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खगोल वैज्ञानिक जयंत नार्लीकर

20 मई, 2025 को प्रसिद्ध खगोल वैज्ञानिक जयंत नार्लीकर का 87 वर्ष की आयु में पुणे में निधन हो गया है। 

जयंत नार्लीकर : जीवन परिचय 

  • परिचय : डॉ. नार्लीकर को ब्रह्मांड विज्ञान में उनके अग्रणी योगदान, विज्ञान को लोकप्रिय बनाने के उनके प्रयासों और देश में प्रमुख अनुसंधान संस्थानों की स्थापना के लिए व्यापक रूप से जाना जाता है।
  • जन्म : 19 जुलाई, 1938 को 
  • प्रारंभिक शिक्षा : बनारस हिंदू विश्वविद्यालय (बी.एच.यू.) 
  • पिता : विष्णु वासुदेव नार्लीकर (बी.एच.यू. में प्रोफेसर और गणित विभाग के प्रमुख) 
  • उच्च शिक्षा : कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय, जहां वे गणितीय ट्रिपोज़ में रैंगलर एवं टायसन पदक विजेता बने।

योगदान एवं उपलब्धियाँ

  • वे भारत लौटकर टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ फंडामेंटल रिसर्च (1972-1989) में शामिल हो गए, जहाँ उनके नेतृत्व में सैद्धांतिक खगोल भौतिकी समूह का विस्तार हुआ और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर पहचान बनी।
  • वर्ष 1988 में विश्वविद्यालय अनुदान आयोग ने डॉ. नार्लीकर को प्रस्तावित ‘अंतर-विश्वविद्यालयी खगोल विज्ञान एवं खगोल भौतिकी केंद्र (IUCAA)’ की स्थापना के लिए इसके संस्थापक निदेशक के रूप में आमंत्रित किया।
  • वर्ष 2003 में अपनी सेवानिवृत्ति तक वे IUCAA के निदेशक रहे। उनके निर्देशन में IUCAA ने खगोल विज्ञान एवं खगोल भौतिकी में शिक्षण व अनुसंधान में उत्कृष्टता केंद्र के रूप में दुनिया भर में ख्याति अर्जित की है। वे IUCAA में एमेरिटस प्रोफेसर थे।
  • वर्ष 2012 में तृतीय विश्व विज्ञान अकादमी ने डॉ. नार्लीकर को विज्ञान में उत्कृष्टता केंद्र स्थापित करने के लिए पुरस्कार प्रदान किया। उन्हें वर्ष 1996 में यूनेस्को द्वारा लोकप्रिय विज्ञान कार्यों के लिए कलिंग पुरस्कार से सम्मानित किया गया।
  • वर्ष 1965 में 26 वर्ष की अल्पायु में पद्म भूषण से सम्मानित किया गया था। वर्ष 2004 में उन्हें पद्म विभूषण से सम्मानित किया गया तथा वर्ष 2011 में महाराष्ट्र सरकार ने उन्हें राज्य के सर्वोच्च नागरिक पुरस्कार ‘महाराष्ट्र भूषण’ से सम्मानित किया।
  • वर्ष 2014 में भारत की प्रमुख साहित्यिक संस्था साहित्य अकादमी ने उनकी आत्मकथा को क्षेत्रीय भाषा (मराठी) लेखन में अपने सर्वोच्च पुरस्कार के लिए चुना।

मुख्य कार्य 

  • उनका मुख्य कार्य ब्रह्मांड विज्ञान के क्षेत्र में रहा है- ब्रह्मांड की उत्पत्ति एवं संरचना का अध्ययन।
  • नार्लीकर ने फ्रेड होयल के साथ मिलकर गुरुत्वाकर्षण के होयल-नार्लीकर सिद्धांत (स्थिर-अवस्था सिद्धांत) को विकसित किया, जो आइंस्टीन के सापेक्षता के सामान्य सिद्धांत का एक विकल्प था।
  • स्थिर-अवस्था सिद्धांत (Steady-state Theory) : यह बिग बैंग सिद्धांत के विपरीत है जो ब्रह्मांड के एक निश्चित शुरुआत एवं संभवतः एक अंत का सुझाव देता है। स्थिर-अवस्था सिद्धांत का मानना ​​है कि ब्रह्मांड हमेशा से ऐसा ही रहा है और आगे भी ऐसा ही रहेगा अर्थात विस्तार में अनंत, बिना किसी शुरुआत या अंत के।
    • इस सिद्धांत ने यह प्रस्तावित किया कि ब्रह्मांड में किसी भी स्थान पर गुरुत्वाकर्षण दूर की वस्तुओं से भी प्रभावित हो सकता है। एक तरह से ब्रह्मांड में हर जगह मौजूद सभी पदार्थ किसी भी स्थान पर गुरुत्वाकर्षण में योगदान करते हैं।
    • इसके विपरीत आइंस्टीन ने सापेक्षता के सामान्य सिद्धांत के द्वारा प्रस्तावित किया कि गुरुत्वाकर्षण, द्रव्यमान एवं ऊर्जा द्वारा अंतरिक्ष-समय में उत्पन्न विकृतियों का परिणाम है।
  • होयल- नार्लीकर सिद्धांत का उद्देश्य माक के सिद्धांत को आइंस्टीन के विचारों के साथ जोड़ना और विस्तारित ब्रह्मांड के लिए एक अलग व्याख्या प्रदान करना था।
    • माक का सिद्धांत यह सुझाव देता है कि किसी वस्तु का जड़त्वीय द्रव्यमान उसका आंतरिक गुण नहीं है बल्कि यह ब्रह्मांड में अन्य सभी पदार्थों के साथ गुरुत्वाकर्षण अंतःक्रिया का परिणाम है।

प्रमुख पुस्तकें 

  • दि लाइटर साइड ऑफ़ ग्रेविटी (The Lighter Side of Gravity)
  • सेवेन वंडर्स ऑफ़ दि कॉसमॉस (Seven Wonders of the Cosmos)
  • दि साइंटिफिक एज (The Scientific Edge)
  • कॉस्मिक सफारी (Cosmic Safari)
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