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‘कृषि परिवारों की स्थिति आकलन’ रिपोर्ट 

(प्रारंभिक परीक्षा : राष्ट्रीय महत्त्व की सामायिक घटनाओं से सबंधित प्रश्न )
(मुख्य परीक्षा प्रश्नपत्र- 3; कृषि एवं किसान कल्याण से सबंधित विषय)

संदर्भ

हाल ही में जारी एन.एस.ओ. की ‘कृषि परिवारों की स्थिति आकलन’(SAAHरिपोर्ट में कृषि में सलंग्न परिवारों की संख्या को 93.09 मिलियन आंका गया है।  अप्रैल- जुलाई 2021 तिमाही की प्रधानमंत्री- किसान सम्मान निधि वितरित की गई, जिसमें लगभग 110.94 मिलियन लाभार्थी शामिल थे, वहीं पिछली कृषि जनगणना (2015- 16) में परिचालन जोतों का आकार 146.65 मिलियन था।  कृषक संख्या की यह विविधता भारतीय कृषि पर चर्चा के लिये आवश्यक हो जाती है।

प्रमुख बिंदु

  • कृषक संख्या में यह व्यापक विविधता मुख्यत: आंकलन की विभिन्न विधियों को लेकर है। कृषि जनगणना ऐसी भूमि की गणना करती है, जो पूर्णतया या आंशिक रूप से कृषि उत्पादन के लिये अकेले अथवा समूह में प्रबंधित हो, चाहे वह उपयोगकर्ता के स्वामित्व में न हो तथा उसे कृषक परिवार से सबंधित होने की भी आवशयकता नहीं है।
  • कृषि जनगणना सभी परिचालन जोतों की अलग-अलग गणना करती है, जबकि एस.ए.ए.एच. रिपोर्ट इन्हें पारिवारिक जोत के आधार पर आकलित करती है ऐसे में ‘पूर्णकालिक व नियमित किसानो’ की संख्या एस.ए.ए.एच. रिपोर्ट पर आधारित अधिक उचित प्रतीत होती है।
  • यह रिपोर्ट कृषि एवं गैर-कृषि स्रोतों, राज्यवार तथा जोतों के आकार के आधार पर कृषि घरेलू आय का आँकड़ा उपलब्ध कराती है, इसमें कृषि आय में फसल उत्पादन के साथ-साथ पशुपालन,जलीय कृषि तथा मधुमक्खी पालन, रेशम उत्पादन तो वहीं गैर- कृषि आय में मजदूरी, भूमि पट्टे पर देना, पेंशन तथा प्रेषण आय को शामिल किया गया है।
  • रिपोर्ट ‘नियमित किसानों’ को उन परिवारों के रूप में वर्गीकृत करती है जिनकी खेती से कुल प्राप्तियाँ सभी स्रोतों से उनकी कुल आय का कम से कम 50 प्रतिशत हैं।
  • उपरोक्त विधि अपनाने पर राज्यवार तथा जोतों के आकार के आधार पर विभिन्निता दिखाई पड़ती है।

रिपोर्ट का नीतियों पर प्रभाव

  • ‘कृषि नीति’ उन लोगों को लक्षित करने के लिये होनी चाहिये जो आजीविका के साधन के रूप में खेती पर वास्तव में निर्भर हैं।
  • न्यूनतम समर्थन मूल्य, सरकारी खरीद, कृषि बाज़ार सुधार, उर्वरक और अन्य इनपुट सब्सिडी, किसान क्रेडिट कार्ड ऋण, फसल बीमा या कृषि वस्तुओं पर निर्यात-आयात नीति मुख्य रूप से ‘नियमित किसानों’ के लिये अधिक महत्त्वपूर्ण है।
  • पीएम-किसान योजना को अधिक प्रभावी बनाने के लिये ‘नियमित किसानों’ की आय सहायता को बढ़ाया जाना चाहिये, ताकि उन्हें अपने कृषि व्यवसाय में बने रहने या विस्तार करने के लिए प्रोत्साहन मिल सके।

रिपोर्ट की चुनौतियाँ

  • रिपोर्ट केवल कृषि परिवारों की परिचालन जोत पर विचार करती है, जबकि एक घर के सदस्य अलग-अलग ज़मीन पर खेती कर सकते हैं।
  • यह सभी प्रकार की भूमियों को एक एकल उत्पादन इकाई के रूप में देखता है तथा यह एकाधिक होल्डिंग्स की गणना नहीं करता।
  • कृषि से अपनी आय का एक महत्त्वपूर्ण हिस्सा प्राप्त करने वाले किसानों की वास्तविक संख्या केवल 40 मिलियन है।
  • अखिल भारतीय स्तर पर कृषि कार्यों में संलग्न परिवारों द्वारा कुल आय का 50 प्रतिशत से अधिक कृषि आय से तभी प्राप्त किया जा सकता है, जब जोत का आकार एक हेक्टेयर से अधिक हो, जो देश के लगभग 70 प्रतिशत कृषि परिवारों के पास नहीं है।

आगे की राह

  • वर्तमान में अधिकांश भारतीय कृषक बटाईदार के रूप में है। कृषि भूमि के अभाव के कारण ये विभिन्न लाभकारी कृषक योजनाओं से वंचित रह जाते है, इन पर अधिक ध्यान देने की आवश्यकता है।
  • जोतों के विखंडन के कारण कृषि उत्पादन पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है, अत: चकबंदी के माध्यम से इस समस्या को दूर किया जा सकता है।
  • सरकार द्वारा भूमिहीन कृषकों को भूमि उपलब्ध कराकर नियमित किसानों की संख्या में वृद्धि की जा सकती है फलत: कृषि आय में वृद्धि होगी।
  • जोतो के छोटे आकार के कारण भारतीय कृषि क्षेत्र में हमेशा प्रछन्न बेरोजगारी की समस्या रही है, कृषि को खाद्य प्रसंस्करण क्षेत्र से और अधिक कुशलतापूर्वक जोड़कर इस समस्या से निजात पाई जा सकती है।
  • इसके अतिरिक्त, कृषि नीति को आपूर्ति मूल्य शृंखला से जोड़कर कृषकों की आय में वृद्धि की जा सकती है।

निष्कर्ष

वर्तमान में भारतीय कृषि विकासशील अवस्था में है। प्रौद्यौगिकी नवाचारों तथा उन्नत किस्मों के बीजों के प्रयोग से उत्पादन में लगातार वृद्धि हो रही है, तथापि उत्पादन लाभों को कृषकों तक पहुँचाने हेतु कुछ संस्थागत सुधारों की आवश्यकता है। तभी हम वर्ष 2022 तक कृषकों के आय को दुगुना करने के महत्त्वाकांक्षी लक्ष्य हासिल कर पाएँगे।

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