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मातृभाषा में तकनीकी शिक्षा

(प्रारम्भिक परीक्षा : राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय स्तर की सामयिक घटनाएँ; मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र -2 : विषय - शिक्षा, मानव संसाधनों से सम्बंधित सामाजिक क्षेत्र/सेवाओं के विकास और प्रबंधन से सम्बंधित विषय।)

चर्चा में क्यों?

हाल ही में, केंद्रीय शिक्षा मंत्री ने मातृभाषा में छात्रों को तकनीकी शिक्षा प्रदान करने से सम्बंधित रोडमैप तैयार करने के लिये एक टास्कफोर्स (कार्यबल) का गठन किया है।

प्रमुख बिंदु :

कार्यबल :

  • अध्यक्षता : इसकी स्थापना उच्च शिक्षा सचिव की अध्यक्षता में की जाएगी।
  • उद्देश्य : छात्रों को मातृभाषा में व्यावसायिक पाठ्यक्रमों जैसे चिकित्सा, इंजीनियरिंग, कानून आदि की शिक्षा प्रदान करने के लक्ष्य को प्राप्त करना।
  • यह राष्ट्रीय शिक्षा नीति का भी हिस्सा है। जिसमें कक्षा 8 तक क्षेत्रीय भाषा में शिक्षण की बात की गई है ताकि छात्र पाठ्यक्रम को बेहतर तरीके से समझ पाएँ और पाठ्यक्रम को लेकर अधिक सहज हों।
  • कार्य : यह विभिन्न हितधारकों द्वारा दिये गए सुझावों को ध्यान में रखकर एक महीने में अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत करेगा।

क्षेत्रीय भाषाओं में तकनीकी शिक्षा प्रदान करने के कारण :

  • यह देखा गया है कि मानव मन उस भाषा में हुए संचार के प्रति अधिक ग्रहणशील होता है, जिस भाषा में वह बचपन से पला बढ़ा है। जब क्षेत्रीय भाषाओं में समझाया जाता है, विशेषकर मातृभाषा में, तो छात्रों द्वारा विचारों की अभिव्यक्ति को समझना काफी आसान हो जाता है।
  • दुनिया भर में, कक्षाओं में विभिन्न क्षेत्रीय भाषाओं में शिक्षण कार्य किया जाता है, चाहे वह फ्रांस या जर्मनी या रूस या चीन जैसा देश हो, जहाँ 300 से अधिक भाषाएँ और बोलियाँ हैं।
  • यह सामाजिक समावेशन, साक्षरता दर में सुधार और अंतर्राष्ट्रीय सहयोग में मदद करेगा। समावेशी विकास के लिये भाषा एक उत्प्रेरक बन सकती है। मौजूदा भाषाई बाधाओं को हटाने से समावेशी शासन के लक्ष्य को साकार करने में सहायता मिलेगी।

चुनौतियाँ : 

  • क्षेत्रीय भाषाओं में तकनीकी शिक्षा प्रदान करने के लिये आवश्यकता होती है-
    • कुशल शिक्षकों की, जो अंग्रेजी के साथ-साथ स्थानीय भाषा में भी विधिवत रूप से कक्षाएँ ले सकें
    • क्षेत्रीय भाषाओं में पुस्तकों और संदर्भ सामग्री की
    • तकनीकी सहायता जैसे ऑडियो अनुवाद आदि की।

स्पष्ट है कि अभी इन क्षेत्रों में बड़े स्तर पर कार्य किया जाना बाकी है।

क्षेत्रीय भाषाओं को बढ़ावा देने के लिये सरकार की पहलें :

  • हाल ही में, घोषित राष्ट्रीय शिक्षा नीति, 2020 क्षेत्रीय भाषाओं में शिक्षा को बढ़ावा देती है।
  • वैज्ञानिक और तकनीकी शब्दावली आयोग (Commission for Scientific and Technical Terminology- CSTT) क्षेत्रीय भाषाओं में विश्वविद्यालय स्तरीय पुस्तकों के प्रकाशन के लिये अनुदान प्रदान करता है। यह आयोग वर्ष 1961 में सभी भारतीय भाषाओं की तकनीकी शब्दावली विकसित करने के लिये स्थापित किया गया था।
  • भारतीय भाषाओं के केंद्रीय संस्थान (CIIL), मैसूर के माध्यम से राष्ट्रीय अनुवाद मिशन (National Translation Mission- NTM) का कार्यान्वयन हो रहा है, जिसके तहत विश्वविद्यालयों और कॉलेजों में निर्धारित विभिन्न विषयों की पाठ्य-पुस्तकों का आठवीं अनुसूची की भाषाओं में अनुवाद किया जा रहा है। सी.आई.आई.एल. की स्थापना वर्ष 1969 में शिक्षा मंत्रालय द्वारा की गई थी।
  • भारत सरकार लुप्तप्राय और संकटग्रस्त भाषाओं के संरक्षण के लिये ‘प्रोटेक्शन एंड प्रिज़र्वेशन ऑफ़ एनडेंजर्ड लैंग्वेजेज़’ नाम से एक योजना चला रही है।
  • विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (UGC) भी देश में उच्च शिक्षा के पाठ्यक्रमों में क्षेत्रीय भाषाओं को बढ़ावा देता है और ‘केंद्रीय विश्वविद्यालयों में लुप्तप्राय भाषाओं के लिये केंद्र की स्थापना’ योजना के तहत नौ केंद्रीय विश्वविद्यालयों को अनुदान व सहायता प्रदान करता है।
  • हाल ही में, केरल सरकार की एक पहल ‘नमथ बसई’ द्वारा आदिवासी क्षेत्रों के बच्चों को स्थानीय भाषा में शिक्षा प्रदान करने की चर्चा देशभर में हुई और यह बच्चों के लिये काफी हद तक फायदेमंद भी साबित हुआ।

वैश्विक प्रयास :

  • वर्ष 2018 में चांग्शा, चीन में यूनेस्को द्वारा की गई यूले उद्घोषणा ने विश्वभर में भाषाई विविधता और संसाधनों की रक्षा करने की दिशा में केंद्रीय भूमिका निभाई है।
  • संयुक्त राष्ट्र महासभा ने वर्ष 2019 को स्थानिक भाषाओं का अंतर्राष्ट्रीय वर्ष (International Year of Indigenous Languages- IYIL) घोषित किया था। इसका उद्देश्य राष्ट्रीय, क्षेत्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर स्थानिक भाषाओं के अस्तित्व की रक्षा, उनका समर्थन और उन्हें बढ़ावा देना था।

आगे की राह

  • विभिन्न देशों ने अंग्रेजी के स्थान पर अपनी मातृभाषा में शिक्षा प्रदान करने में सफलता हासिल की है और उन देशों से विश्व स्तर के वैज्ञानिक, शोधकर्ता, तकनीशियन और विचारक अपनी प्रसिद्धि बिखेर रहे हैं। भाषा की बाधा तभी तक है जब तक सम्बंधित भाषा में उचित प्रोत्साहन का अभाव है। सरकार को क्षेत्रीय भाषाओं में मूल वैज्ञानिक लेखन और पुस्तकों के प्रकाशन को प्रोत्साहित करना चाहिये ताकि लोगों में स्थानिक भाषाओं को लेकर जागरूकता और जिज्ञासा बढ़े।
  • साथ ही, विभिन्न अध्ययनों से पता चला है कि कम उम्र में यदि बच्चों को अभ्यास कराया जाए तो वे कई भाषाएँ सीख सकते हैं। अतः अग्रेज़ी भाषा के साथ ही स्थानीय भाषाओं को भी समान रूप से पढ़ाया जा सकता है। 
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