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S-400 समझौता और भारत की चिंताएँ

(प्रारम्भिक परीक्षा : राष्ट्रीय व अंतर्राष्ट्रीय महत्त्व की सामयिक घटनाएँ; मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र- 3 : भारत से सम्बंधित और भारत के हितों को प्रभावित करने वाले करार)

संदर्भ

हाल ही में, अमेरिका ने रूस से S-400 वायु रक्षा प्रणालियों की खरीद को लेकर तुर्की पर प्रतिबंध लगा दिया है। विदित है कि अमेरिका ने पिछले वर्ष F-35 जेट कार्यक्रम से तुर्की को बाहर कर दिया था। भारत भी S-400 वायु रक्षा प्रणाली की खरीद की तैयारी में है। ऐसी स्थिति में अमेरिका में होने वाले सत्ता परिवर्तन और नीतियों के बारे में भारत को सचेत रहने की आवश्यकता है।

S-400 वायुरक्षा मिसाइल प्रणाली 

  • S-400 प्रणाली को रूस ने डिज़ाइन किया है। यह लम्बी दूरी की सतह से हवा में मार करने वाली मिसाइल प्रणाली (SAM) है। इस प्रणाली को एक स्थान से दूसरे स्थान पर स्थानांतरित भी किया जा सकता है।
  • वर्तमान में यह विश्व की खतरनाक व अत्याधुनिक मिसाइल रक्षा प्रणाली है। इसे अमेरिका द्वारा विकसित ‘टर्मिनल हाई एल्टीट्यूड एरिया डिफेंस सिस्टम’ (THAAD) से भी बहुत उन्नत माना जाता है।
  • यह प्रणाली 30 किमी. तक की ऊँचाई और 400 किमी. की सीमा के भीतर विमानों, चालक रहित हवाईयानों (UAV), बैलिस्टिक और क्रूज़ मिसाइलों सहित सभी प्रकार के हवाई लक्ष्यों को भेद सकती है।
  • साथ ही, यह प्रणाली एक ही समय में 100 हवाई लक्ष्यों को ट्रैक करने के साथ छह लक्ष्यों को एक साथ भेद सकती है। यह रूस की लम्बी दूरी की मिसाइल रक्षा प्रणाली की चौथी पीढ़ी है।

S-400 प्रणाली की विशेषताएँ

  • S-400 की क्षमताएँ प्रसिद्ध अमेरिकी पैट्रियट प्रणाली के लगभग बराबर हैं। S-400 वायु रक्षा प्रणाली एक बहुक्रियात्मक रडार, लक्ष्य को स्वयं से पहचानने एवं उसे लक्ष्यीकृत करने की प्रणाली के साथ-साथ विमान-रोधी मिसाइल प्रणाली, लॉन्चर तथा कमांड एंड कंट्रोल सेंटर से सुसज्जित है।
  • यह प्रणाली बहुस्तरीय सुरक्षा प्रणाली बनाने के लिये तीन प्रकार की मिसाइलों को भेदने में सक्षम है। S-400 प्रणाली को पाँच मिनट के भीतर तैनात किया जा सकता है। साथ ही, इसे थल सेना, वायु सेना तथा नौसेना की मौजूदा और भविष्य की वायु रक्षा इकाइयों में भी एकीकृत किया जा सकता है।

परिचालन स्थिति

  • पहली S-400 प्रणाली वर्ष 2007 से परिचालन अवस्था में है, जिसे मॉस्को की सुरक्षा में तैनात किया गया है। रूसी और सीरियाई सेनाओं की सुरक्षा के लिये वर्ष 2015 में इसे सीरिया में तैनात किया जा चुका है।
  • हाल ही में, रूस ने अपनी स्थिति को मज़बूत करने के लिये क्रीमिया में S-400 प्रणाली को तैनात किया है।
  • वर्ष 2015 में चीन ने इस प्रणाली की छह बटालियन खरीदने के लिये समझौते किया, जिसकी डिलीवरी जनवरी 2018 में शुरू हुई।

भारत के लिये S-400 की आवश्यकता

  • चीन द्वारा S-400 प्रणाली के अधिग्रहण को इस क्षेत्र में एक गेम चेंजर के रूप में देखा जा रहा है। हालाँकि, भारत के विरुद्ध इसकी प्रभावशीलता सीमित है।
  • विशेषज्ञों के अनुसार इसे भारत-चीन सीमा पर तैनात किये जाने और हिमालय के पहाड़ी क्षेत्रों की ओर स्थानांतरित किये जाने की स्थिति में भी दिल्ली मुश्किल से ही इसकी परिधि में आएगी।
  • S-400 भारत के लिये दोहरे-मोर्चे (पाकिस्तान-चीन) पर युद्ध के साथ-साथ F-35 जैसे लड़ाकू विमान का सामना करने के लिये महत्त्वपूर्ण है।

सी.ए.ए.टी.एस.ए. (CAATSA)

  • सी.ए.ए.टी.एस.ए. का पूरा नाम- ‘काउंटरिंग अमेरिकाज़ एडवर्सरीज़ थ्रू सैंक्शंस एक्ट’ (Countering America’s Adversaries through Sanctions Act- CAATSA) है।
  • यह एक अमेरिकी संघीय कानून है जो ईरान, उत्तर कोरिया और रूस की आक्रामकता का सामना दंडात्मक व प्रतिबंधात्मक उपायों के माध्यम से करता है। इसके तहत अन्य प्रतिबंधों के साथ-साथ उन देशों/व्यक्तियों के खिलाफ भी प्रतिबंध लगाया जा सकता है जो रूस के साथ महत्त्वपूर्ण रक्षा एवं खुफिया सौदों में संलग्न हैं।
  • इस अधिनियम की धारा 235 में 12 प्रतिबंधों का उल्लेख किया गया है, जिसमें कुछ निर्यात लाइसेंस पर प्रतिबंध तथा प्रतिबंधित व्यक्तियों द्वारा इक्विटी/ऋण के माध्यम से अमेरिकी निवेश पर प्रतिबंध शामिल हैं।
  • हालाँकि, जुलाई 2018 में अमेरिका ने कहा था कि वह भारत, इंडोनेशिया और वियतनाम को सी.ए.ए.टी.एस.ए. प्रतिबंधों में छूट देने के लिये तैयार है।

अमेरिकी दृष्टिकोण में परिवर्तन के आसार

  • अमेरिकी चुनाव में रूसी हस्तक्षेप के आरोपों एवं  वैश्विक स्तर पर रूस की कार्रवाइयों के चलते अमेरिका सी.ए.ए.टी.एस.ए. के माध्यम से रूस के रक्षा व ऊर्जा व्यवसाय को प्रभावित करना चाहता है। इस प्रकार, यदि अमेरिका में सत्ता परिवर्तन के बाद रूस से तनाव में वृद्धि होती है तो यह भारत के हितों को प्रभावित कर सकता है।
  • सिप्री (SIPRI) के अनुसार वर्ष 2010 से 2017 की अवधि के दौरान रूस भारत का शीर्ष हथियार आपूर्तिकर्ता था। हालाँकि, इसी अवधि के दौरान भारत के हथियारों के आयात में रूसी हिस्सेदारी घटकर 68% रह गई, जो 2000 के दशक में 74% के उच्च स्तर पर थी। इस प्रकार, भारत के अधिकांश हथियार सोवियत/रूसी मूल के हैं।

भारत की चिंता

  • सी.ए.ए.टी.एस.ए. अधिनियम के अनुसार अमेरिकी विदेश विभाग ने 39 ऐसी रूसी संस्थाओं को अधिसूचित किया है, जिनके साथ समझौता करने वाले पक्षों पर प्रतिबंध लगाया जा सकता हैं। गौरतलब है कि S-400 की निर्माता कम्पनी उन 39 संस्थाओं की सूची में शामिल है। इस प्रकार सी.ए.ए.टी.एस.ए. को यदि कड़ाई से लागू किया जाता है, तो रूस से भारत की रक्षा खरीद प्रभावित होगी।
  • S-400 प्रणाली के अलावा ‘प्रोजेक्ट 1135.6’ के तहत युद्धपोत और ‘Ka226T हेलीकॉप्टर’ से सम्बंधित प्रक्रिया भी प्रभावित होगी। साथ ही, यह भारत-रूस एविएशन लिमिटेड, मल्टी-रोल ट्रांसपोर्ट एयरक्राफ्ट लिमिटेड और ब्रह्मोस एयरोस्पेस जैसे संयुक्त उपक्रमों को भी प्रभावित करेगा।
  • इसके अतिरिक्त, यह भारत के स्पेयर पार्ट्स (कल-पुर्जे), अन्य रक्षा घटकों, कच्चे माल और सहायक सामग्री की खरीद को भी प्रभावित करेगा।
  • उल्लेखनीय है कि पिछले कई वर्षों से भारत की रक्षा आपूर्ति में अमेरिकी हिस्सेदारी में महत्त्वपूर्ण वृद्धि हुई है और वह भारत के लिये एक प्रमुख हथियार आपूर्तिकर्ता बनना चाहता है। ऐसी स्थिति में सम्भव है कि अमेरिका भारत को सी.ए.ए.टी.एस.ए. के तहत प्राप्त छूट को निलम्बित न करे।

भारत को प्राप्त छूट का वैश्विक महत्त्व

  • इस छूट से भारत के रक्षा आयात में रूस के प्रभाव को कम करके अमेरिकी हिस्सेदारी बढ़ाने में मदद मिलेगी। साथ ही, यह भारत को अमेरिका के साथ रसद (Logistics) समझौते पर हस्ताक्षर करने के लिये प्रेरित किया है।
  • इसके अतिरिक्त, चीन को नियंत्रित करने के लिये हिंद-प्रशांत और क्वाड जैसे रणनीतिक मंच पर भारत का सहयोग प्राप्त करना आसान होगा।
  • इस छूट से उन सिद्धांतों को भी बल मिलता है कि एक सम्प्रभु देश के रूप में भारत के रणनीतिक हितों का निर्धारण कोई तीसरा देश नहीं कर सकता है।
  • ट्रम्प प्रशासन के अप्रत्याशित होने, वैश्विक शक्ति परिदृश्य में अनिश्चितता, चीन के अधिक मुखर होने और रूस को नए साझेदार की तलाश जैसी स्थितियों में भारत अपने हितों के अनुरूप निर्णय ले सकता है और किसी भी बड़ी शक्ति के साथ सम्बंधों के चलते भारत को किसी अन्य के विरोध का सामना नहीं करना पड़ेगा।

प्रिलिम्स फैक्ट्स :

  • नाटो समूह द्वारा S-400 प्रणाली को SA-21 ग्रोव्लेर (SA-21 Growler) नाम दिया गया है।
  • तुर्की नाटो समूह का पहला ऐसा देश है जिसके विरुद्ध सी.ए.ए.टी.एस.ए. अधिनियम का प्रयोग किया गया है।
  • अमेरिका की राजधानी वाशिंगटन डी.सी. है जो पोटोमैक नदी के किनारे स्थित है।
  • रूस की राजधानी मॉस्को, मोस्क्वा नदी (Moskva) के किनारे स्थित है।
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