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मज़बूत भारत को मानवीय भारत होने की भी आवश्यकता

(प्रारंभिक परीक्षा : भारतीय राज्यतंत्र और शासन-अधिकारों संबंधी मुद्दे, राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय महत्त्व की सामयिक घटनाएँ )
(मुख्य परीक्षा, प्रश्न पत्र 2 और 4 : भारत के हितों पर विकसित तथा विकासशील देशों की नीतियों तथा राजनीति का प्रभाव; अंतर्राष्ट्रीय संबंधों में नैतिक मुद्दे)

संदर्भ

विगत दिनों आदिवासी कार्यकर्ता फादर स्टेन स्वामी का मुंबई के एक अस्पताल में निधन हो गया, जबकि उनकी ज़मानत का मामला बंबई उच्च न्यायालय में विचाराधीन था। उनके मामले की सुनवाई करने वाली पीठ ने पूरे प्रकरण पर खेद व्यक्त किया है।

पृष्ठभूमि

  • 84 वर्षीय स्वामी पार्किंसन रोग, श्रवण हानि, पीठ दर्द और सामान्यीकृत कमज़ोरी से पीड़ित थे
  • गैरकानूनी गतिविधि (रोकथाम) अधिनियम (UAPA) के तहत राष्ट्रीय जाँच एजेंसी (NIA) द्वारा अक्तूबर 2020 में गिरफ्तारी के बाद से ही उनका स्वास्थ्य बिगड़ना शुरू हो गया था।
  • न्यायालय के आदेश के पश्चात् मई के अंतिम सप्ताह में उन्हें एक निजी अस्पताल में ले जाया गया, लेकिन उनकी हालत और बिगड़ गई थी।
  • इस बीच न्यायालय ने उनकी ज़मानत अर्जी पर सुनवाई जारी रखी, लेकिन निर्णय नहीं आया।

    वैश्विक आलोचना

    • बंबई उच्च न्यायलय की तरह ही भारत और विदेशों में स्टेन स्वामी के कई प्रशंसकों ने हिरासत में हुई उनकी मृत्यु पर दुःख ज़ाहिर किया।
    • स्टेन स्वामी के साथ ‘भारतीय शासन एवं न्याय व्यवस्था’ के व्यवहार ने अंतर्राष्ट्रीय परिदृश्य की तरफ़ से तीखी आलोचना को आकर्षित किया है।
    • ‘संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार रक्षकों’ की स्थिति पर विशेष प्रतिवेदक ने उनकी मृत्यु के पश्चात् आरोप लगाया कि उन्हें ‘आतंकवाद के झूठे आरोपों’ में गिरफ्तार किया गया था।
    • यूरोपीय संघ में मानवाधिकारों से संबंधित विशेष प्रतिनिधि ने कहा कि यूरोपीय संघ भारतीय अधिकारियों के साथ इस मामले बार-बार प्रश्न उठा रहा था।
    • संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार उच्चायुक्त के प्रवक्ता ने दुःख व्यक्त किया तथा स्टेन स्वामी को आदिवासी और अन्य हाशिये के समूहों के अधिकारों पर सक्रिय कार्यकर्ता के रूप में वर्णित किया।
    • उक्त के अतिरिक्त अमेरिका के विदेश विभाग तथा अंतर्राष्ट्रीय धार्मिक स्वतंत्रता आयोग ने भी इस मामले पर दुःख व्यक्त करते हुए आलोचना की है।

    भारत सरकार का पक्ष

    • स्टेन स्वामी को ज़मानत देने से इनकार करते हुए विशेष एन.आई.ए. न्यायालय ने निष्कर्ष निकाला कि बरामद सामग्री प्रथमदृष्टया निरूपित करती है कि स्टेन स्वामी न केवल प्रतिबंधित संगठन ‘भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी’ (माओवादी) के सदस्य थे, बल्कि वह देश विरोधी गतिविधियों में भी संलिप्त थे।
    • अंतर्राष्ट्रीय पर्यवेक्षकों ने न तो उक्त राय पर स्पष्ट रूप से ध्यान दिया और न ही इसे विश्वसनीय माना। साथ ही, स्टेन स्वामी को एक ‘मानवाधिकार कार्यकर्ता’ के रूप में वर्णित किया है।
    • विदेश मंत्रालय ने बचाव किया कि भारत में प्राधिकरण कानून के उल्लंघन के विरुद्ध कार्य करते हैं, न कि अधिकारों के वैध प्रयोग के विरुद्ध।
    • विदेश मंत्रालय ने यह भी कहा कि भारत की लोकतांत्रिक और संवैधानिक राजनीति, स्वतंत्र न्यायपालिका, राष्ट्रीय और राज्य स्तर के मानवाधिकार आयोग मानव अधिकारों के उल्लंघन की निगरानी करते हैं।
    • एक स्वतंत्र मीडिया और जीवंत व मुखर नागरिक समाज अपने सभी नागरिकों के मानवाधिकारों के संवर्द्धन और संरक्षण के लिये प्रतिबद्ध होते हैं।

    सामान्य प्रस्थापना

    • हालाँकि, उक्त शब्दों को एक बीमार एवं वृद्ध व्यक्ति को ज़मानत से वंचित करने के आलोक से देखा गया क्योंकि अंतर्राष्ट्रीय राय के मुताबिक़ प्रभावशाली वर्गों द्वारा उन्हें आदिवासी लोगों का एक कार्यकर्ता माना जाता था, जो उनके अधिकारों के संरक्षण में सहायता करते थे।
    • इसके अतिरिक्त, इस तथ्य को बार-बार कहा जा रहा है कि जेल अधिकारियों को स्टेन स्वामी को स्ट्रा, सिपर और सर्दियों के कपड़े उपलब्ध कराने में लगभग एक महीने का समय लगा, क्योंकि पार्किंसन की बीमारी के कारण उनके लिये कप या गिलास रखना मुश्किल हो गया था।
    • उक्त पहलू के आलोक में विदेश मंत्रालय के बयान पर विशेष रूप से विदेशों में ईसाई चर्च समूहों ने सवाल उठाया क्योंकि स्टेन स्वामी एक पादरी थे। अतः उनके लिये इस मामले में दिलचस्पी लेना अस्वाभाविक नहीं है।

    कूटनीतिक पक्ष

    • यह सब विगत कुछ वर्षों की घटनाओं के संदर्भ में भी देखा जा रहा है, जब अंतर्राष्ट्रीय उदारवादी राय भारतीय समाज और राजनीति की दिशा के रूप में जो कुछ भी मानती है, उससे गहरा संबंध रखती है।
    • बेशक, भारत के मुख्य सुरक्षा हितों जैसे सीमा-पार आतंकवाद, राज्य के विरुद्ध हिंसा की विचारधारा तथा अन्य बातों के साथ-साथ निर्दोष जीवन की हानि के बारे में इस तरह की राय को बढ़ावा देने का कोई प्रश्न ही नहीं हो।
    • हालाँकि, कूटनीति के लिये अंतर्राष्ट्रीय उदारवादी राय के साथ जुड़ाव की आवश्यकता होती है, न कि केवल कमज़ोर व अनम्य सामान्य सिद्धांत की। 
    • लेकिन सरकार ने घरेलू या वैश्विक उदारवादी राय के साथ जुड़ने से इनकार किया है।

    मानवीय मूल्य

    • यह महसूस किया जाना चाहिये कि भले ही राष्ट्रीय सार्वजनिक संस्कृति और रीति-रिवाज अपने अंग्रेज़ी और फारसी दोनों अतीतों के अवशेष छोड़ना चाहते हैं, फिर भी मानवीयता के पुराने मूल्य को बनाए रखने की ज़रूरत है।
    • वस्तुतः एक मज़बूत और प्रभावी राज्य एक मानवीय राज्य भी हो सकता है और होना भी चाहिये, जो कि स्टेन स्वामी के मामले में शायद ही था।
    • सरकार को ज्ञात होना चाहिये कि जब भारत ने स्वतंत्रता के बाद अपने रास्ते को अपनाया, तो उसने रास्ते में आने वाली तमाम बाधाओं और चुनौतियों के बावजूद एक सत्तावादी शासन प्रणाली की बजाय एक लोकतांत्रिक और उदारवादी व्यवस्था को अपना साधन बनाया था।

    न्यायपालिका की राह

    • विशेष कानून, हिंसा से उत्पन्न होने वाली चुनौतियों का सामना करने के लिये आवश्यक हैं, जिनका सामान्य आपराधिक क़ानून के तहत सामना नहीं किया जा सकता है। हालाँकि, उनके अनुप्रयोग की निरंतर समीक्षा की भी आवश्यकता है।
    • चूँकि, विशेष कानूनों के तहत आरोपितों के लिये जेल नियम तथा ज़मानत अपवाद है, फिर भी इन आरोपों को साबित करने के लिये बहुत मज़बूत प्रमाण होने चाहिये।
    • हालाँकि, कुछ मामलों में स्पष्ट रूप से ऐसा नहीं है। नतीजतन, कई वर्षों तक जेल में रहने के दौरान अभियुक्तों को अभियोग से बरी कर दिया जाता है, जिससे स्पष्ट है कि उन्हें जेल भेजने के लिये आरंभ से ही अपर्याप्त प्रमाण थे।
    • यह अस्वीकार्य है और उच्च न्यायपालिका को ऐसे मामलों के ऑडिट के माध्यम से उपयुक्त समाधान करने की आवश्यकता है।

    निष्कर्ष

    फादर स्टेन स्वामी के मामले को इस तरह की ‘ऑडिट मशीनरी’ को स्थापित करने के लिये प्रोत्साहन देना चाहिये, क्योंकि भारत अपनी स्वतंत्रता के 75वें वर्ष के करीब है। यह अंतर्राष्ट्रीय राय को भी आश्वस्त करेगा कि भारत एक उत्तरदायी राज्य है।

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