका दुरुपयोग उपभोक्ताओं के लिए "टैरिफ शॉक" का कारण बनता है।
  • पारदर्शिता की कमी: नियामक आयोगों के निर्णयों में स्वतंत्रता और जवाबदेही की कमी ने इस क्षेत्र में विश्वास को प्रभावित किया है।

सर्वोच्च न्यायालय का हालिया निर्णय

  • प्रमुख बिंदु
    • सर्वोच्च न्यायालय ने अपने फैसले में विद्युत  को "सार्वजनिक संपत्ति" घोषित किया और इसे "अनुचित राजनीतिक हस्तक्षेप" से बचाने की आवश्यकता पर बल दिया।
    • कोर्ट ने कहा कि नियामक संपत्तियों का अनुपातहीन बढ़ना और लंबे समय तक बने रहना विद्युत  क्षेत्र के सुशासन के लिए हानिकारक है।
  • निर्देश
    • नियामक संपत्तियां विद्युत नियमों में निर्धारित उचित प्रतिशत से अधिक नहीं होनी चाहिए।
    • मौजूदा नियामक संपत्तियों को 1 अप्रैल, 2024 से अधिकतम सात वर्षों में निपटाया जाए।
    • भविष्य में बनने वाली नियामक संपत्तियों को तीन वर्षों में निपटाना अनिवार्य।
    • ERCs को नियामक संपत्तियों के निपटान के लिए एक रोडमैप प्रदान करना होगा।
    • वितरण कंपनियों की परिस्थितियों का सख्त और गहन ऑडिट करना।

विद्युत नियामक आयोगों की स्वायत्तता

  • कानूनी प्रावधान: विद्युत अधिनियम, 2003 के तहत ERCs को टैरिफ निर्धारण, प्रतिस्पर्धा को बढ़ावा देने और विश्वसनीय विद्युत आपूर्ति सुनिश्चित करने की स्वायत्तता दी गई है।
  • सुप्रीम कोर्ट की चिंता: कोर्ट ने ERCs की "कार्यात्मक स्वायत्तता" पर संदेह व्यक्त किया है, विशेष रूप से नियुक्ति प्रक्रिया में पारदर्शिता की कमी के कारण।
  • स्वतंत्रता का महत्त्व: ERCs को बाजार की मांग-आपूर्ति और राजनीतिक दबावों से मुक्त होकर सामान्य हित में कार्य करना चाहिए।
  • जवाबदेही: कोर्ट ने जोर दिया कि स्वतंत्रता व्यक्तिगत इच्छाशक्ति और पारदर्शिता के माध्यम से सुनिश्चित की जानी चाहिए, जो जवाबदेही को बढ़ावा देती है।

चुनौतियाँ

  • नियामक संपत्तियों का संचय: नियामक संपत्तियों का अनियंत्रित बढ़ना और उनका लंबे समय तक निपटान न होना उपभोक्ताओं पर अतिरिक्त बोझ डालता है।
  • पारदर्शिता और स्वतंत्रता की कमी: ERCs की नियुक्ति प्रक्रिया और निर्णय लेने में पारदर्शिता की कमी से स्वायत्तता प्रभावित होती है।
  • टैरिफ शॉक: लागत और राजस्व के बीच की खाई को कम करने के लिए अपनाए गए उपाय उपभोक्ताओं के लिए अचानक और असहनीय मूल्य वृद्धि का कारण बनते हैं।
  • सुशासन की कमी: नियामक संपत्तियों का अनुपातहीन बढ़ना और अनुचित प्रबंधन विद्युत  क्षेत्र के सुशासन को खतरे में डालता है।
  • सामाजिक असमानता: किफायती विद्युत आपूर्ति सभी क्षेत्रों और वर्गों तक समान रूप से नहीं  पहुँच पाती।

आगे की राह

  • नियामक संपत्तियों का निपटान: सुप्रीम कोर्ट के निर्देशानुसार, मौजूदा और भविष्य की नियामक संपत्तियों को निर्धारित समयसीमा (7 वर्ष और 3 वर्ष) में निपटाया जाए।
  • पारदर्शी नियुक्ति प्रक्रिया: ERCs की स्वतंत्रता सुनिश्चित करने के लिए नियुक्ति प्रक्रिया को पारदर्शी और निष्पक्ष बनाना।
  • सख्त ऑडिट: वितरण कंपनियों के नियामक संपत्तियों के प्रबंधन की गहन जाँच और ऑडिट करना।
  • जागरूकता और जवाबदेही: ERCs को अपने निर्णयों में पारदर्शिता और जवाबदेही सुनिश्चित करनी चाहिए, ताकि उपभोक्ताओं का विश्वास बढ़े।
  • किफायती विद्युत आपूर्ति: सभी क्षेत्रों और वर्गों तक सस्ती और विश्वसनीय विद्युत  आपूर्ति सुनिश्चित करने के लिए नीतियों को लागू करना।
  • सुशासन को बढ़ावा: विद्युत क्षेत्र में सुशासन को मजबूत करने के लिए नियामक प्रक्रियाओं को मजबूत करना और राजनीतिक हस्तक्षेप को कम करना।

निष्कर्ष

सुप्रीम कोर्ट का यह निर्णय विद्युत क्षेत्र में सुधारों की दिशा में एक महत्त्वपूर्ण कदम है। विद्युत  को एक सार्वजनिक संपत्ति के रूप में मान्यता और ERCs की स्वायत्तता पर जोर देकर, कोर्ट ने इस क्षेत्र में पारदर्शिता, जवाबदेही और सुशासन को बढ़ावा देने का प्रयास किया है। नियामक संपत्तियों के निपटान और स्वतंत्र नियामक प्रक्रियाओं के माध्यम से, भारत में विद्युत  आपूर्ति को और अधिक किफायती, समावेशी और विश्वसनीय बनाया जा सकता है।

« »
  • SUN
  • MON
  • TUE
  • WED
  • THU
  • FRI
  • SAT
Have any Query?

Our support team will be happy to assist you!

OR