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भारत-रूस संबंधों के पुनर्परीक्षण का समय

(प्रारंभिक परीक्षा- राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय महत्त्व की सामयिक घटनाएँ)
(मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र- 2 : भारत एवं इसके पड़ोसी देशों के साथ संबंध, भारत के हितों पर विकसित तथा विकासशील देशों की नीतियों तथा राजनीति का प्रभाव)

संदर्भ

हाल ही में, रूस के विदेश मंत्री ने भारत का दौरा किया था। इस दौरान दोनों देशों के विदेश मंत्रियों ने परंपरागत भारत-रूस संबंधों को सुदृढ़ करने पर ज़ोर दिया। उल्लेखनीय है कि रूसी विदेश मंत्री की यह यात्रा वार्षिक शिखर सम्मेलन के लिये रूसी राष्ट्रपति की आगामी यात्रा की तैयारियों से भी संबंधित है।

वर्तमान द्विपक्षीय स्थिति और चर्चा के प्रमुख बिंदु

  • द्विपक्षीय मोर्चे पर भारत और रूस के रणनीतिक सहयोग ऊर्जा, परमाणु और अंतरिक्ष के क्षेत्रों में हैं। इसके अलावा, दोनों देशों ने यूरेशियाई आर्थिक संघ (ई.ए.ई.यू.) के साथ मुक्त व्यापार समझौते पर भी महत्त्वपूर्ण वार्ता की।
  • साथ ही, दोनों देशों के मध्य हथियारों के संयुक्त उत्पादन तथा अन्य सैन्य-तकनीकी सहयोग को लेकर भी चर्चा हुई। इसके अलावा, रूस ने भारत को ‘अत्याधुनिक सैन्य प्रौद्योगिकी’ की आपूर्ति करने वाला एकमात्र सहभागी माना है।
  • दोनों पक्षों के मध्य ‘अंतर्राष्ट्रीय उत्तर-दक्षिण परिवहन गलियारे’ और ‘चेन्नई-व्लादिवोस्तोक पूर्वी समुद्री गलियारे’ सहित कनेक्टिविटी के क्षेत्र में अधिक निवेश करने को लेकर भी चर्चा हुई। लेकिन रक्षा साझेदारी के प्रति अपनी प्रतिबद्धता व्यक्त करते हुए किसी भी पक्ष ने S-400 मिसाइल रक्षा प्रणाली की डिलीवरी के बारे में स्पष्ट रूप कोई जिक्र नहीं किया।

अफगानिस्तान शांति समझौते के संदर्भ में

  • अफगानिस्तान के मुद्दे पर देखा जाए तो काबुल में सत्ता-साझाकरण व्यवस्था में रूस द्वारा तालिबान को शामिल करने का प्रयास किया गया, जो भारत के ‘लोकतांत्रिक अफगानिस्तान’ बनाने के निरंतर किये जा रहे प्रयास के विपरीत है।
  • विदित है कि मार्च में रूस में संपन्न हुई अफगानिस्तान शांति प्रक्रिया की बैठक में पाकिस्तान व चीन जैसे पड़ोसी देश तथा अमेरिका व रूस जैसी अंतर्राष्ट्रीय शक्तियाँ तो शामिल रहे, जबकि भारत को इससे बाहर रखा गया था।
  • इसके लिये पाकिस्तान ने रूस के प्रयासों की सराहना भी है। पाकिस्तान ने पारंपरिक रूप से अफगान शांति प्रक्रिया में भारत की भागीदारी को सीमित करने पर ज़ोर दिया है।

 रूस-चीन के मज़बूत होते संबंध

  • अमेरिका-चीन और अमेरिका-रूस के मध्य मतभेद गहरे हो रहे है। इस बीच, रूसी विदेश मंत्री लावरोव ने कहा कि वर्तमान में चीन-रूस (Sino-Russia) संबंध इतिहास में सर्वश्रेष्ठ स्तर पर हैं।
  • साथ ही, रूसी विदेश मंत्री ने कहा कि आर्थिक, वित्तीय और राजनीतिक प्रभाव के नए केंद्रों के मज़बूत होने के साथ अंतर्राष्ट्रीय स्थिति में महत्त्वपूर्ण परिवर्तन हो रहा है। विदित है कि ‘चीन’ रूस का सबसे बड़ा व्यापार भागीदार है।
  • चीन-रूस संबंधों को क्वाड को प्रतिसंतुलित करने के रूप में भी देखा जा सकता है। चीन और रूस ने इस क्षेत्र में देशों की सुरक्षा चिंताओं को दूर करने के लिये एक नया ‘क्षेत्रीय सुरक्षा संवाद मंच’ स्थापित करने का प्रस्ताव किया है।
  • विदित है कि कुछ समय पूर्व चीन और रूस के अंतरिक्ष प्रशासन ने अंतर्राष्ट्रीय चंद्र अनुसंधान केंद्र (ILRS) के निर्माण के लिये पहली सहयोगी अंतरिक्ष परियोजना की घोषणा की थी।

रूस और पाकिस्तान के संबंध तथा भारत

  • रूसी विदेश मंत्री के भारत दौरे के समय प्रधानमंत्री मोदी ने उनसे मुलाकात नहीं की, जबकि अगले ही दिन प्रधानमंत्री मोदी ने अमेरिका के विशेष दूत जॉन केरी से मुलाकात की। इसके अतिरिक्त, लावरोव की पकिस्तान यात्रा के दौरान उनकी अगुवानी पाकिस्तानी प्रधानमंत्री और सेना प्रमुख ने की।
  • लावरोव की विगत नौ वर्षों में पाकिस्तान की यह पहली यात्रा थी, जो संबंधों में प्रगाढ़ता का एक स्पष्ट संदेश था। पाकिस्तान ने भी रूस के साथ अपने संबंधों को विदेश नीति के लिये प्राथमिक माना है।
  • विदित है कि ‘रूस’ कराची के दक्षिणी बंदरगाह शहर और पूर्वी लाहौर गैस पाइपलाइन के निर्माण में भी शामिल है। रूस के ‘यूरेशियाई आर्थिक संघ’ और ‘महान यूरेशिया’ दृष्टिकोण के लिये भी पाकिस्तान महत्त्वपूर्ण है।
  • रूस ने अमेरिका सहित लगभग 45 देशों के साथ 7वें बहुराष्ट्रीय नौसेना अभ्यास ‘अमन-2021’ में भी हिस्सा लिया था, जिसका आयोजन पाकिस्तान फरवरी 2021 में किया गया था।
  • साथ ही, लावरोव ने कहा कि रूस, पाकिस्तान के आतंकवाद-रोधी प्रयासों को गति देने के लिये ‘उपयुक्त उपकरणों’ की आपूर्ति करने के लिये तैयार है। यह इस बात का संकेत है कि भारत और रूस के मध्य वर्तमान संबंध पारंपरिक संबंधों की तुलना में कमज़ोर हो रहे हैं।

निष्कर्ष

  • भारतीय विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने कई बार वैश्विक नज़रिये में बदलाव के संकेत दिये है। इसी क्रम में उन्होंने सार्वजनिक मंचों से अंतर्राष्ट्रीय संबंधों की ‘पुनर्संतुलनकारी प्रकृति’ का भी ज़िक्र किया है। रूस और चीन के विदेश मंत्रियों के बीच जो गर्मजोशी देखी गई, वैसी भारत और रूस के मध्य नहीं देखी गई।
  • भारत के ‘हिंद-प्रशांत’ रणनीतिक दृष्टिकोण की अपेक्षा लावरोव ने ‘एशिया-प्रशांत’ क्षेत्र को अधिक प्राथमिकता दी है। उल्लेखनीय है कि एशिया-प्रशांत क्षेत्र में चीन और पाकिस्तान जैसे देश भी शामिल है।
  • साथ ही, रूस द्वारा अप्रत्यक्ष रूप से ही सही, लेकिन ‘क्वाड’ को ‘एशियाई नाटो’ के रूप में संदर्भित करना भी अत्यंत महत्त्वपूर्ण है। हालाँकि, दोनों पक्ष इस बात पर अवश्य सहमत थे कि एशिया में सैन्य गठजोड़ अनुपयुक्त, असंगत और निरर्थक है।
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