चर्चा में क्यों ?
- 4 अक्टूबर 2025 को भारत ने श्यामजी कृष्ण वर्मा की 168 वीं जयंती मनाई।
- वे एक प्रख्यात क्रांतिकारी, देशभक्त, वकील और पत्रकार थे, जिन्होंने विदेश से भारत के स्वतंत्रता संग्राम को आकार देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
- प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उन्हें भावभीनी श्रद्धांजलि अर्पित की और उनके योगदान को दूरदर्शी राष्ट्रवादी और कई भावी क्रांतिकारियों के लिए वैचारिक मार्गदर्शक के रूप में सराहा।

प्रारंभिक जीवन और प्रभाव
- जन्म: 4 अक्टूबर 1857, मांडवी, गुजरात
- प्रेरणास्रोत: बाल गंगाधर तिलक, स्वामी दयानंद सरस्वती और अंग्रेज दार्शनिक हर्बर्ट स्पेंसर
- वर्मा ने प्रारंभ से ही राष्ट्रवाद की गहरी भावना विकसित की और पश्चिमी राजनीतिक विचारों को भारतीय सुधारवादी परंपराओं के साथ जोड़ा।
- यह मिश्रण उनके क्रांतिकारी दृष्टिकोण और विदेश में राष्ट्रवादी गतिविधियों की नींव बना।
लंदन में क्रांतिकारी कार्य
श्यामजी कृष्ण वर्मा ने लंदन में कई प्रमुख राष्ट्रवादी संस्थानों की स्थापना की, जो भारतीय छात्रों और क्रांतिकारियों के लिए बौद्धिक और संगठनात्मक केंद्र बन गए।
- इंडियन होम रूल सोसाइटी (1905): स्वशासन की वकालत की और ब्रिटिश औपनिवेशिक शासन की आलोचना की।
- इंडिया हाउस: भारतीय छात्रों के लिए छात्रावास और क्रांतिकारी गतिविधियों का केंद्र। वीर सावरकर सहित कई नेताओं ने इससे प्रेरणा ली।
- द इंडियन सोशियोलॉजिस्ट: मासिक पत्रिका जिसने राष्ट्रवादी विचारों और ब्रिटिश नीतियों की कट्टर आलोचना को फैलाया।
आर्य समाज और राष्ट्रवादी विचार में भूमिका
- वर्मा बॉम्बे आर्य समाज के पहले अध्यक्ष बने और भारत में सामाजिक और राजनीतिक सुधारों को सक्रिय रूप से बढ़ावा दिया।
- उन्होंने आर्य समाज और इंडिया हाउस जैसे मंचों का उपयोग सांस्कृतिक पुनरुत्थान और राजनीतिक सक्रियता को जोड़ने के लिए किया।
- उनके लेखों में स्वराज की वकालत ने भारतीय राजनीति में इस विचार को मुख्यधारा में लाने में योगदान दिया।
निर्वासन और जीवन
- ब्रिटिश अधिकारियों के दबाव के कारण वर्मा इंग्लैंड छोड़कर फ्रांस गए और पेरिस में राष्ट्रवादी कार्य जारी रखा।
- प्रथम विश्व युद्ध के दौरान वे स्विटजरलैंड के जिनेवा में बस गए, जहां उन्होंने 30 मार्च 1930 को मृत्यु तक राष्ट्रवाद की सेवा की।
- भारत से दूर रहते हुए भी वे उपनिवेशवाद के खिलाफ दृढ़ आवाज बने रहे और क्रांतिकारियों की पीढ़ियों को प्रेरित करते रहे।
विरासत और महत्व
- श्यामजी कृष्ण वर्मा विदेश में भारतीय राष्ट्रवाद के अग्रदूत थे।
- इंडिया हाउस जैसी संस्थाओं ने स्वतंत्रता संग्राम के क्रांतिकारियों को पोषित किया।
- उनकी पत्रिका द इंडियन सोशियोलॉजिस्ट को भारतीय स्वशासन के सबसे प्रारंभिक बौद्धिक मंचों में से एक माना जाता है।
- 2003 में सम्मान:- उनके अवशेषों को भारत वापस लाया गया और गुजरात के मांडवी में क्रांति तीर्थ स्मारक में स्थापित किया गया, जिससे उनकी विरासत सुरक्षित और श्रद्धेय बनी रहे।