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महामारी का प्रकोप झेलती महिला श्रमिक

(प्रारंभिक परीक्षा : आर्थिक और सामाजिक विकास- सतत् विकास, गरीबी, समावेशन, जनसांख्यिकी, सामाजिक क्षेत्र में की गई पहल आदि)
(मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र – 3 : भारतीय अर्थव्यवस्था तथा योजना, संसाधनों को जुटाने, प्रगति, विकास तथा रोज़गार से संबंधित विषय)

संदर्भ

कोविड-19 महामारी ने लाखों आजीविकाओं को नष्ट कर गरीबी में आकस्मिक और व्यापक वृद्धि की है तथा भारतीय श्रम बाज़ार में बड़ा व्यवधान उत्पन्न किया है। विशेष रूप से, महिला कामगारों पर इसका अधिक असर पड़ा है। इसने महिलाओं की आय, स्वास्थ्य व सुरक्षा को नकारात्मक रूप से प्रभावित किया है।

रोज़गार में व्यापक लैंगिक अंतराल

  • यूँ तो वर्ष 2020 से पहले भी रोज़गार में बड़े स्तर पर लैंगिक विषमता विद्यमान थी। लगभग 75% पुरुषों की तुलना में केवल 18% कार्यशील महिलाएँ ही कार्यरत थीं। इसके लिये अच्छी नौकरियों का अभाव, भेदभावमूलक सामाजिक मानदंड और घरेलू काम का बोझ इत्यादि कारक ज़िम्मेदार हैं।
  • राष्ट्रव्यापी लॉकडाउन ने पुरुषों की अपेक्षा महिलाओं को ज़्यादा प्रभावित किया है। ‘सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकोनॉमी प्राइवेट लिमिटेड’ के आँकड़ों के अनुसार, लॉकडाउन के दौरान 61% पुरुष श्रमिक अप्रभावित रहे, जबकि केवल 19% महिलाओं को रोज़गार की सुरक्षा मिली। इसके अलावा, वर्ष 2020 के अंत तक लॉकडाउन के दौरान बेरोज़गार हुई 47% रोज़गार-प्राप्त महिलाएँ काम पर नहीं लौटीं, जबकि इस श्रेणी के पुरुष महज़ 7% थे।
  • हालाँकि अनिश्चितता में वृद्धि तथा कम आय के बावजूद बेरोज़गार हुए पुरुष श्रमिक पुनः रोज़गार प्राप्त करने में सक्षम थे क्योंकि उनके पास रोज़गार के विभिन्न विकल्प मौजूद थे, जबकि महिलाओं के पास पुरुषों की तुलना में रोज़गार के विकल्प कम थे।
  • महिलाओं के पास दैनिक वेतन भोगी रोज़गार के, जबकि पुरुषों के पास स्वरोज़गार के विकल्प अधिक थे। चूँकि दैनिक मजदूरी की अपेक्षा स्वरोज़गार अधिक आय वाला होता है, अतः पुरुषों की अपेक्षा महिलाओं के लिये आय की संभावनाएँ भी कम रहीं।

घरेलू कार्य में वृद्धि

  • शिक्षण संस्थान बंद होने तथा सभी सदस्यों के अपने घर में रहने के कारण महिलाओं की घरेलू जिम्मेदारियाँ बढ़ गईं। यहाँ तक कि रोज़गार करने वाली महिलाओं के लिये भी घरेलू कार्य का बोझ बढ़ा।
  • ‘इंडिया वर्किंग सर्वे, 2020’ के अनुसार, महामारी के दौरान नियोजित पुरुषों के कार्य के घंटे कमोबेश अपरिवर्तित रहे, जबकि महिलाओं के लिये घरेलू कार्य के घंटों में व्यापक वृद्धि हुई।

सरकार द्वारा किये गए प्रयास

  • ग्रामीण क्षेत्रों में ‘दीनदयाल अंत्योदय योजना–राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन’ (DAY–NRLM) के अंतर्गत शिक्षकों को प्रशिक्षित किया गया ताकि महामारी से बेहतर तरीके से निपटा जा सके तथा टीकाकरण अभियान की सफलता सुनिश्चित की जा सके।
  • इसके अलावा, प्रमुख प्रशिक्षकों द्वारा 1,14,500 कम्युनिटी रेस्पॉन्स पर्सन्स (CRP) को तथा सी.आर.पी. के द्वारा स्वयं सहायता समूह की करीब 2.5 करोड़ महिलाओं को प्रशिक्षित किया गया।
  • राहत प्रदान करने व रोज़गार उत्पन्न करने के लिये वित्त वर्ष 2021-22 में करीब 56 करोड़ रुपए का ‘रिवॉल्विंग फंड’ और ‘कम्युनिटी इनवेस्टमेंट फंड’ महिला स्वयं सहायता समूहों के लिये जारी किया गया।
  • इसी अवधि के दौरान कर्मचारियों और सामुदायिक वर्गों के लिये कृषि व गैर-कृषि आधारित आजीविका सुनिश्चित करने तथा एस.एच.जी. परिवारों के लिये कृषि-पोषक उद्यानों को बढ़ावा देने के लिये ऑनलाइन प्रशिक्षण की व्यवस्था भी की गई।

आगे की राह

  • राष्ट्रीय रोज़गार नीति के तहत महिला द्वारा रोज़गार हासिल करने संबंधी बाधाओं को दूर किया जाए तथा सामाजिक बुनियादी ढाँचे में सार्वजनिक निवेश बढ़ाया जाए।
  • ‘महात्मा गाँधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोज़गार गारंटी अधिनियम’ (मनरेगा) का विस्तार किया जाए तथा और शहरी महिलाओं के लिये भी रोज़गार गारंटी योजना शुरू की जाए।
  • सामुदायिक रसोई की स्थापना करना, विद्यालयों व आँगनवाड़ी केंद्रों को खोलना, स्वयं सहायता समूहों को बढ़ावा देना आदि उपाय महिला रोज़गार में वृद्धि कर सकते हैं।
  • 25 लाख मान्यता प्राप्त सामाजिक स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं और आँगनवाड़ी कार्यकर्ताओं को छः माह तक 5,000 रुपए प्रतिमाह कोविड-19 आपदा भत्ता दिया जाना चाहिये।
  • एक ‘सार्वभौमिक बुनियादी सेवा कार्यक्रम’ आरंभ किया जाए, जो सामाजिक क्षेत्र में विद्यमान रिक्तियों को पूरा करने के साथ स्वास्थ्य, शिक्षा, बच्चों व बुजुर्गों की देखभाल में सार्वजनिक निवेश का विस्तार कर सके।
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