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वैश्विक स्तर पर युवाओं की मौत में चिंताजनक वृद्धि

(प्रारंभिक परीक्षा: अंतर्राष्ट्रीय महत्त्व की सामयिक घटनाएँ, लोकनीति, अधिकारों संबंधी मुद्दे, जनसांख्यिकी)
(मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र- 2: स्वास्थ्य, शिक्षा, मानव संसाधनों से संबंधित सामाजिक क्षेत्र/सेवाओं के विकास और प्रबंधन से संबंधित विषय)

संदर्भ

द लैंसेट की ग्लोबल बर्डन ऑफ डिजीज स्टडी 2023 के अनुसार, वैश्विक जीवन प्रत्याशा महिलाओं के लिए 76.3 वर्ष और पुरुषों के लिए 71.5 वर्ष हो गई है जो लगभग महामारी से पहले के स्तर पर वापस आ गई है। हालाँकि, एक चिंताजनक प्रवृत्ति सामने आई है जो 10-29 वर्ष के युवाओं, विशेषकर महिलाओं में मौत की संख्या में वृद्धि से संबंधित है।

युवतियों में बढ़ती मृत्यु दर

  • अध्ययन के अनुसार, युवतियों (15-29 वर्ष) में मृत्यु दर पहले के अनुमानों की तुलना में 61% अधिक है। इसके मुख्य कारणों में शामिल हैं:
    • गर्भावस्था एवं प्रसव संबंधी जटिलताएँ
    • सड़क दुर्घटनाएँ, विशेषकर विकासशील देशों में
    • प्रजनन स्वास्थ्य देखभाल तक पहुँच की कमी, जैसा कि UNFPA एवं MoHFW द्वारा बताया गया है।
  • भारत के राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन (NHM) के आँकड़े भी दिखाते हैं कि कम आयु में विवाह एवं सीमित प्रसव पूर्व देखभाल तक पहुँच के कारण किशोरों में मातृ मृत्यु दर अधिक बनी हुई है।

गैर-संक्रामक रोगों (NCDs) की ओर बदलाव

  • विश्व स्तर पर सभी मौतों में से लगभग दो-तिहाई NCDs के कारण होती हैं जो संक्रामक रोगों से अधिक हैंयुवाओं में हृदय रोग, मधुमेह और स्ट्रोक में चिंताजनक वृद्धि को उजागर किया गया है जिसके कारण निम्नलिखित हैं:
    • गतिहीन जीवन शैली
    • अल्ट्रा-प्रोसेस्ड भोजन का सेवन
    • तंबाकू एवं शराब का सेवन
  • भारत में नीति आयोग के स्वास्थ्य सूचकांक से पता चलता है कि वर्ष 2015 से 15-35 आयु वर्ग में NCDs से संबंधित मौतों में 30% की वृद्धि हुई है।

मानसिक स्वास्थ्य

  • मानसिक स्वास्थ्य विकार में तेजी से वृद्धि हुई है और चिंता विकार (Anxiety) 63% व अवसाद विकार 26% बढ़ गए हैं।
    • यह सोशल मीडिया की लत, बेरोजगारी एवं महामारी के बाद के अलगाव से जुड़ा है।
    • भारत के राष्ट्रीय मानसिक स्वास्थ्य सर्वेक्षण (2023) में भी कॉलेज के छात्रों और पहली बार नौकरी चाहने वालों में अवसाद के लक्षणों में तेज वृद्धि दर्ज की गई है।

पर्यावरण एवं जलवायु जोखिम में तीव्रता 

  • द लैंसेट रिपोर्ट ने जलवायु संबंधी स्वास्थ्य जोखिमों के बढ़ते प्रभाव को रेखांकित किया है-
    • गर्मी एवं ठंड के संपर्क में आने से होने वाली मौतों में 2013-2023 के बीच सालाना 6% की वृद्धि हुई।
    • भारत मौसम विज्ञान विभाग (IMD) और MoEFCC की रिपोर्ट बताती है कि 1980 के बाद से अत्यधिक गर्मी के दिनों की संख्या तीन गुना हो गई है, जिससे युवाओं में डिहाइड्रेशन, कार्डियक अरेस्ट एवं मानसिक थकान के अधिक मामले सामने आ रहे हैं।

आगे की राह 

  • मानसिक स्वास्थ्य, प्रजनन देखभाल और सड़क सुरक्षा को एकीकृत करने वाली युवा-केंद्रित स्वास्थ्य नीतियाँ 
  • पर्यावरणीय जोखिमों को कम करने के लिए जलवायु-अनुकूल स्वास्थ्य सेवा प्रणाली
  • तनाव एवं मानसिक स्वास्थ्य संबंधी चिंताओं को दूर करने के लिए शिक्षा व रोज़गार सुधार
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