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अहिल्याबाई होल्कर

(प्रारंभिक परीक्षा : महत्वपूर्ण व्यक्तित्व)
(मुख्य परीक्षा : सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र-1, 18वीं सदी के लगभग मध्य से लेकर वर्तमान समय तक का आधुनिक भारतीय इतिहास- महत्त्वपूर्ण घटनाएँ, व्यक्तित्व, विषय।)

चर्चा में क्यों

18वीं शताब्दी के मालवा साम्राज्य की मराठा रानी देवी अहिल्याबाई होल्कर की 300वीं जयंती पर मध्यप्रदेश सरकार द्वारा विगत नौ माह से आयोजित विभिन्न कार्यक्रमों का 31 मई 2025 को समापन समारोह किया जा रहा है।

अहिल्याबाई होल्कर के बारे में

  • जन्म : 31 मई, 1725 को महाराष्ट्र के अहमदनगर जिले के चौंड़ी गांव में एक साधारण धनगर परिवार में।
  • विवाह : वर्ष 1733 में, आठ वर्ष की आयु में खंडेराव होल्कर से।
  • प्रमुख रूचि : पारिवारिक दायित्व, युद्ध और प्रशासन। 
    • वे अपने पति के साथ युद्धक्षेत्र में जाती थीं और तोपखाने जैसे सैन्य कार्यों में निपुणता हासिल की।
  • राज्य का उत्तरदायित्व: वर्ष 1754 में कुम्भेर युद्ध में उनके पति खंडेराव की मृत्यु हो गई उस समय अहिल्याबाई केवल 29 वर्ष की थीं और वे सती होने का विचार कर रही थीं, लेकिन ससुर मल्हारराव ने उन्हें राज्य संभालने की जिम्मेदारी सौंपी।
  • महारानी : वर्ष 1767 में उनके ससुर मल्हारराव होल्कर और इकलौते पुत्र मालोजीराव की मृत्यु के बाद अहिल्याबाई ने पूर्ण रूप से मालवा साम्राज्य का शासन संभाला।
  • लोकमाता : वह एक परम शिव भक्त थीं और अपने शासन को भगवान शिव को समर्पित किया था। उनके धार्मिक और सामाजिक कार्यों ने उन्हें "लोकमाता" का दर्जा दिलाया। 
  • मृत्यु और विरासत : 13 अगस्त 1795 को भाद्रपद कृष्ण चतुर्दशी को अहिल्याबाई की मृत्यु इंदौर में हुई। उनकी मृत्यु के बाद उनके सेनापति तुकोजी होल्कर ने मालवा साम्राज्य का शासन संभाला।

शासनकाल और प्रशासनिक योगदान

व्यवस्थित न्याय व्यवस्था

  • गाँवों में पंचायतों को मजबूत किया और न्यायालयों की स्थापना की, ताकि प्रजा को त्वरित और निष्पक्ष न्याय मिले।
  • वे स्वयं अंतिम अपील सुनती थीं, और उनकी निष्पक्षता के कारण उन्हें "न्याय की देवी" कहा जाता था।

प्रशासनिक सुधार

  • मालवा साम्राज्य को तहसीलों और जिलों में संगठित किया, जिससे प्रशासन और कर संग्रह व्यवस्थित हुआ।
  • उनके शासन में भ्रष्टाचार न्यूनतम था, और उन्होंने धन को प्रजा और ईश्वर की धरोहर मानकर इसका उपयोग जनकल्याण के लिए किया।

सैन्य नेतृत्व

  • अहिल्याबाई एक कुशल योद्धा और तीरंदाज थीं। उन्होंने कई युद्धों में अपनी सेना का नेतृत्व किया और हाथी पर सवार होकर युद्ध लड़ा।
  • जब गंगोबा तात्या जैसे विद्रोहियों ने उनके राज्य पर आक्रमण की साजिश रची, तो अहिल्याबाई ने अपनी बुद्धिमत्ता और सैन्य सहायता (महादजी शिंदे और तुकोजी होल्कर से) के बल पर विद्रोह को कुचल दिया।

महिला सशक्तिकरण

  • अहिल्याबाई ने महिलाओं के लिए शिक्षा और सशक्तिकरण को बढ़ावा दिया। 
  • उन्होंने विधवाओं के अधिकारों के लिए कानून में बदलाव किया, जैसे कि विधवाओं को पति की संपत्ति का उत्तराधिकारी बनाना।
  • उन्होंने महिला सेना की स्थापना की, जिसने यह सिद्ध किया कि महिलाएँ पुरुषों से किसी भी क्षेत्र में कम नहीं हैं।

मंदिरों और धार्मिक स्थलों का निर्माण

  • पूरे भारत में श्रीनगर, हरिद्वार, केदारनाथ, बद्रीनाथ, प्रयाग, वाराणसी, नैमिषारण्य, पुरी, रामेश्वरम, सोमनाथ, महाबलेश्वर, उडुपी, गोकर्ण, और काठमांडू जैसे तीर्थ स्थानों पर मंदिर, घाट, धर्मशालाएँ, कुएँ, और बावड़ियाँ बनवाईं।
  • रामेश्वरम में ‘अहिल्याबाई चौल्ट्री’ आज भी कार्यरत और पुरातत्व विभाग द्वारा संरक्षित।
  • औरंगजेब द्वारा नष्ट मंदिरों का पुनर्निर्माण, (काशी विश्वनाथ जैसे मंदिर शामिल)।

सामाजिक कल्याण

  • वर्ष 1769 के अकाल के दौरान, अहिल्याबाई ने अन्न भंडार खुलवाए और लाखों लोगों को मुफ्त भोजन उपलब्ध करवाया।
  • अनाथालय, गोशालाएँ, और तालाबों का निर्माण करवाया। 
  • उनके शासनकाल में 8527 धार्मिक स्थल, 920 मस्जिदें और दरगाहें, और 39 राजकीय अनाथालय बनाए गए।

निष्कर्ष

अहिल्याबाई होल्कर भारतीय इतिहास की उन महान महिलाओं में से एक हैं, जिन्होंने न केवल अपने समय की रूढ़ियों को तोड़ा, बल्कि अपने शासनकाल में प्रजा के कल्याण, धार्मिक कार्यों, और सामाजिक सुधारों के माध्यम से एक अमिट छाप छोड़ी। उनकी बुद्धिमत्ता, साहस, और प्रजावत्सलता उन्हें ‘लोकमाता’ बनाती है। आज भी उनकी कहानी लाखों लोगों, विशेष रूप से महिलाओं, के लिए प्रेरणा का स्रोत है।

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