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मनी लॉन्ड्रिंग रोकथाम अधिनियम (PMLA) पर सुप्रीम कोर्ट का फैसला

प्रारंभिक परीक्षा- PMLA
मुख्य परीक्षा- सामान्य अध्ययन, पेपर- 2 और 3

संदर्भ-

  • सुप्रीम कोर्ट ने 29 नवंबर,2023 को निर्णय दिया कि किसी व्यक्ति पर ‘धन शोधन निवारण अधिनियम’ (PMLA) के तहत आपराधिक साजिश का मामला तभी दर्ज किया जाएगा, जब साजिश विशेष रूप से अधिनियम में अपराध के रूप में सूचीबद्ध की गई हो।

मुख्य बिंदु-

  • सुप्रीम कोर्ट के समक्ष यह मामला एलायंस यूनिवर्सिटी के पूर्व वीसी द्वारा दायर याचिका के रूप में आया, जिस पर मनी लॉन्ड्रिंग के लिए मुकदमा चलाने की मांग की गई थी।
  • प्रवर्तन निदेशालय (ED) के अनुसार, उसने आरोपी को विश्वविद्यालय के धन को निकालने के लिए अपने बैंक खातों का उपयोग करने की सुविधा दी जिससे अपराध की आय से जुड़ी गतिविधि में सहायता मिली।
  • ED ने तर्क दिया कि  आईपीसी की धारा 120B PMLA की अनुसूची के भाग A में निहित है, भले ही आरोप अनुसूची में सूचीबद्ध नहीं किए गए कार्य को करने के लिए आपराधिक साजिश रचने का हो, अपराध एक अनुसूचित अपराध बन जाता है।

सुप्रीम कोर्ट का फैसला-

  • कोर्ट ने कहा कि धारा 120B लागू करके अनुसूची में शामिल नहीं किए गए प्रत्येक अपराध को अनुसूचित अपराध बनाना विधायिका का इरादा नहीं होना चाहिए।
  • न्यायमूर्ति ए.एस. ओका की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा, अनुसूची के भाग A में शामिल आईपीसी की धारा 120B के तहत अपराध केवल तभी अनुसूचित अपराध माना जाएगा, जब आपराधिक साजिश अनुसूची के भाग A, B या C में पहले से ही शामिल किसी अपराध को करने के लिए हो। 
  • दूसरे शब्दों में, आईपीसी की धारा 120B के तहत दंडनीय अपराध केवल तभी अनुसूचित अपराध माना जाएगा, जब कथित साजिश एक अपराध करने की हो जो अन्यथा एक अनुसूचित अपराध है।
  • कोर्ट ने प्रवर्तन निदेशालय (ED) के उस तर्क को खारिज कर दिया कि आईपीसी की धारा 120B को PMLA के अपराध अनुसूची के भाग A में शामिल किया गया था। इसलिए, भले ही आरोप किसी अपराध को करने के लिए आपराधिक साजिश रचने का था जो अनुसूची का हिस्सा नहीं था, अपराध एक अनुसूचित अपराध बन जाएगा।
  • कोर्ट ने कहा इस तर्क से तो किसी भी दंडात्मक कानून के तहत किसी भी अपराध को करने की साजिश, जो आय उत्पन्न करने में सक्षम है, को आईपीसी की धारा 120B लागू करके एक अनुसूचित अपराध में परिवर्तित किया जा सकता है, हालांकि यह अपराध अनुसूची का हिस्सा नहीं है।

धन शोधन निवारण अधिनियम (PMLA), 2002 के बारे में-

  • यह संसद द्वारा पारित एक अधिनियम है, जो मनी-लॉन्ड्रिंग को रोकने और मनी-लॉन्ड्रिंग से प्राप्त संपत्ति को जब्त करने का प्रावधान करने के लिए बनाया गया है।
  • अधिनियम के अनुसार, बैंकिंग कंपनियां, वित्तीय संस्थान और मध्यस्थ ग्राहकों की पहचान सत्यापित करने, रिकॉर्ड बनाए रखने और वित्तीय खुफिया इकाई - भारत (FIU-IND) को निर्धारित प्रपत्र में जानकारी प्रस्तुत करेंगे।

PMLA,2002 के मुख्य प्रावधान-

  • मुख्य परिभाषाएँ-
    1. कुर्की- उचित कानूनी आदेश द्वारा संपत्ति के हस्तांतरण, रूपांतरण, निपटान या संचलन पर प्रतिबंध।
    2. अपराध से प्राप्त आय- किसी अनुसूचित अपराध से संबंधित आपराधिक गतिविधि के परिणामस्वरूप किसी भी व्यक्ति द्वारा प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से अर्जित या प्राप्त की गई कोई संपत्ति।
    3. मनी-लॉन्ड्रिंग- जो कोई भी, प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से, किसी अन्य व्यक्ति को शामिल करने या उसकी सहायता करने का प्रयास करता है या जो वास्तव में आपराधिक आय से जुड़ी किसी गतिविधि में शामिल होता है और इसे बेदाग संपत्ति के रूप में चित्रित करता है।
    4. भुगतान प्रणाली- एक प्रणाली जो भुगतानकर्ता और लाभार्थी के बीच भुगतान को सक्षम बनाती है। इसमें क्रेडिट कार्ड, डेबिट कार्ड, स्मार्ट कार्ड, मनी ट्रांसफर या इसी तरह के संचालन को सक्षम करने वाली प्रणालियाँ शामिल हैं।

मनी लॉन्ड्रिंग के लिए सज़ा का प्रावधान-

  • अधिनियम में प्रावधान है कि मनी-लॉन्ड्रिंग का दोषी पाए जाने वाले किसी भी व्यक्ति को 3-7 साल तक के कारावास की सजा दी जाएगी।
  • जहां शामिल अपराध की आय नारकोटिक्स ड्रग्स एंड साइकोट्रोपिक सब्सटेंस एक्ट, 1985 के तहत किसी भी अपराध से संबंधित है, अधिकतम सजा 10 साल तक बढ़ सकती है।

निर्णायक अधिकारी- 

  • PMLA के तहत प्रदत्त अधिकार क्षेत्र, शक्तियों और अधिकार का प्रयोग करने के लिए अधिसूचना के माध्यम से केंद्र सरकार द्वारा निर्णायक अधिकारी की नियुक्ति की जाएगी। 
  • यह तय करता है कि कुर्क या जब्त की गई कोई भी संपत्ति मनी लॉन्ड्रिंग में शामिल है या नहीं।
  • यह सिविल प्रक्रिया संहिता,1908 द्वारा निर्धारित प्रक्रिया से बाध्य नहीं होगा, बल्कि प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों द्वारा निर्देशित होगा और PMLA के अन्य प्रावधानों के अधीन होगा।

अपीलीय न्यायाधिकरण-

  • यह भारत सरकार द्वारा निर्मित निकाय है और इसे अधिनियम के तहत निर्णय प्राधिकारी एवं किसी अन्य प्राधिकारी के आदेशों के खिलाफ अपील सुनने की शक्ति दी गई है।
  • ट्रिब्यूनल के आदेशों के खिलाफ उपयुक्त उच्च न्यायालय (उस क्षेत्राधिकार के लिए) और अंततः भारत के सर्वोच्च न्यायालय (एससी) में अपील की जा सकती है।

वित्तीय खुफिया इकाई - भारत (FIU-IND)-

  • इसे 2004 में भारत सरकार द्वारा संदिग्ध वित्तीय लेनदेन से संबंधित जानकारी प्राप्त करने, प्रसंस्करण, विश्लेषण और प्रसार के लिए जिम्मेदार केंद्रीय राष्ट्रीय एजेंसी के रूप में स्थापित किया गया था।
  • FIU-IND मनी लॉन्ड्रिंग और संबंधित अपराधों के खिलाफ वैश्विक प्रयासों को आगे बढ़ाने में राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय खुफिया, जांच और प्रवर्तन एजेंसियों के प्रयासों के समन्वय और मजबूती के लिए भी जिम्मेदार है।
  • FIU-IND एक स्वतंत्र निकाय है जो सीधे वित्त मंत्री की अध्यक्षता वाली आर्थिक खुफिया परिषद (EIC) को रिपोर्ट करता है।

प्रारंभिक परीक्षा के लिए प्रश्न-

प्रश्न- वित्तीय खुफिया इकाई - भारत (FIU-IND) के बारे में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिए।

  1. यह संदिग्ध वित्तीय लेनदेन से संबंधित जानकारी प्राप्त करने वाली केंद्रीय राष्ट्रीय एजेंसी है।
  2. यह एक स्वतंत्र निकाय है।
  3. यह अपना रिपोर्ट आर्थिक खुफिया परिषद (EIC) को देता है।

उपर्युक्त में से कितना/कितने कथन सही है/हैं?

(a) केवल एक

(b) केवल दो

(c) सभी तीनों

(d) कोई नहीं

उत्तर- (c)

मुख्य परीक्षा के लिए प्रश्न-

प्रश्न- किसी भी दंडात्मक कानून के तहत किसी भी अपराध को करने की साजिश, जो आय उत्पन्न करने में सक्षम है, को आईपीसी की धारा 120B लागू करके एक अनुसूचित अपराध में परिवर्तित किया जा सकता है। मूल्यांकन कीजिए।

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