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एशियाई जंगली कुत्ता : ढोल

(प्रारंभिक परीक्षा : पर्यावरण एवं पारिस्थितिकी)

चर्चा में क्यों

प्रत्येक वर्ष 28 मई को विश्व ढोल दिवस (World Dhole Day) का आयोजन किया जाता है। 

ढोल (Dhole) के बारे में 

  • परिचय : यह एक सामाजिक और अत्यधिक अनुकूलनशील कैनिड प्रजाति (Canidae species) है।
  • कैनिड प्रजाति : यह मांसाहारी गण के जानवरों का एक कुल है जिसमें कुत्ता, भेड़िया, सियार, कायोटी और कई कुत्ते-जैसी जातियाँ शामिल हैं। 
  • इसकी दो मुख्य शाखाएँ हैं: कैनिनी (Canini, भेड़िये से सम्बंधित) और वलपायनी (Vulpini, सियार से सम्बंधित)।
  • आवास स्थल : मुख्य रूप से दक्षिण और दक्षिण-पूर्व एशिया के जंगलों, घास के मैदानों और पहाड़ी क्षेत्रों में। 
  • अन्य नाम : एशियाई जंगली कुत्ता, ढोल, भारतीय जंगली कुत्ता, लाल कुत्ता।
  • वैज्ञानिक नाम : कुओन अल्पाइनस (Cuon alpinus)
  • आकार और बनावट: ढोल का आकार मध्यम होता है, जो भेड़िये से थोड़ा छोटा लेकिन घरेलू कुत्ते से बड़ा होता है। 
    • नर ढोल का वजन 15-21 किलोग्राम और मादा का 10-17 किलोग्राम। 
    • लंबाई (सिर से पूंछ तक) 90-130 सेमी. और पूंछ 40-50 सेमी. लंबी।
    • ढोल के दांत अन्य कैनिड्स से भिन्न होते हैं। इसके प्रीमोलर दांत कम होते हैं, जो इसे एक मजबूत काटने की क्षमता प्रदान करते हैं।
  • भारत में विस्तार एवं निवास : भारत में, ढोल मुख्य रूप से मध्य और पश्चिमी घाट, पूर्वोत्तर राज्यों, और हिमालय के कुछ हिस्सों में पाए जाते हैं। 
    • ये विभिन्न प्रकार के आवासों जैसे घने जंगल, खुले घास के मैदान, पहाड़ी क्षेत्र, और कभी-कभी बंजर भूमि आदि में निवास करते हैं । 
    • ये समुद्र तल से 3,000 मीटर तक की ऊँचाई पर रह सकते हैं।
  • सामाजिक संरचना : यह एक अत्यधिक सामाजिक प्राणी हैं और 5-12 (कभी-कभी 40 तक) के समूहों में रहते हैं, जिन्हें पैक/समूह (Pack) कहा जाता है। 
  • संचार: ये विभिन्न ध्वनियों जैसे सीटी, भौंकना, गुर्राना और चीखने के माध्यम से संवाद करते हैं। उनकी सीटी जैसी आवाज़ विशेष रूप से विशिष्ट होती है, जो लंबी दूरी तक सुनाई देती है।
  • शिकार: ये कुशल शिकारी होते हैं जो समूह में शिकार करते हैं। ये हिरण, सांभर, चीतल, जंगली सुअर, और कभी-कभी भैंस जैसे बड़े जानवरों को भी शिकार बनाते हैं। 

पारिस्थितिक महत्व

  • ढोल पारिस्थितिकी तंत्र में शीर्ष शिकारियों में से एक हैं और शाकाहारी प्रजातियों की आबादी को नियंत्रित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
  • ये जंगल की खाद्य श्रृंखला को संतुलित रखते हैं और जैव विविधता को बनाए रखने में मदद करते हैं।
  • ढोल मृत पशुओं को खाकर पर्यावरण को साफ रखने में भी योगदान देते हैं।

संरक्षण स्थिति 

  • IUCN स्थिति : लुप्तप्राय (Endangered)
  • CITES : परिशिष्ट II
  • भारतीय वन्यजीव संरक्षण अधिनियम (WPA) 1972 : अनुसूची II में 

प्रमुख जोखिम

  • निवास स्थान का नुकसान: जंगल कटाई और मानव अतिक्रमण के कारण ढोल के प्राकृतिक आवास कम हो रहे हैं।
  • शिकार और टकराव: मानव-वन्यजीव संघर्ष में ढोल अक्सर मारे जाते हैं, खासकर जब वे पशुधन पर हमला करते हैं।
  • रोग: कुत्तों से फैलने वाले रोग, जैसे रेबीज, ढोल की आबादी के लिए खतरा हैं।

इसे भी जानिए!

विश्व ढोल दिवस के बारे में 

  • प्रारंभ : वर्ष 2017 से 
  • आयोजन : प्रत्येक वर्ष 28 मई को 
  • आयोजित : ढोल संरक्षण निधि (Dhole Conservation Fund) द्वारा
  • उद्देश्य : ढोल के बारे में वैश्विक जागरूकता बढ़ाना और संरक्षण हेतु धन जुटाना
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