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शॉर्ट न्यूज़: 30 नवंबर, 2020

शॉर्ट न्यूज़: 30 नवंबर, 2020


स्वालबार्ड द्वीप

नीला ज्वार या जैव संदीप्ति

रेल विद्युतीकरण कार्य

ब्रह्मपुत्र पर चीन की डाउनस्ट्रीम बांध परियोजना


स्वालबार्ड द्वीप

प्रमुख बिंदु

  • स्वालबार्ड नॉर्वे के उत्तर में स्थित का एक द्वीप है। इस द्वीप पर आर्कटिक वर्ल्ड आर्काइव (Arctic World Archive)नामक एक प्रोजेक्ट को सेटअप किया गया है।
  • इस संग्रह में बहुमूल्य धरोहर व विरासत डाटा को इस प्रकार से रखा गया है कि यह किसी प्रकार की प्राकृतिक या मानव निर्मित आपदाओं से प्रभावित ना हो सकें।
  • अजंता गुफाओं की धरोहर का भी डिजिटलीकरण करके इस परियोजना में संजोए जाने की भी जानकारी सामने आई है, जिसमें अजंता गुफाओं की पूरी झलक देखने को मिलेगी।
  • इसमें डिजिटलीकृत, पुनर्निर्मित और जीर्णोद्धार की गई पेंटिंग (Restored Painting) के साथ-साथ इससे सम्बंधित दस्तावेज़ और उद्धरण भी शामिल होंगे।

नीला ज्वार या जैव संदीप्ति

चर्चा में क्यों?

  • हाल ही में, महाराष्ट्र में समुद्रीय तटरेखाओं पर नीले ज्वार (Blue Tide) की घटना देखी गई है। नीले रंग के इस प्रतिदीप्त (Fluorescent Blue Hue) ज्वार को जैव-संदीप्‍ति (Bioluminescence) भी कहा जाता है।
  • ध्यातव्य है कि वर्ष 2016 के बाद से लगभग हर वर्ष इस प्रकार की घटनाएँ नवम्बर- दिसम्बर के महीनों में देखी जा रही हैं।
  • सामान्यतः समुद्री लहरों की हलचल द्वारा सूक्ष्म समुद्री पादपों, डाइनोफ्लैगलेट्स (Dinoflagellates) के अंदर स्थित प्रोटीन में होने वाली रासायनिक अभिक्रियाओं के कारण ये सूक्ष्म पादप नीली रोशनी छोड़ते हैं, जिसे नीले ज्वार के नाम से जाना जाता है।
  • अतिपोषण या यूट्रोफिकेशन (Eutrophication) को इस घटना का मुख्य कारक माना जाता है। यूट्रोफिकेशन वह स्थिति होती है जिसमें किसी जलीय वातावरण में सूक्ष्म पादपों या प्लवकों की संख्यां में अत्यधिक वृद्धि हो जाती है।
  • नीले ज्वार की यह स्थिति अत्यंत खतरनाक भी हो सकती है, क्योंकि इस दौरान न सिर्फ डाइनोफ्लैगलेट्स का भक्षण करने वाली मछलियाँ या समुद्री जीव विषाक्त हो सकते हैं बल्कि उनको आहार के रूप में प्रयोग करने वाले लोग भी फ़ूड पोइज़निंग का शिकार हो सकते हैं।


रेल विद्युतीकरण कार्य

मुख्य बिंदु

  • हाल ही में, केंद्रीय रेल मंत्री पीयूष गोयल द्वारा दिघावाड़ा-बांदीकुई रेलखंड का विद्युतीकरण पूरा होने पर इसका उद्घाटन किया गया। यह रेलखंड उत्तर-पश्चिमी रेलवे के अजमेर-दिल्ली रेलमार्ग पर स्थित है।
  • विद्युतीकरण का कार्य केंद्रीय रेल विद्युतीकरण, प्रयागराज द्वारा किया गया है। 
  • उल्लेखनीय है कि रेलवे ने वर्ष 2009-2014 की तुलना में 2014-20 के दौरान 371% अधिक लाइनों के विद्युतीकरण का रिकॉर्ड बनाया है।

लाभ

  • यह एन.सी.आर. को रेलवे डीज़ल इंजन से मुक्त करने की दिशा में महत्त्वपूर्ण कदम है, जिससे राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र को स्वच्छ और हरा-भरा बनाने में मदद मिलेगी।
  • विद्युतीकृत ट्रेनों के संचालन से प्रदूषण नियंत्रित होगा और आयातित ईंधन पर निर्भरता कम होगी, जिससे महत्त्वपूर्ण राजस्व की भी बचत होगी।
  • इसके अलावा, ट्रेनों की औसत गति में भी वृद्धि होगी जिससे उद्योगों सहित खेती आधारित कारोबार का विकास होगा और ग्रामीणों व किसानों की आय बढ़ेगी।

अन्य बिंदु

  • भारतीय रेलवे ने दिसम्बर, 2023 तक बड़ी रेल लाइन नेटवर्क के पूर्ण विद्युतीकरण का लक्ष्य निर्धारित किया है।
  • बड़ी रेल लाइन मार्ग के 66% से अधिक रेल लाइनों का विद्युतीकरण पहले ही किया जा चुका है।

ब्रह्मपुत्र पर चीन की डाउनस्ट्रीम बांध परियोजना

चर्चा में क्यों?

हाल ही में, चीन ने एक पनबिजली कम्पनी को ब्रह्मपुत्र नदी के निचले हिस्से पर प्रथम डाउनस्ट्रीम बांध के निर्माण को मंजूरी दी है।

महत्त्वपूर्ण बिंदु

  • चीन राज्य के स्वामित्व वाली पनबिजली कम्पनी ‘पावर चाइना’ ने गत माह में तिब्बत स्वायत्त क्षेत्र की सरकार के साथ पनबिजली क्षेत्र के दोहन हेतु रणनीतिक सहयोग समझौते (Strategic Cooperation Agreement) पर हस्ताक्षर किये थे। यह परियोजना चीन के पनबिजली क्षेत्र की सम्भावनाओं के दोहन के एक नए चरण को दर्शाती है, जो चीन की पंचवर्षीय योजना (2021-2025) का महत्त्वपूर्ण हिस्सा है।

india

  • चीन ने वर्ष 2015 में तिब्बत के ज़ंगमु में अपनी पहली पनबिजली परियोजना का संचालन किया था।
  • वर्तमान में नदी के ऊपरी और मध्य हिस्से पर डागू, जिएक्सु और जियाचा में तीन अन्य बांध विकसित किये जा रहे हैं।
  • भारत ने सुरक्षा के दृष्टिकोण से इन निर्माणाधीन चार बांधों पर चिंता व्यक्त की है, क्योंकि युद्ध की स्थिति में चीन बांधों को खोलकर भारत के पूर्वोत्तर हिस्से में बाढ़ की स्थिति उत्पन्न कर सकता है।
  • ब्रह्मपुत्र के डाउनस्ट्रीम में 300 बिलियन किलोवाट स्वच्छ नवीकरणीय और शून्य-कार्बन आधारित विद्युत-उत्पादन की क्षमता है। साथ ही, यह परियोजना चीन के वर्ष 2060 तक कार्बन तटस्थता के लक्ष्य की प्राप्ति में महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा करेगी।
  • ध्यातव्य है कि ब्रह्मपुत्र नदी को तिब्बत में यारलुंग ज़ंगबो कहा जाता है।

स्रोत : द हिंदू


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