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AI डाटा सेंटर एवं ऊर्जा आवश्यकताएं

(प्रारंभिक परीक्षा: विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी)
(मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्न पत्र-3: विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी में भारतीयों की उपलब्धियाँ; देशज रूप से प्रौद्योगिकी का विकास और नई प्रौद्योगिकी का विकास।)

संदर्भ

कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI) के तीव्र विकास ने विश्वभर में डाटा सेंटरों की मांग को अभूतपूर्व रूप से बढ़ा दिया है। भारत में भी डिजिटल इंडिया, डाटा लोकलाइजेशन, 5G और IoT जैसी पहलों के कारण ऊर्जा की खपत तेज़ी से बढ़ रही है। अब जब एआई आधारित सुपरकंप्यूटिंग और जनरेटिव ए.आई. एप्लिकेशन आम होते जा रहे हैं, तो सबसे बड़ी चुनौती यह बन गई है कि इन डेटा सेंटरों को ऊर्जा कौन देगा?

क्या हैं ए.आई. डाटा सेंटर 

  • ए.आई. डाटा सेंटर वे उच्च क्षमता वाले डिजिटल ढाँचे हैं जहाँ ग्राफ़िक्स प्रोसेसिंग यूनिट (GPUs) के माध्यम से भारी मात्रा में डाटा का विश्लेषण, प्रशिक्षण और स्टोरेज किया जाता है। 
  • साधारण सर्वरों के मुकाबले ए.आई. सर्वर अत्यधिक ऊर्जा-गहन होते हैं।
  • पारंपरिक सर्वर एक रैक में लगभग 15-20 किलोवाट (KW) ऊर्जा लेते हैं, जबकि ए.आई. सर्वर 80-150 KW तक (लगभग 8-10 गुना) बिजली की मांग करते हैं। 
  • ये केंद्र न केवल डाटा भंडारण के लिए बल्कि मशीन लर्निंग मॉडल्स के प्रशिक्षण और जनरेटिव ए.आई. के संचालन के लिए भी अत्यधिक बिजली उपयोग करते हैं।

प्रमुख डाटा सेंटर

  • अमेरिका में टेक्सास, वर्जीनिया, ओहायो, पेनसिल्वेनिया प्रमुख केंद्र हैं।
  • भारत में गूगल द्वारा विशाखापट्टनम और रिलायंस द्वारा जामनगर में GW-स्तरीय एआई डेटा सेंटर स्थापित किए जा रहे हैं।
  • इसके अतिरिक्त मुंबई, चेन्नई, बेंगलुरु और हैदराबाद में योटा, अदानीकॉननेक्‍स, सिफी जैसी कंपनियाँ निवेश कर रही हैं।
  • सरकार का IndiaAI Mission इस दिशा में तेजी लाने का प्रमुख प्रयास है।

ऊर्जा खपत

  • ए.आई. डाटा सेंटर अत्यधिक ऊर्जा का उपभोग करते हैं।
  • विश्व स्तर पर डाटा सेंटरों की बिजली खपत वर्ष 2024 में 460 TWh से बढ़कर वर्ष 2030 तक 1,000 TWh और वर्ष 2035 तक 1,300 TWh तक पहुँच सकती है।
  • चीन में जनरेटिव ए.आई. और LLM के कारण हर वर्ष 25% वृद्धि दर्ज की जा रही है।
  • अमेरिका के वर्जीनिया राज्य में भी अगले पाँच वर्षों में बिजली की मांग 25% तक बढ़ने की संभावना है।

ऊर्जा के स्रोत

  • बढ़ती बिजली मांग और कार्बन न्यूनीकरण लक्ष्यों (Decarbonisation Goals) के चलते एआई डेटा सेंटर अब लो-कार्बन ऊर्जा स्रोतों की ओर बढ़ रहे हैं। 
  • मुख्य ऊर्जा स्रोत :-
    • सौर एवं पवन जैसी नवीकरणीय ऊर्जा,
    • ग्रीन हाइड्रोजन आधारित बैकअप सिस्टम,
    • भू-तापीय ऊर्जा और
    • Small Modular Reactors (SMRs) जैसे छोटे परमाणु संयंत्र।

भारत में डाटा सेंटर की आवश्यकता

  • डिजिटल इंडिया और डाटा लोकलाइजेशन नीति के तहत घरेलू डाटा को देश के भीतर रखना आवश्यक है।
  • 5G नेटवर्क और IoT जैसी तकनीकें विशाल डाटा उत्पन्न कर रही हैं।
  • ए.आई. और क्लाउड कंप्यूटिंग की बढ़ती जरूरतें भी योगदान दे रही हैं।
  • वर्तमान में भारत के पास केवल 1.4 GW डाटा सेंटर क्षमता है, जबकि यूरोप के पास लगभग 10 GW है। 
  • अगले पाँच वर्षों में यह क्षमता दो से तीन गुना (2027 तक) और दीर्घकाल में पाँच गुना (2030 तक) बढ़ने का अनुमान है।

स्माल मोडुलर रिएक्टर (SMRs) क्या हैं

  • SMRs छोटे आकार के परमाणु रिएक्टर हैं जिनकी क्षमता 1 MW से 300 MW तक होती है। विश्वभर में SMR तकनीक पर $15.4 बिलियन का निवेश हो चुका है।
  • इनकी विशेषताएँ :
    • फैक्ट्री में निर्माण कर लागत और समय में कमी
    • Passive Safety Systems, यानी किसी बाहरी बिजली की आवश्यकता नहीं
    • स्थिर बेसलोड (24x7 Power) उपलब्ध कराना
    • और बड़े ट्रांसमिशन नेटवर्क की आवश्यकता नहीं।

भारत में SMR की संभावनाएँ

  • भारत ने 2025 के बजट में न्यूक्लियर एनर्जी मिशन शुरू किया है, जिसमें 20,000 करोड़ का प्रावधान है। 
  • प्रमुख लक्ष्य :
    • 2047 तक 100 GW परमाणु क्षमता हासिल करना,
    • 2033 तक 5 स्वदेशी SMRs को चालू करना।
      भाभा एटॉमिक रिसर्च सेंटर (BARC) द्वारा BSMR-200 रिएक्टर और 55 MW मॉडल पर काम जारी है।
  • सरकार एटॉमिक एनर्जी एक्ट, 1962 और सिविल लायबिलिटी फॉर नुक्लेअर डैमेज एक्ट, 2010 में संशोधन कर निजी निवेश (~$26 बिलियन) आकर्षित करना चाहती है।
  • राज्य सरकारों को पूर्व-स्वीकृत साइट्स की पहचान, भूमि अधिग्रहण और नियामक प्रशिक्षण में सहयोग देना होगा।

SMR की सुरक्षा विशेषताएँ

  • छोटा कोर आकार, जिससे रेडियोधर्मी खतरा कम।
  • प्राकृतिक संवहन (Natural Convection) से स्वत: शटडाउन की सुविधा।
  • Accident-tolerant fuels जो उच्च तापमान पर भी स्थिर रहते हैं।
  • कम आपातकालीन जोन, जिससे सुरक्षा प्रबंधन सरल। 
    • इन सब कारणों से SMRs को पारंपरिक परमाणु संयंत्रों से अधिक सुरक्षित माना जा रहा है।

नियामक ढांचा

  • चूँकि अधिकांश नियम पुराने बड़े रिएक्टरों के लिए बनाए गए हैं, SMR तकनीक के लिए नई, लचीली और जोखिम-आधारित नियामक व्यवस्था आवश्यक है। 
  • अंतरराष्ट्रीय स्तर पर IAEA (International Atomic Energy Agency) द्वारा SMR विनियमन के लिए Nuclear Harmonization and Standardization Initiative (NHSI) चलाई जा रही है। 
  • अमेरिका का ADVANCE Act (2024) और यू.के. का Regulatory Sandbox Model उदाहरण हैं।

परिवहन और अपशिष्ट संबंधी चिंताएँ

  • चूँकि SMR रिएक्टर फैक्ट्रियों में तैयार होकर स्थल तक पहुँचाए जाते हैं, इसलिए
    • ईंधन के परिवहन में सुरक्षा जोखिम
    • किरण रिसाव का खतरा
    • और नए प्रकार के रेडियोधर्मी अपशिष्ट प्रबंधन की समस्या उत्पन्न हो सकती है।
  • इसलिए इनके लिए अलग से परिवहन सुरक्षा नियम और अपशिष्ट निपटान नीति आवश्यक है।

चुनौतियाँ

  • SMR निर्माण और ईंधन चक्र की लागत अभी भी अधिक है।
  • भारत में नियामक सुधार धीमे हैं।
  • रेडियोधर्मी कचरे के दीर्घकालीन प्रबंधन की स्पष्ट नीति नहीं है।
  • तकनीकी हस्तांतरण और निजी निवेश में राजनीतिक एवं कानूनी बाधाएँ हैं।
  • SMR और नवीकरणीय ऊर्जा के बीच समन्वय तंत्र का अभाव है।

आगे की राह

  • नियामक सुधार : भारत को SMR हेतु टेक्नोलॉजी-न्यूट्रल लाइसेंसिंग फ्रेमवर्क अपनाना चाहिए।
  • साझेदारी और निवेश : निजी क्षेत्र और अंतरराष्ट्रीय कंपनियों के साथ Public-Private Partnerships (PPP) बढ़ाई जाएं।
  • स्थानीय निर्माण : ‘मेक इन इंडिया’ के तहत SMR घटकों का स्वदेशी उत्पादन प्रोत्साहित किया जाए।
  • डेटा सेंटरों के लिए नीति समर्थन : AI डाटा सेंटरों को ग्रीन एनर्जी क्रेडिट्स और सस्ती बिजली दरों की सुविधा दी जाए।
  • कुशल मानव संसाधन : परमाणु इंजीनियरिंग और एआई अवसंरचना प्रबंधन में युवाओं के लिए प्रशिक्षण कार्यक्रम।
  • सुरक्षा और पारदर्शिता : जनविश्वास बढ़ाने के लिए स्वतन्त्र सुरक्षा ऑडिट और सार्वजनिक जानकारी पोर्टल  शुरू किए जाएं।

निष्कर्ष 

कृत्रिम बुद्धिमत्ता और डाटा आधारित अर्थव्यवस्था के इस युग में ऊर्जा ही नया “डिजिटल ईंधन” है। भारत के पास SMR जैसी स्वदेशी और सुरक्षित तकनीक विकसित कर ग्रीन ए.आई. इकोसिस्टम बनाने का सुनहरा अवसर है। यदि नीति, निवेश और नवाचार का समन्वय सही दिशा में हुआ, तो भारत वर्ष 2030 तक न केवल ए.आई. डाटा हब बल्कि लो-कार्बन न्यूक्लियर एनर्जी लीडर भी बन सकता है।

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