शॉर्ट न्यूज़: 07 नवंबर, 2020
ब्राउन कार्बन 'टारबॉल'
क्रय प्रबंधक सूचकांक
भारत में नए रामसर स्थल
ब्राउन कार्बन 'टारबॉल'
चर्चा में क्यों?
हाल ही में, एक अध्ययन में यह बात सामने आई है कि ब्राउन कार्बन ‘टारबॉल’ (Brown Carbon ‘Tarballs’) हिमालयी ग्लेशियरों के पिघलने की गति को और तेज़ कर रहे हैं।
ब्राउन कार्बन 'टारबॉल' क्या हैं?
- टारबॉल प्रकाश अवशोषित करने वाले छोटे कार्बनयुक्त कण हैं, जो वर्तमान में हिमालयी क्षेत्रों में जमी बर्फ पर बड़ी मात्रा में जमा हो रहे हैं।
- ये टारबॉल मुख्यतः जीवाश्म ईंधनों के जलने के दौरान उत्सर्जित ब्राउन कार्बन से बने होते हैं।
- ध्यातव्य है कि जीवाश्म ईंधनों के जलने से ब्लैक कार्बन भी उत्सर्जित होता है और वह भी ब्राउन कार्बन के सामान ही प्रदूषक होता है।
- इन टारबॉल के औसत आकार क्रमशः 213 और 348 नैनोमीटर पाए गए हैं।
अध्ययन के मुख्य बिंदु
- पूर्व के अध्ययनों के अनुसार अभी तक ब्लैक कार्बन के ही हिमालयी वायुमंडल में प्रवेश करने की घटना सामने आई थी।
- नए अध्ययनों से पता चला है कि भारत-गंगा के मैदानी क्षेत्रों में बड़े पैमाने पर गेहूं के अवशेषों को जलाने की वजह से उत्पन्न प्रदूषक विशेषकर ब्राउन कार्बन, मैदान से हिमालय की ओर चलने वाली हवाओं के द्वारा बड़ी मात्रा में हिमालयी क्षेत्रों में पहुँच रहा है।
- हिमालयी क्षेत्रों में टारबॉल का प्रतिशत लगातार बढ़ रहा है और यह ग्लेशियरों के पिघलने व वैश्विक तापन की गति को और ज़्यादा तेज़ कर रहा है।
क्रय प्रबंधक सूचकांक
चर्चा में क्यों?
हाल ही में, सेवा क्षेत्र में अक्तूबर महीने के क्रय प्रबंधक सूचकांक (Purchasing Managers’ Index- PMI) में फरवरी के बाद पहली बार विस्तार देखा गया है। जहाँ सितम्बर में यह सूचकांक 49.8 पर था वहीं अक्तूबर में यह 54.1 पर पहुँच गया।
क्रय प्रबंधक सूचकांक
- पी.एम.आई. विनिर्माण और सेवा दोनों क्षेत्रों में व्यावसायिक गतिविधि का एक प्रमुख संकेतक है।
- यह एक सर्वेक्षण-आधारित प्रणाली है, जिसका उद्देश्य कम्पनी के निर्णय निर्माताओं, विश्लेषकों और निवेशकों को बाज़ार अर्थव्यवस्था से जुड़ी वर्तमान एवं भविष्य की स्थितियों के बारे में जानकारी प्रदान करना है।
- इसकी गणना विनिर्माण और सेवा क्षेत्रों के लिये अलग-अलग की जाती है और फिर एक समग्र सूचकांक का निर्माण किया जाता है।
- इस सूचकांक के ज़रिये किसी देश की आर्थिक स्थिति का आकलन किया जाता है। इसमें शामिल लगभग सभी देशों की तुलना एक जैसे मापदंड से ही होती है।
- यह सूचकांक 0 से 100 तक की स्केल पर मापा जाता है, जहाँ 50 से ऊपर का आँकड़ा व्यावसायिक विकास को तथा 50 से नीचे का आँकड़ा व्यावसायिक संकुचन (गिरावट) को प्रदर्शित करता है। मध्य बिंदु (50) से विचलन जितना ज़्यादा होगा विस्तार या संकुचन उतना ही ज़्यादा होगा।
- विगत माह के आँकड़ों से तुलना करने पर व्यावसायिक विस्तार का अंदाज़ा लगाया जा सकता हैं, यदि यह आँकड़ा पिछले महीने की तुलना में अधिक है तो अर्थव्यवस्था तेज़ी से बढ़ रही है। यदि यह पिछले महीने से कम है तो अर्थव्यवस्था संकुचित हो रही है।
- यह सूचकांक मुख्यतः 5 प्रमुख कारकों- नए ऑर्डर, इन्वेंटरी स्तर, उत्पादन, आपूर्ति-वितरण एवं रोज़गार के वातावरण पर आधारित होता है।
- पी.एम.आई. आमतौर पर महीने की शुरुआत में, औद्योगिक उत्पादन, विनिर्माण और जी.डी.पी. के विस्तार से जुड़े आधिकारिक आँकड़ों से काफी पहले ही जारी किया जाता है। इसलिये, यह आर्थिक गतिविधि का एक अच्छा व प्रमुख संकेतक माना जाता है।
- कई देशों के केंद्रीय बैंक अपनी ब्याज दरों पर निर्णय लेने में मदद करने के लिये इस सूचकांक का उपयोग करते हैं।
भारत में नए रामसर स्थल
चर्चा में क्यों?
- हाल ही में पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय ने उत्तर बिहार के मीठे जल के दलदल कबरताल तथा उत्तराखंड दून घाटी में आसन बैराज को रामसर अभिसमय के तहत अंतर्राष्ट्रीय महत्त्व की आर्द्रभूमि घोषित किया गया है। इसके साथ भारत में रामसर स्थलों की संख्या 39 हो गई है, जो अब दक्षिण एशिया में रामसर स्थलों का सबसे बड़ा नेटवर्क है।
- आसन कंज़र्वेशन रिज़र्व उत्तराखंड के देहरादून ज़िले में यमुना नदी की सहायक आसन नदी के समीप 444 हेक्टेयर में फैला हुआ है, जो जैव विविधता केंद्र के रूप में गम्भीर रूप से लुप्तप्राय रेडहेडेड वल्चर, व्हाइट रंप्ड वल्चर तथा बीयर्स पोचर्ड (Baer’s Pochard) सहित पक्षियों की 330 प्रजातियों को संरक्षण प्रदान करता है।
- यह प्रवासी पक्षियों जैसे कि रेड क्रेस्टेड पोचर्ड और रूडी शेल्डक के साथ-साथ 40 से अधिक मछली प्रजातियों का भी एक प्रसिद्ध प्रवास स्थल है। रामसर स्थल घोषित किये जाने के लिये इस रिज़र्व ने आवश्यक नौ मानदंडों में से पाँच मानदंडों को पूरा किया है, जिसके बाद यह उत्तराखंड का पहला रामसर स्थल बन गया है ।
- कबरताल, जिसे कंवर झील के रूप में भी जाना जाता है, बिहार राज्य के बेगूसराय जिले में 2,620 हेक्टेयर क्षेत्र में भारत-गंगा मैदान में फैला हुआ है। यह स्थल स्थानीय समुदायों को आजीविका के अवसर प्रदान करने के साथ-साथ इस क्षेत्र के लिये एक महत्त्वपूर्ण बाढ़ बफर का भी कार्य करता है। यह स्थल गम्भीर रूप से लुप्तप्राय गिद्ध, जैसे रेड हेडेड वल्चर और व्हाइट रंप्ड वल्चर आदि का निवास स्थान है।
रामसर अभिसमय
- रामसर अभिसमय एक अंतर-सरकारी संधि है, जिस पर 2 फरवरी, 1971 में ईरानी शहर रामसर में हस्ताक्षर किये गए थे। इस अभिसमय को ‘Convention on Wetlands’ के नाम से जाता है। भारत 1 फरवरी, 1982 को इसमें शामिल हुआ था। इसके अंतर्गत वे आद्रभूमि जो अंतर्राष्ट्रीय महत्त्व की हैं, उन्हें रामसर स्थल घोषित किया जाता हैं।
- पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय के साथ मिलकर भारत में रामसर स्थल के नामांकन तथा घोषणा प्रक्रिया का कार्य वेटलैंड्स इंटरनेशनल करता है।