चर्चा में क्यों ?
सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार से स्पष्ट जवाब मांगा कि क्या हाल ही में जारी आव्रजन और विदेशी (छूट) आदेश, 2025 असम समझौते का उल्लंघन करता है। यह आदेश तीन पड़ोसी देशों में उत्पीड़ित धार्मिक अल्पसंख्यकों को 31 दिसंबर, 2024 तक भारत में निर्बाध प्रवेश की अनुमति देता है।

प्रमुख बिन्दु:
- असम समझौते के अनुसार, असम राज्य में अवैध प्रवासियों की समय सीमा 25 मार्च, 1971 निर्धारित की गई थी।
- याचिका असम गण परिषद (एजीपी) द्वारा दायर की गई थी,
- इसमें केंद्र सरकार से इस आदेश के कानूनी प्रभाव पर जवाब मांगा गया है।
क्या है मामला ?
- असम गण परिषद (AGP) ने “आप्रवासन और विदेशी (छूट) आदेश, 2025” को चुनौती दी है।
- याचिका में कहा गया है कि यह आदेश प्रभावी रूप से नागरिकता संशोधन अधिनियम (CAA) के दायरे को बढ़ाता है और 1971 के बाद असम में आए लोगों को भी अप्रत्यक्ष रूप से संरक्षण देने की कोशिश करता है, जो असम समझौते और धारा 6A के पूरी तरह खिलाफ है।
- याचिकाकर्ता की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता जयंत भूषण और अधिवक्ता राहुल प्रताप ने पैरवी की।
- उन्होंने तर्क दिया कि
- एक बार 25 मार्च 1971 की कट-ऑफ डेट को असम समझौते और धारा 6A के जरिए कानूनी मान्यता मिल चुकी है,
- उसके बाद आए किसी भी व्यक्ति को कोई कानूनी संरक्षण नहीं मिलना चाहिए और उन्हें निर्वासित किया जाना चाहिए।
- ]नया आदेश 1971 के बाद आए लोगों को भी कवर देने का रास्ता खोलता है, जो सुप्रीम कोर्ट के हालिया फैसले का भी उल्लंघन है।
कोर्ट ने क्या कहा ?
- चीफ जस्टिस सूर्य कांत और जस्टिस जॉयमाल्या बागची की बेंच ने याचिका पर नोटिस जारी करते हुए कहा: “आपने एक बहुत दिलचस्प मुद्दा उठाया है।”
- दिलचस्प बात यह है कि सीजेआई सूर्य कांत खुद उस पांच जजों की संविधान पीठ के सदस्य थे, जिसने अक्टूबर 2024 में धारा 6A को वैध ठहराया था।
- कोर्ट ने केंद्र सरकार (गृह मंत्रालय और विदेश मंत्रालय) तथा असम सरकार को नोटिस जारी किया है और इस याचिका को उन सभी पुराने मामलों के साथ टैग करने का निर्देश दिया है, जिनमें नागरिकता संशोधन अधिनियम (CAA) 2019 पहले से ही चुनौती के घेरे में है।
नए आदेश की मुख्य बातें:
- 1 सितंबर 2025 को जारी “आप्रवासन और विदेशियों (छूट) आदेश, 2025” में कहा गया है कि
- अफगानिस्तान, पाकिस्तान और बांग्लादेश से आए हिंदू, सिख, बौद्ध, जैन, पारसी और ईसाई अल्पसंख्यक,
- जो धार्मिक उत्पीड़न के कारण 31 दिसंबर 2024 या उससे पहले भारत आए हों,
- उनके पास वैध पासपोर्ट-वीजा न भी हो, तब भी उन्हें भारत में प्रवेश और ठहरने की छूट होगी।
- याचिकाकर्ताओं का कहना है कि यह आदेश CAA के 31 दिसंबर 2014 की कट-ऑफ डेट को भी पीछे से 2024 तक बढ़ाने जैसा है और विशेष रूप से असम के लिए खतरनाक है।
असम समझौता
- असम समझौता भारत के असम राज्य में अवैध प्रवासियों के मुद्दे को हल करने के लिए 1985 में भारत सरकार और असम आंदोलन के नेताओं के बीच किया गया एक ऐतिहासिक समझौता है।
पृष्ठभूमि:
- वर्ष 1970 और 1980 के दशक में असम में अवैध बांग्लादेशी प्रवासियों की बढ़ती संख्या को लेकर असम आंदोलन शुरू हुआ।
- स्थानीय जनता और छात्र संगठन, विशेषकर अल्टरनेटिव स्टूडेंट्स यूनियन (असाम स्टूडेंट्स यूनियन - AASU) ने सरकार के खिलाफ बड़े आंदोलन किए।
- आंदोलन का मुख्य मुद्दा था:
- असम में अवैध प्रवासियों का बढ़ता प्रभाव
- स्थानीय जनता के संस्कृति, भाषा और रोजगार पर खतरा
असम आंदोलन (1979-1985):
- आंदोलन 1979 में तेज़ हुआ, जब असाम स्टूडेंट्स यूनियन (AASU) ने राज्य भर में विरोध प्रदर्शन शुरू किया।
- असहयोग और हड़तालें बढ़ती गईं और कई बार हिंसक टकराव भी हुए।
- 1983 के विधानसभा चुनाव में बड़ी संख्या में लोग बहिष्कृत हुए।
- आंदोलन का मुख्य मांगपत्र:
- 25 मार्च, 1971 के बाद आए अवैध प्रवासियों को असम से बाहर करना।
- स्थानीय जनता के अधिकारों और रोजगार की सुरक्षा।
असम समझौता (15 अगस्त, 1985):
- तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी और आंदोलन के नेता (AASU-AAGSP) के बीच बातचीत के बाद 15 अगस्त 1985 की सुबह समझौता हुआ।
- समझौते पर हस्ताक्षर करने वाले:
- केंद्र सरकार की ओर से तत्कालीन गृह सचिव आर. डी. प्रधान
- असम सरकार की ओर से मुख्य सचिव
- आंदोलनकारियों की ओर से AASU अध्यक्ष प्रफुल्ल कुमार महंत, जनरल सेक्रेटरी बृजेन गोस्वामी आदि।
मुख्य बिंदु:
- समय सीमा निर्धारित:
- 25 मार्च, 1971 के बाद असम में प्रवेश करने वाले अवैध प्रवासियों को असम से बाहर किया जाएगा।
- धारा 6ए:
- बाद में नागरिकता संशोधन अधिनियम (CAA) के तहत 1985 के समझौते को ध्यान में रखकर 6ए लागू किया गया।
- वित्तीय और सामाजिक उपाय:
- राज्य में विकास और स्थानीय जनता के कल्याण के लिए विशेष उपाय।
- राजनीतिक भागीदारी:
- असम आंदोलन के नेताओं को राजनीतिक प्रक्रिया में शामिल करने का प्रावधान।
असम समझौते के प्रमुख उद्देश्य:
- असम में अवैध प्रवासियों को पहचान कर उन्हें बाहर निकालना।
- स्थानीय भाषा और संस्कृति की रक्षा।
- सामाजिक और आर्थिक सुधार के लिए राज्य में विशेष प्रावधान।
- विवादास्पद मुद्दों को राजनीतिक और कानूनी ढांचे में हल करना।
बाद के प्रभाव:
- समझौते के बाद, असम आंदोलन समाप्त हुआ।
- 1985 के बाद भी, अवैध प्रवासियों की पहचान और निष्कासन पर लगातार विवाद और कानूनी मुद्दे उठते रहे।
- 2020 में नागरिकता संशोधन अधिनियम (CAA) लागू होने के बाद, असम समझौते और नई कानून व्यवस्था के बीच विवाद जारी है।
निष्कर्ष:
- असम समझौता असम के इतिहास में महत्वपूर्ण मोड़ है।
- यह न केवल अवैध प्रवासियों के मुद्दे को हल करने का प्रयास था, बल्कि असम के सामाजिक और सांस्कृतिक संतुलन को भी बनाए रखने की दिशा में महत्वपूर्ण कदम था।
- वर्तमान में भी इसका महत्व उच्च न्यायालय और सुप्रीम कोर्ट में उठ रहे मामलों के कारण बना हुआ है।
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प्रश्न. निम्नलिखित कथनों पर विचार करें:
- असम समझौता भारत सरकार और AASU व AAGSP के बीच संपन्न हुआ था।
- समझौते के अनुसार, 25 मार्च 1971 के बाद असम में प्रवेश करने वाले सभी विदेशी नागरिक अवैध घोषित होंगे।
- समझौता केवल बांग्लादेशी हिंदुओं को नागरिकता देने से संबंधित था।
कौन से कथन सही हैं?
(a) केवल 1 और 2
(b) केवल 2 और 3
(c) केवल 1 और 3
(d) 1, 2 और 3
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