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गंभीर मामलों में जाँच की अवधि कम करना

(प्रारंभिक परीक्षा : राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय स्तर की सामयिक घटनाएँ; मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र 2 - राज्य विधायिका, शक्तियाँ एवं विशेषाधिकार, शासन व्यवस्था, न्याय व्यवस्था)

संदर्भ

हाल ही में, वर्ष 2019 के आंध्र प्रदेश के ‘दिशा विधेयक’ में कुछ अपराधों की जाँच की समयावधि को कम करके सात दिन तक किये जाने के प्रयास किये जा रहे हैं।

राज्य सरकारों द्वारा जाँच की अवधि कम करना

  • वर्ष 2020 के प्रस्तावित महाराष्ट्र शक्ति अधिनियम में 15 दिनों के भीतर जाँच पूरी करने का प्रावधान है।
  • महाराष्ट्र का शक्ति अधिनियम आंध्र प्रदेश के दिशा विधेयक से प्रेरित है।
  • दिशा बिल के तहत महिलाओं, बच्चों के यौन उत्पीड़न और बलात्कार जैसे अपराधों के जिन मामलों में‘पर्याप्त निर्णायक सबूत’ उपलब्ध हैं, सात कार्यदिवसों के भीतर जाँच पूरी करना अनिवार्य है।
  • हालाँकि पुलिस द्वारा‘पर्याप्त निर्णायक सबूत’ को स्पष्ट करना अभी भी एक दुविधा बनी हुई है।

सी.आर.पी.सी.  के प्रावधान

  • दंड प्रक्रिया संहिता (सीआर.पी.सी.)के अनुसार जिन अपराधों में कम से कम 10 वर्ष के कारावास का प्रावधान है,  उनकी जाँच 60 दिनों के भीतर पूरी की जानी चाहिये।
  • उच्च सज़ा वाले अपराधों (बलात्कार सहित) में आरोपी को हिरासत में लेने की समयसीमा 90 दिनों की है, अन्यथा उन्हें ज़मानत पर रिहा कर दिया जाएगा।
  • प्रक्रिया में तेज़ी लाने के लिये, वर्ष 2018 में सी.आर.पी.सी. में संशोधन किया गया और बलात्कार के सभी मामलों के लिये जाँच की अवधि को 90 से घटाकर 60 दिन कर दिया गया

 

कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न की जाँच

यौन उत्पीड़न निवारण अधिनियम, 2013 के अनुसार पीड़ित महिला की लिखित शिकायत पर नियोक्ता (Employer) को आंतरिक शिकायत समिति/स्थानीय शिकायत समिति निम्नलिखित निर्देश दे सकती है-

  • पीड़ित महिला या यौन उत्पीड़न के आरोपी व्यक्ति का स्थानान्तरण।
  • किसी अन्य प्रकार की सहायता निर्धारित करना।
  • जांच पूर्ण होने के 10 दिन के अंदर समिति नियोक्ता एवं संबंधित व्यक्ति को रिपोर्ट देगी।
  • स्थानीय शिकायत समिति जाँच में आरोपी को दोषी पाती है, तो कार्रवाई संबंधी अपनी रिपोर्ट नियोक्ता एवं ज़िला अधिकारी को सौंपेगी।
  • आंतरिक शिकायत समिति या स्थानीय शिकायत समिति पीड़ित महिला या अन्य की शिकायत गलत पाती है, तो पीड़ित महिला या अन्य व्यक्ति के विरुद्ध सेवा नियमावली के अनुसार कार्रवाई की जाएगी।

जाँच के समय को प्रभावित करने वाले कारक

  • आम तौर पर, जाँच का समय कई कारकों पर निर्भर करता है, जैसे अपराध की गंभीरता, आरोपी व्यक्तियों और एजेंसियों की संख्या आदि।
  • उपर्युक्त कारकों के अलावा बलात्कार के कई मामलों में, पीड़ित/पीड़िता गहरे आघात/चोट के कारण आपबीती बताने की अवस्था में नहीं रहते।
  • जाँच की गति और गुणवत्ता इस बात पर भी निर्भर करती है कि क्या किसी पुलिस स्टेशन में जाँच और कानून-व्यवस्था की अलग-अलग इकाइयाँ हैं? यह एक लंबित पुलिस सुधार है, जिस पर अभी भी अमल किया जाना बाकी है।
  • जाँच का समय, उपलब्ध जाँच अधिकारियों और महिला पुलिस अधिकारियों की संख्या और फोरेंसिक प्रयोगशालाओं व उनकी डी.एन.ए. इकाइयों के आकार और उनकी कार्यकुशलता पर भी निर्भर करता है।

कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न की रोकथाम

किसी भी कार्यस्थल पर महिलाओं के साथ यौन उत्पीड़न नहीं हो इसके लिये आवश्यक है:

  • उन्हें कार्यस्थल पर अनुकूल वातावरण प्रदान करना।
  • कार्यस्थल पर महिलाओं के साथ यौन उत्पीड़न के विरुद्ध उचित कार्रवाई का प्रावधान।
  • उनकी नियुक्ति से जुड़ी वर्तमान एवं भविष्य की शर्तें स्पष्ट करना।
  • उनके कार्य में अकारण हस्तक्षेप तथा उन्हें डराने, धमकाने जैसे- व्यवहार नहीं करना।
  • माहिलाओं की सुरक्षा को प्रभावित करने वाले व्यवहार का विरोध करना।

निष्कर्ष

जाँच के लिये आवशयक समय सीमा को कम करने से प्रक्रियात्मक खामियों की संभावना बढ़ जाती है। इसलिये, अवास्तविक समय सीमा तय करने की बजाय, पुलिस को अतिरिक्त संसाधन दिये जाने चाहिये ताकि वे कुशलतापूर्वक जाँच कर सकें।

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