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शॉर्ट न्यूज़: 22 जनवरी, 2021

शॉर्ट न्यूज़: 22 जनवरी, 2021


दिवालियापन एवं शोधन अक्षमता संहिता की धारा 32 A

आधार समीक्षा याचिका पर उच्चतम न्यायालय का निर्णय


दिवालियापन एवं शोधन अक्षमता संहिता की धारा 32 A

संदर्भ

हाल ही में, सर्वोच्च न्यायालय ने दिवालियापन एवं शोधन अक्षमता संहिता, 2016 की धारा 32 A की संवैधानिक वैधता को बरकरार रखा है।

दिवालियापन एवं शोधन अक्षमता कोड (IBC) की धारा 32 A

  • आई.बी.सी. की धारा 32 A में यह प्रावधान किया गया है कि कॉर्पोरेट दिवालियापन समाधान प्रक्रिया शुरू होने से पहले कॉर्पोरेट देनदारों पर अपराधों के लिये न्यायिक प्राधिकरण द्वारा मुकदमा नहीं चलाया जाएगा और न हीं उनकी संपत्ति पर कार्रवाई की जाएगी।
  • ध्यातव्य है कि संसद द्वारा आर्थिक सुधारों की दिशा में महत्त्वपूर्ण कदम उठाते हुए दिवालियापन एवं शोधन अक्षमता संहिता (IBC) को वर्ष 2016 में अधिनियमित किया गया था। इसके तहत विफल हो चुके या घाटे में चल रहे व्यवसायों के लिये एक तीव्र और उचित समाधान प्रक्रिया का प्रावधान किया था।
  • दिवालिया वह व्यक्ति या संस्था होती है, जिसे ऋण या वित्तीय दायित्वों को ना चुकाने की स्थिति मेंकोर्ट द्वारा दिवालिया घोषित किया जाता है।

सर्वोच्च न्यायालय का वर्तमान निर्णय और इसका महत्त्व

  • सर्वोच्च न्यायालय ने अपने निर्णय में कहा है कि आई.बी.सी. के तहत कॉर्पोरेट देनदार के लिये सफल बोलीदाता को किसी भी जाँच एजेंसी,जैसे- प्रवर्तन निदेशालय (ED) या अन्य वैधानिक निकायों (सेबी) से सुरक्षा प्रदान की जाएगी।
  • आई.बी.सी. की धारा 32 A की वैधता को बरकरार रखने का उद्देश्य ऐसे बोलीदाताओं को आकर्षित करना है जो कॉर्पोरेट देनदार को उचित मूल्य प्रदान करें ताकि कॉर्पोरेट इनसॉल्वेंसी रिजॉल्यूशन प्रोसेस (CIRP) को समय पर पूरा किया जा सके।
  • हालाँकि, न्यायिक सुरक्षा ‘अनुमोदित संकल्प योजना’ और कॉर्पोरेट देनदार के प्रबंधन नियंत्रण में बदलाव होने पर ही लागू होगी।
  • आई.बी.सी. के लागू होने से लेकर अब तक अनेक समाधान योजनाएँ बाधित हुई हैं क्योंकि इसमें अनेक एजेंसियों और नियामकों द्वारा चुनौती प्रस्तुत की जाती रही है। अतः धारा 32 A की वैधता को बरकरार रखने से इन समाधान योजनाओं के शीघ्र पूरा किया जा सकेगा।
  • सर्वोच्च न्यायालय का यह निर्णय बोलीदाताओं को कंपनी का सही मूल्यांकन करने और निष्पक्ष बोली लगाने में मदद करेगा, जिससे बैंक अपने खाते से दबावग्रस्त ऋणों को हटा सकेंगे।
  • इससे बोलीदाता बिना किसी अड़चन के तथा अधिक विश्वास के साथ विवादित कंपनियों और उनकी परिसंपत्तियों के लिए बोली लगाने के लिये प्रेरित होंगे।

आधार समीक्षा याचिका पर उच्चतम न्यायालय का निर्णय

संदर्भ

हाल ही में, सर्वोच्च न्यायालय ने आधार कानून को वैध और संवैधानिक घोषित किये जाने संबंधी वर्ष 2018 के अपने निर्णय की समीक्षा करने से इंकार कर दिया है और समीक्षा के लिये जारी याचिकाओं को खारिज कर दिया है।

प्रमुख बिंदु

  • आधार कानून के धन विधेयक के रूप में लोकसभा अध्यक्ष द्वारा प्रमाणित किये जाने तथा संसद में इसके पारित होने के फैसले (पुट्टस्वामी आधार मामला) के विरुद्ध राज्यसभा सांसद जयराम रमेश समेत सात लोगोंद्वारा याचिका दायर की गयी थी।
  • इस याचिका को ख़ारिज करते हुए सर्वोच्च न्यायालय ने कहा है कि लोकसभा अध्यक्ष के निर्णय को केवल ‘कुछ परिस्थितियों’ के तहत ही चुनौती दी जा सकती है।

निर्णय की समीक्षा संबंधी सर्वोच्च न्यायालय की शक्ति

  • संविधान के सर्वोच्च न्यायालय द्वारा दिया गया कोई भी निर्णय अंतिम निर्णय माना जाता है।
  • हालाँकि संविधान के अनुच्छेद 137 में यह प्रावधान है कि अनुच्छेद 145 के तहत बनाए गए किसी भी कानून और नियम के प्रावधानों के अधीन सर्वोच्च न्यायालय को किसी भी निर्णय (या दिये गए आदेश) की समीक्षा करने की शक्ति प्राप्त है।
  • इस प्रकार, समीक्षा याचिका में सर्वोच्च न्यायालय के बाध्यकारी निर्णय की समीक्षा की जा सकती है और सर्वोच्च न्यायालय अपने पूर्व के किसी निर्णय या आदेश को ‘स्पष्टता के अभाव’ के आधार पर समीक्षा कर सुधार सकता है।

धन विधेयक

  • धन विधेयक (110) में कराधान, सरकार द्वारा धन उधार लेने, भारत के समेकित कोष में धन की प्राप्ति व खर्च से संबंधित प्रावधान शामिल होते हैं।
  • सभी धन विधेयक वित्तीय विधेयक कहलाते हैं, जबकि सभी वित्तीय विधेयक धन विधेयक नहीं होते।
  • वह वित्त विधेयक जिसमें केवल कर प्रस्तावों से संबंधित प्रावधान शामिल होते हैं, धन विधेयक कहलाता है, जबकि वह विधेयक जिसमें कराधान या व्यय से संबंधित प्रावधानों के साथ-साथ अन्य मामले भी शामिल होते हैं, वित्तीय विधेयक कहलाते हैं।

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