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रुपए के मूल्य में उतार-चढाव

(प्रारंभिक परीक्षा :आर्थिक और सामाजिक विकास, राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय महत्त्व की सामयिक घटनाएँ)
(मुख्य परीक्षा : सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र- 3: भारतीय अर्थव्यवस्था तथा योजना, संसाधनों को जुटाने, प्रगति, विकास तथा रोज़गार से संबंधित विषय)

संदर्भ

आर्थिक विशेषज्ञों का मानना है कि मुद्रा बाज़ार में विद्यमान उतार-चढाव के कारण रुपए के मूल्य के संबंध में किसी प्रकार की भविष्यवाणी बेहद चुनौतीपूर्ण होगी।

रुपए के मूल्य में उतार-चढाव के कारक

  • पहला, भारत का विदेशी मुद्रा भंडार (FOREX), जो काफी तेज़ी से बढ़ रहा है।
  • दूसरा, विदेशी पोर्टफोलियो निवेश (FPI) प्रवाह के कारण दैनिक उतार-चढ़ाव होते हैं।
  • तीसरा, डॉलर का बाहरी कारक अर्थात् जब अमेरिकी मुद्रा यूरो के मुकाबले मज़बूत होती है, तो रुपए में गिरावट आती है और जब कमज़ोर होती है तो इसके विपरीत की स्थिति होती है।
  • चौथा, वास्तविक प्रभावी विनिमय दर (Real Effective Exchange Rate-REER) की अवधारणा है, जिसमें सापेक्ष मुद्रास्फीति की भूमिका होती है।
  • यदि भारत में मुद्रास्फीति इसकी मुद्राओं के निर्यात बास्केट से संबंधित देशों की तुलना में अधिक है, तो रुपए का मूल्य अधिक होगा तथा यह मूल्यह्रास के माध्यम से ही सही होगा।

अमेरिकी केंद्रीय बैंक की नीतियाँ

  • डॉलर, अमेरिकी अर्थव्यवस्था के साथ-साथ इसके केंद्रीय बैंक ‘फेडरल रिज़र्व’ की नीतियों से भी संचालित होता है।
  • फेडरल रिज़र्व ने हाल में संकेत दिया है कि वह आने वाले वर्षों में मुद्रा की अपनी नीतिगत दरें बढ़ाएगा। यह डॉलर को मज़बूत करने और रुपए को कमज़ोर करने के लिये पर्याप्त है।
  • बैंक ने दरों में बढ़ोतरी की बात कही है, वो अमेरिकी अर्थव्यवस्था के लिये चिंता का संकेत है क्योंकि वहाँ मुद्रास्फीति तेज़ी से बढ़ रही है।
  • अमेरिकी नीतिगत दरों में वृद्धि के कारण वैश्विक निवेशकों का धन अमेरिका में वापस आ सकता है, क्योंकि डॉलर के सापेक्ष मूल्य में वृद्धि होगी। हालाँकि, मुद्रास्फीति के कारक को भी नज़रअंदाज नहीं किया जा सकता है।

भारत के फोरेक्स में वृद्धि

  • विदेशी मुद्रा भंडार में वृद्धि से संकेत प्राप्त हो रहा है कि भारत जितने डॉलर खर्च कर रहा है, उससे अधिक मात्रा में डॉलर मिल रहा है, इसलिये संयुक्त चालू और पूँजी खाते, अधिशेष की स्थिति में हैं।
  • यह एक आरामदायक स्थिति है, जिसे विशेषज्ञ मानते हैं कि ऐसी ही स्थिति बनी रहनी चाहिये तथा यह सुनिश्चित करना चाहिये कि भारत का बृहत् आर्थिक परिदृश्य मज़बूत रहे।
  • हालाँकि, इस वर्ष भारत का चालू खाता नकरात्मक रहने की आशंका है, क्योंकि आयात, निर्यात से अधिक है, लेकिन इसके बहुत अधिक नकारात्मक होने की संभावना नहीं है।
  • पूँजी खाते में वर्ष 2020-21 में भारी मात्रा में विदेशी निवेश प्राप्त हुआ था। इक्विटी में $60 बिलियन और कुल मिलाकर $80 बिलियन के साथ, यह वैश्विक स्तर पर सर्वाधिक था।
  • एफ.पी.आई. संख्या फेडरल रिज़र्व द्वारा प्रभावित होती है, लेकिन वर्तमान में यह सकारात्मक बनी हुई है। इसके अतिरिक्त, भारत के भीतर निम्न निवेश बाहरी वाणिज्यिक उधारी को धीमा कर सकता है।
  • आर्थिक विशेषज्ञों का मानना है कि मूल्यह्रास की ओर झुकाव के साथ रुपए को स्थिर रहना चाहिये।

बाह्य कारक

  • अमेरिकी संवृद्धि में सुधार को देखते हुए डॉलर को तार्किक रूप से मज़बूत होना चाहिये, जिस पर अब फेडरल रिज़र्व विशेष ध्यान दे रहा है।
  • भारत में मुद्रास्फीति अधिक हो रही है, अतः रुपए की वास्तविक प्रभावी विनिमय दर भी प्रभावित होगी।
  • जिस हद तक बाज़ार उक्त अवधारणा को समझता तथा इसका प्रयोग मूल्यांकन के लिये करता है, उससे यही आभास हो रहा है कि रुपया और नीचे ही जाएगा।
  •  साथ ही, रुपए पर भी दबाव कम होगा क्योंकि जिंसों की कीमतों में बढ़ोतरी से वैश्विक महँगाई भी बढ़ रही है। इसलिये भारतीय मुद्रास्फीति इतनी अधिक नहीं हो सकती कि अधिक मूल्यह्रास की गारंटी प्रदान करे।

भारतीय रिज़र्व बैंक का हस्तक्षेप

  • भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) द्वारा अधिशेष तरलता और उदार रुख अपनाने से रुपए की स्थिति पर कोई प्रभाव नहीं पड़ा है। अपनी अप्रैल की द्विमासिक नीति के जवाब में, जब आर.बी.आई. ने अपने उदासीन रुख की पुष्टि की, तो रुपया इस उम्मीद पर बढ़ने लगा कि अगर आर.बी.आई. उच्च मुद्रास्फीति और सरकार द्वारा बाज़ार से अत्यधिक उधार लेने के लिये दरों को कम रखता है, तो निवेशक संभावित रूप से बाहर हो जाएँगे।
  • सने डॉलर के मुकाबले रुपए को 75 के स्तर की ओर धकेल दिया, लेकिन यह समय के साथ पुनः पुराने स्तर पर वापस आ गया क्योंकि आर.बी.आई. ने तरलता का संचार करना जारी रखा और ‘यील्ड कर्व’ को प्रबंधित किया।
  • आर.बी.आई. की डॉलर खरीद पर ज़ारी आँकड़ों से ज्ञात हुआ कि अप्रैल में उसने $4.2 अरब  मूल्य की अमेरिकी मुद्रा खरीदी है।
  • वर्ष 2021-22 के प्रथम दो माह में निर्यात में वृद्धि हुई है, और इस स्तर पर, केंद्रीय बैंक रुपए के मूल्यह्रास को रोककर इस वृद्धि को रोकना नहीं चाहेगा।

निष्कर्ष

उक्त सभी कारकों को ध्यान में रखते हुए, कोई भी रुपए के 74-75 की सीमा से आगे बढ़ने की उम्मीद कर सकता है, जब तक कि किसी प्रकार का ‘आर्थिक शॉक’ न लगे, हालाँकि वर्तमान में इस प्रकार की कोई भी संभावना परिलक्षित नहीं हो रही है।

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