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गृहिणियों की आर्थिक सुरक्षा का मुद्दा

संदर्भ

वर्तमान में विभिन्न दक्षिण भारतीय राज्यों में चुनावी तैयारियाँ चल रहीं हैं। इस दौरान विभिन्न राजनीतिक दलों द्वारा जारी किये गए घोषणापत्रों में घरेलू कार्यों के लिये आर्थिक सुरक्षा प्रदान करने की घोषणा की गई है। उदाहरण के लिये, केरल की सत्तारूढ़ सरकार ने अपने घोषणापत्र में घरेलू कार्यों के लिये लोगों को पेंशन देने की घोषणा की है।

ऐतिहासिक पृष्ठभूमि

  • वर्ष 1972 में इटली में ‘घरेलू कार्यों के लिये वेतन’ (International Wages for Housework Campaign) अभियान आरंभ हुआ था। इसमें घरेलू कार्यों के लिये भुगतान की बात की गई थी। आगे चलकर यह अभियान अमेरिका एवं ब्रिटेन में भी फैल गया।
  • वर्ष 2012 में महिला एवं बाल विकास मंत्री ने बताया था कि सरकार पतियों से पत्निओं को घरेलू कार्यों के लिये अनिवार्य रूप से वेतन दिलाने पर विचार कर रही थी। 

वेतन देने के पक्ष में तर्क

  • समानता के लिये महत्त्वपूर्ण– घरेलू कार्यों के लिये वेतन प्रदान किये जाने के परिणामस्वरूप महिलाओं के घरेलू कार्यों को भी पुरुषों के कार्यों के समान मान्यता प्राप्त हो सकेगी। इससे महिला सशक्तीकरण तथा समानता की भावना और बलवती होगी।
  • सामाजिक सुरक्षा के लिये महत्त्वपूर्ण– घरेलू कार्यों को मान्यता प्राप्त होने से महिलाओं के कार्यों को भी अन्य व्यवसायों, जैसे- शिक्षक, चिकित्सक इत्यादि की तरह सम्मान प्राप्त होगा। इसके अतिरिक्त, इस व्यवस्था से उनकी सामजिक सुरक्षा भी सुनिश्चित की जा सकेगी।
  • घरेलू हिंसा में कमी– घरेलू कार्यों के लिये वेतन प्रदान करने की व्यवस्था से महिलाएँ न सिर्फ आत्मनिर्भर बन सकेंगी, बल्कि उनके प्रति होने वाले हिंसक आचरण व दुर्व्यवहार के मामलों में भी कमी आएगी। 

वेतन देने के विपक्ष में तर्क

  • पितृसत्तात्मक मानसिकता में वृद्धि– घरेलू कार्यों के लिये महिलाओं को वेतन देने से यह अवधारणा मजबूत होगी कि घरेलू एवं देखभाल संबंधी कार्य सिर्फ महिलाओं की ही ज़िम्मेदारी है। इससे न केवल पितृसत्तात्मक मानसिकता सुदृढ़ होगी बल्कि लैंगिक विभाजन को भी बल मिलेगा।
  • प्रभावी क्रियान्वयन में समस्या– इस व्यवस्था का प्रभावी क्रियान्वयन भी अत्यंत कठिन है। उदाहरण के लिये, भारत में महिलाओं को अभी भी अनेक अधिकार प्राप्त हैं, किंतु उनका प्रभावी क्रियान्वयन संभव नहीं हो पाता है।
  • महिलाओं की प्रतिभा अप्रयुक्त रहने की संभावना– घरेलू कार्य को मान्यता मिलने से कई प्रतिभाशाली महिलाएँ स्वयं को घरेलू कार्यों में ही सलग्न रखकर संतुष्ट हो सकती हैं। इससे इस बात की पर्याप्त संभावना है कि उनकी प्रतिभा अप्रयुक्त रह जाए।
  • सामाजिक अलगाव की समस्या– महिलाओं को घरेलू कार्यों के लिये वेतन देने से उनके घर की चारदीवारी में कैद होने की संभावना में वृद्धि होगी। यह उनके सामाजिक अलगाव की समस्या को बढ़ाएगा। इसके अलावा, इस व्यवस्था से घरेलू कार्यों में महिला-पुरुष सहयोग में भी कमी आएगी।
  • राजकोष पर अतिरिक्त बोझ– अभी यह निश्चित नहीं किया जा सका है कि महिलाओं को घरेलू कार्यों के लिये वेतन का भुगतान किसके द्वारा किया जायेगा। यदि यह भुगतान राज्य द्वारा किया जाता है तो इससे राजकोष पर अतिरिक्त बोझ पड़ेगा।

भारतीय श्रमबल और महिलाएँ

  • हाल के दिनों में महिलाओं को घरेलू कार्यों के लिये वेतन प्रदान किये जाने के विषय को दक्षिण भारत के कुछ राजनीतिक दलों द्वारा बड़े जोर-शोर से उठाया जा रहा है। परंतु इससे महिला रोज़गार के प्रति राजनीतिक दलों की उदासीनता को नजरंदाज़ नहीं किया जा सकता है।
  • कोविड-19 महामारी के पहले से ही महिलाओं की कार्यबल भागीदारी में गिरावट देखी जा रही है। विभिन्न आँकड़ों के अनुसार महामारी की अवधि में महिलाओं के रोज़गार में 11% की कमी आई। महिला रोज़गार में आई यह गिरावट चिंता का विषय है। परंतु इस महत्त्वपूर्ण बिंदु की तरफ किसी भी राजनीतिक दल ने ध्यान नहीं दिया है।
  • सरकारी तंत्र का हिस्सा होते हुए भी आशा कार्यकर्ता, आँगनबाड़ी कार्यकर्ता एवं अन्य योजनाओं से जुड़े कार्यकर्ताओं को न तो श्रमिक के रूप में स्वीकार किया जाता है और न ही श्रमिकों से संबंधित कोई अधिकार प्रदान किये जाते हैं।
  • आवधिक श्रम बल सर्वेक्षण (Periodic Labour Force Survey) 2018 -19 के आँकड़ों के अनुसार, पुरुष और महिला श्रमिकों के बीच मजदूरी का काफी अंतर है।

निष्कर्ष

घरेलू कार्यों के लिये महिलाओं को वेतन दिया जाना उनके सशक्तीकरण के लिये प्रभावी कदम हो सकता है। परंतु इससे भी ज्यादा महत्त्वपूर्ण है कि उन्हें इस योग्य बनाया जाए कि  वे यह तय कर सकें की उन्हें घर के अंदर काम करना है या घर के बाहर। इसके लिये यह आवश्यक है कि गुणवत्तापूर्ण शिक्षा तक उनकी पहुँच सुनिश्चित की जाए एवं कार्यस्थलों पर लैंगिक संवेदनशील एवं उत्पीड़न मुक्त वातावरण का निर्माण किया जाए।

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