New
Holi Offer: Get 40-75% Discount on all Online/Live, Pendrive, Test Series & DLP Courses | Call: 9555124124

शॉर्ट न्यूज़: 01 फरवरी , 2021

शॉर्ट न्यूज़: 01 फरवरी , 2021


गर्भपात पर चिकित्सा समिति की व्यवहार्यता

नवाचार में अनुसंधान और विकास

बार्गी (Bargis)


गर्भपात पर चिकित्सा समिति की व्यवहार्यता

संदर्भ

एक नए अध्ययन के अनुसार, ‘गर्भ का चिकित्सकीय समापन संशोधन विधेयक, 2020’ में 24 सप्ताह से अधिक की गर्भावस्था को समाप्त करने का निर्णय लेने के लिये डॉक्टरों के पैनल का प्रस्ताव ‘अव्यवहार्य’ है।

कारण

  • अध्ययन के अनुसार, इसका प्रमुख कारण देश में 82% प्रसूति व स्त्री रोग (Obstetrics-Gynaecology), बाल रोग (Paediatric) तथा अन्य विशेषज्ञ पदों का खाली होना है।
  • इस रिपोर्ट में सर्जन, प्रसूति और स्त्री रोग विशेषज्ञ, चिकित्सकों और बाल रोग विशेषज्ञों सहित अन्य विशेषज्ञों की ज़िलेवार उपलब्धता का विश्लेषण किया गया, जिसमें पाया गया कि वर्ष 2015 से 2019 के बीच प्रत्येक वर्ष में इनके 71% से 8% के बीच पद खाली थे। यह आँकड़ा स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय के ग्रामीण स्वास्थ्य सर्वेक्षण पर आधारित है।
  • यह कमी उत्तर-पूर्व में अधिक थी, जिनमें सिक्किम, मिजोरम और मणिपुर शामिल हैं। इसके अतिरिक्त अरुणाचल प्रदेश और मेघालय में बाल रोग विशेषज्ञों की 100% कमी है।

गर्भ का चिकित्सकीय समापन संशोधन विधेयक, 2020

  • यह विधेयक ‘गर्भ का चिकित्सकीय समापन अधिनियम, 1971’ (Medical Termination of Pregnancy- MTP) में संशोधन के उद्देश्य से मार्च, 2020 में राज्य सभा में पेश किया गया था।
  • विधेयक में हर राज्य और केंद्रशासित प्रदेश में एक मेडिकल बोर्ड के गठन सहित कई संशोधनों का प्रस्ताव है, जो भ्रूण की असामान्यताओं के मामलों में 24 सप्ताह से अधिक के गर्भधारण पर निर्णय करेगा।
  • प्रत्येक बोर्ड में एक स्त्री रोग विशेषज्ञ, एक रेडियोलॉजिस्ट या सोनोलॉजिस्ट, एक बाल रोग विशेषज्ञ और राज्य/यू.टी. सरकारों द्वारा निर्धारित अन्य सदस्य होंगे।

कमियाँ

  • यह विधयेक अधिकार आधारित ढाँचे में फिट नहीं है क्योंकि मेडिकल बोर्ड गर्भवती महिलाओं से उनकी स्वायत्तता छीन लेता है। साथ ही, यह कानूनी सुधार कई लोगों के लिये गर्भपात को अधिक चुनौतीपूर्ण बना देगा, जिसमें विशेष रूप से हाशिये पर स्थित समूह शामिल हैं।
  • यदि बोर्ड बना दिये जाते हैं, तो अधिक दूरदराज़ के क्षेत्रों में रहने वाली गर्भवती महिलाओं को यात्रा में आने वाली लागतों के कारण उन पर वित्तीय बोझ बढ़ जाएगा।
  • विश्व स्वास्थ्य संगठन ने भी राष्ट्रों से जटिल प्राधिकरण प्रक्रियाओं को शामिल करके गर्भ समापन में अवरोध न पैदा करने का आग्रह किया है। साथ ही, उसने यह भी कहा है कि प्राधिकरण प्रक्रियाओं से शिक्षा में कमी और घरेलू हिंसा के जोखिम के कारण गरीब महिलाओं और किशोरों पर असमान रूप से बोझ बढ़ता है, जो गर्भ समापन तक पहुँच में असमानता पैदा करते हैं।

नवाचार में अनुसंधान और विकास

संदर्भ

आर्थिक सर्वेक्षण, 2020-21 के अनुसार, विश्व की शीर्ष दस अर्थव्यवस्थाओं से प्रतिस्पर्धा करने के लिये भारत के निजी क्षेत्र को अनुसंधान और विकास (R&D) के साथ-साथ नवाचार के क्षेत्र में व्यय बढ़ाने की आवश्यकता है।

वर्तमान स्थिति

  • वित्त वर्ष 2020-21 के लिये आर. एंड डी. पर कुल व्यय देश के जी.डी.पी. का मात्र 65% था, जो विश्व की शीर्ष 10 अर्थव्यवस्थाओं द्वारा खर्च किये गए धन के एक-तिहाई से भी कम था, जिन्होंने आर. एंड डी. पर जी.डी.पी. का 1.5 से 3% के बीच खर्च किया।
  • आर्थिक सर्वेक्षण के अनुसार, भारत में किये गए आर. एंड डी. पर कुल खर्च में से आधे से अधिक सरकार ने किया था। इसके बावजूद भारत का अनुसंधान और विकास पर सकल घरेलू व्यय (GERD) कम रहा है।
  • चालू वित्त वर्ष में अप्रैल से नवंबर 2020 के बीच सभी कंपनियों ने (स्टार्टअप्स को छोड़कर) लगभग 38,000 आवेदन किये, जिनमें से लगभग 15,000 को मंज़ूरी प्रदान की गई। अप्रैल से अक्तूबर के बीच लगभग इसी अवधि में भारत में स्टार्टअप्स ने पेटेंट के लिये 1,100 आवेदन दिये लेकिन किसी को भी मंज़ूर नहीं किया गया।

उपाय

  • भारत को अनुसंधान और विकास पर खर्च के मामले में शीर्ष 10 अर्थव्यवस्थाओं के स्तर तक पहुँचने के लिये देश में निजी क्षेत्र के व्यय को 37% से बढ़ाकर से 68% तक करने के साथ ही अवसरों में भी वृद्धि करने की आवश्यकता है।
  • ‘जुगाड़ इनोवेशन’ पर अधिक निर्भरता के जोखिमों की वजह से भारत ने नवाचार के अपने महत्त्वपूर्ण अवसरों को खो दिया है। इसके लिये व्यावसायिक क्षेत्र द्वारा अनुसंधान एवं विकास पर प्रमुख रूप से ज़ोर देने की आवश्यकता है।
  • वर्तमान में पाँचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था (अमेरिकी डॉलर के हिसाब से) होने के नाते भारतीय निजी फर्मों को कुल पेटेंट में अपने हिस्से को बढ़ाकर अर्थव्यवस्था के सापेक्ष किये जाने की आवश्यकता है।
  • विभिन्न क्षेत्रों में आर. एंड डी. और नवाचार में निजी निवेश को बढ़ाने के साथ-साथ भारत को देश में दाखिल किये गए पेटेंट आवेदनों की कुल संख्या में भी सुधार करना होगा।

बार्गी (Bargis)

संदर्भ

  • पश्चिम बंगाल में विधानसभा चुनाव जैसे-जैसे नजदीक आते जा रहे हैं, 'इनसाइडर-आउटसाइडर' राजनीतिक बहस का विषय बन गया है। हाल ही में, बंगाल के राजनेताओं ने बाहरी प्रचारकों को 'बार्गी' कहकर संबोधित किया।
  • बंगाल के इतिहास में “बार्गी’ लोगों का महत्त्वपूर्ण स्थान है। वर्ष 1741-1751 के बीच पश्चिम बंगाल में कई मराठा आक्रमणों का संदर्भ मिलता है, जिसके परिणामस्वरूप तत्कालीन मुगल क्षेत्र में लूटपाट और नरसंहार की कई घटनाएँ सामने आईं थीं।
  • इस विशिष्ट अवधि की घटनाओं ने बंगाल की चेतना को अत्यधिक प्रभावित किया था तथा बंगाली लोककथाओं और साहित्य में इनकी पर्याप्त उपस्थिति देखी जा सकती है।
  • वर्तमान में बार्गी शब्द का उपयोग परेशान करने वाली बाहरी ताकतों के आकस्मिक संदर्भ के रूप में किया जाता है।

बार्गी कौन थे?

  • मराठा और मुगल सेनाओं में घुड़सवार सैनिकों को बारगी या बार्गी (Bargi) कहा जाता था।
  • यह शब्द फ़ारसी "बरगीर/बारगीर" (Bargir) से आया है, जिसका शाब्दिक अर्थ है "बोझ उठाने वाला"। इतिहासकार सुरेन्द्र नाथ सेन ने वर्ष 1928 की अपनी किताब ‘द मिलिट्री सिस्टम ऑफ़ द मराठाज़’ में सर्वप्रथम इसके बारे में लिखा था।
  • मुगल और मराठा सेनाओं में, ‘अपने नियोक्ता द्वारा दिये गए सुसज्जित घोड़े पर सवार सैनिकों’ को बार्गी कहा जाता था।
  • मराठा घुड़सवार सेना में, कोई भी सक्षम व्यक्ति एक बारगीर के रूप में भर्ती हो सकता था जब तक कि उसके पास घोड़ा और सैन्य पोशाक खरीदने का साधन ना हो।
  • बारगीर और सिलेदार (Silhedars), सरनोबत ("सर-ए-नौबत" या कमांडर इन चीफ के लिये फ़ारसी शब्द) के नियंत्रण में थे।
  • वर्ष 1741 से 1751 के बीच बंगाल के मुगल प्रांत (जिसमें बिहार, बंगाल और उड़ीसा के क्षेत्र शामिल थे) में मराठा घुड़सवारों का प्रवेश हुआ, जो तत्कालीन मुगल भारत में गहन राजनीतिक अनिश्चितता का समय था।

Have any Query?

Our support team will be happy to assist you!

OR