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(प्रारंभिक परीक्षा: समसामयिक घटनाक्रम) (मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र- 2: स्वास्थ्य, शिक्षा, मानव संसाधनों से संबंधित सामाजिक क्षेत्र/सेवाओं के विकास और प्रबंधन से संबंधित विषय)
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संदर्भ
भारत में खाद्य पदार्थों में रासायनिक मिलावट की समस्या लगातार सामने आती रही है। हाल में कई राज्यों में निरीक्षण के दौरान मिठाइयों, स्नैक्स व चने जैसे खाद्य पदार्थों में ‘ऑरामाइन-O’ नामक एक प्रतिबंधित औद्योगिक रंग (डाई ) पाया गया है। यह एक गंभीर स्वास्थ्य जोखिम है और भारत की खाद्य सुरक्षा व्यवस्था में मौजूद कमजोरियों की ओर संकेत करता है।
भुने हुए चने में मिलाने से चना चमकीला एवं कुरकुरा लगता है। इसे फूड सेफ्टी एंड स्टैंडर्ड्स एक्ट, 2006 के तहत खाने में मिलाना प्रतिबंधित है। विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) की इंटरनेशनल एजेंसी फॉर रिसर्च ऑन कैंसर (IARC) भी इसे संभावित कॉर्सिनोजेनिक (कैंसरकारी) पदार्थ मानती है।
ऑरामाइन (Auramine) के बारे में
- ऑरामाइन-O एक सिंथेटिक पीला औद्योगिक रंग का यौगिक है।
- इसका उपयोग टेक्सटाइल, पेपर, लेदर प्रोसेसिंग और प्रयोगशाला स्टेनिंग प्रक्रियाओं में होता है।
- भारत, अमेरिका, यूरोपीय संघ और अन्य देशों में इसे खाद्य रंग के रूप में अनुमति नहीं है।
- स्वास्थ्य जोखिम:
- लीवर और किडनी को नुकसान
- प्लीहा (Spleen) में सूजन
- डीएनए को क्षति पहुँचाने वाले म्यूटाजेनिक प्रभाव
- कैंसर की संभावना (IARC: संभवतः मानव के लिए कार्सिनोजेनिक)
खाद्य पदार्थों में ऑरामाइन की पहुँच
- यह रंग बहुत सस्ता और आसानी से उपलब्ध होता है।
- मिठाई बनाने वाले छोटे दुकानदार या स्ट्रीट वेंडर अक्सर अनजाने में या लागत कम करने के लिए इसे प्रयोग कर लेते हैं।
- यह रंग हल्दी, केसर या अधिकृत फूड कलर जैसा चमकीला पीला रंग देता है।
- त्योहारी मौसम में मिठाइयों व नमकीनों की भारी मांग के कारण इसकी मिलावट और बढ़ जाती है।
भारत में मिलावट के पुराने प्रयोग
- विगत चार दशकों में भारत कई प्रकार की मिलावट की घटनाओं से जूझ चुका है :
- मेटानिल येलो (हल्दी में)
- रोडामाइन B (कॉटन कैंडी व मसालों में)
- सूडान डाई (लाल मिर्च व मसालों में)
- अर्जेमोन तेल (सरसों के तेल में)
- कैल्शियम कार्बाइड (फलों को पकाने में)
- यूरिया (दूध गाढ़ा करने में)
- ऑरामाइन भी इसी व्यापक समस्या का हिस्सा है।
भारत में जांच के प्रमुख निष्कर्ष
- अनाधिकृत रंगों का प्रयोग छोटे और असंगठित खाद्य क्षेत्रों में अधिक पाया गया।
- कई राज्यों में मिठाइयों, नमकीनों, आचार व चटनी में प्रतिबंधित डाई की उपस्थिति दर्ज की गई।
- खाद्य आपूर्ति श्रृंखला (जैसे- छोटे दुकानदार, स्थानीय बाजार) में औपचारिक नियंत्रण कमजोर है।
- FSSAI के कठोर प्रावधानों के बावजूद प्रयोगशालाओं की कमी, स्टॉफ की कमी और सीमित निगरानी के कारण प्रवर्तन कमजोर रहता है।
वैश्विक स्थिति
- कुछ दशकों पहले कई देशों में खाद्य मिलावट में औद्योगिक डाई का उपयोग समस्या था।
- आज अमेरिका, यूरोप एवं एशिया के विकसित देशों में ऑरामाइन को केवल औद्योगिक उपयोग के रूप में मानते हैं।
- यदि खाद्य पदार्थों में यह पाया जाता है तो तुरंत रिकॉल, भारी जुर्माना और आयात प्रतिबंध लगाए जाते हैं।
- दक्षिण एशिया और अफ्रीका के कुछ हिस्सों में अभी भी इसका उपयोग छिटपुट रूप से देखा जा रहा है।
भारत में इसकी पुनरावृत्ति संबंधी चिंताएं
- भारत में स्ट्रीट फूड और त्योहारों की मिठाइयाँ रंगीन व अधिक मांग में होती हैं।
- इन खाद्य पदार्थों की सप्लाई चेन अधिकतर असंगठित होती है जहाँ निगरानी कम है।
- बच्चे चमकीले रंग वाले खाद्य पदार्थ अधिक खाते हैं, जिससे उनका जोखिम बढ़ जाता है।
- बार-बार मिलावट मिलने से उपभोक्ता विश्वास कम होता है और नियामक संस्थाओं पर दबाव बढ़ता है।
उठाए गए कदम
- FSSAI त्योहारी समय में निरीक्षण और सैंपलिंग बढ़ाता है।
- कई राज्यों ने अवैध रंग बेचने वाले थोक विक्रेताओं पर छापे मारे हैं।
- छोटे खाद्य निर्माताओं और स्ट्रीट वेंडर्स के लिए जागरूकता अभियान चलाए जा रहे हैं।
- त्वरित जांच किट विकसित की जा रही हैं जिससे दुकानों पर ही प्रतिबंधित रंगों का परीक्षण हो सके।
- प्रयोगशालाओं और प्रवर्तन टीमों को मजबूत करने की दिशा में भी कदम उठाए जा रहे हैं।
आगे की राह
- औद्योगिक डाई बेचने वाले स्थानीय बाजारों की कड़ी निगरानी।
- छोटे खाद्य निर्माताओं के लिए सस्ते और सुरक्षित फूड कलर उपलब्ध कराना।
- उपभोक्ताओं को जागरूक करना कि असामान्य रूप से चमकीले रंग अक्सर मिलावट का संकेत होते हैं।
- मिलावट करने वालों के खिलाफ कठोर दंड और बार-बार पकड़े जाने पर लाइसेंस रद्द करने की व्यवस्था।
- खाद्य सुरक्षा प्रणाली को मजबूत करने के लिए निरंतर वैज्ञानिक मूल्यांकन और अनुसंधान।
निष्कर्ष
ऑरामाइन जैसी प्रतिबंधित औद्योगिक डाई का भारतीय खाद्य पदार्थों में पुन: पाया जाना खाद्य सुरक्षा की गंभीर चुनौती है। इसे खत्म करने के लिए सरकार, खाद्य निर्माता, उपभोक्ता और बाजार सभी को अपनी भूमिका निभानी होगी। सुरक्षित, स्वच्छ और विश्वसनीय भोजन प्रदान करना एक सामूहिक जिम्मेदारी है, और इसके लिए जागरूकता तथा कठोर प्रवर्तन दोनों आवश्यक हैं।