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रूस और अमेरिका के साथ भारत के रक्षा सम्बंधों के लिये सी.ए.ए.टी.एस.ए. के निहितार्थ

(प्रारम्भिक परीक्षा: राष्ट्रीय व अंतर्राष्ट्रीय महत्त्व की सामयिक घटनाएँ)
(मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र- 2: द्विपक्षीय, क्षेत्रीय और वैश्विक समूह तथा भारत से सम्बंधित और भारत के हितों को प्रभावित करने वाले करार, भारत के हितों पर विकसित व विकासशील देशों की नीतियों तथा राजनीति का प्रभाव)

पृष्ठभूमि

हाल ही में, भारत ने रूस से मिग- 19 लड़ाकू विमानों सहित अन्य रक्षा उपकरणों की खरीद प्रक्रिया में तेज़ी लाई है। इसको ध्यान में रखते हुए अमेरिका ने भारत सहित अन्य देशों के संदर्भ में प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए कहा है कि रूस से हथियारों की खरीद में शामिल देशों पर लगाए जाने वाले प्रतिबंधों के रूख में कोई बदलाव नहीं किया गया है।

सी.ए.ए.टी.एस.ए. (CAATSA)

  • सी.ए.ए.टी.एस.ए. का पूरा नाम- ‘काउंटरिंग अमेरिकाज़ एडवर्सरीज़ थ्रू सैंक्शंस एक्ट’ (Countering America’s Adversaries through Sanctions Act- CAATSA) है।
  • यह एक अमेरिकी संघीय कानून है जो ईरान, उत्तर कोरिया और रूस की आक्रामकता का सामना दंडनात्मक व प्रतिबंधात्मक उपायों के माध्यम से करता है।
  • यह विधेयक साइबर सुरक्षा, कच्चे तेल की परियोजनाओं, भ्रष्टाचार व वित्तीय संस्थाओं के साथ-साथ मानवाधिकारों के हनन तथा रूसी रक्षा या खुफिया क्षेत्रों के साथ लेन-देन से सम्बंधित गतिविधियों पर प्रतिबंध लगाता है।
  • इसमें उन देशों/व्यक्तियों के खिलाफ भी प्रतिबंध शामिल हैं जो रूस के साथ रक्षा और खुफिया क्षेत्रों में महत्त्वपूर्ण लेन-देन में संलग्न हैं।
  • इस अधिनियम की धारा 231 में अमेरिकी राष्ट्रपति को रूसी रक्षा और खुफिया क्षेत्रों के साथ ‘महत्त्वपूर्ण लेनदेन’ में संलग्न व्यक्तियों पर प्रतिबंध लगाने का अधिकार है। साथ ही, इस अधिनियम की धारा 235 में 12 प्रतिबंधों का उल्लेख किया गया है। इन प्रतिबंधों में से दो सबसे कड़े निर्णय कुछ निर्यात लाइसेंस पर प्रतिबंध तथा प्रतिबंधित व्यक्तियों द्वारा इक्विटी / ऋण द्वारा अमेरिकी निवेश पर प्रतिबंध शामिल हैं।
  • जुलाई 2018 में, अमेरिका ने कहा था कि वह भारत, इंडोनेशिया और वियतनाम को सी.ए.ए.टी.एस.ए. प्रतिबंधों में छूट देने के लिये तैयार है। अमेरिकी राष्ट्रपति को वित्तीय वर्ष 2019 के लिये कुछ मामलों के आधार पर सी.ए.ए.टी.एस.ए. प्रतिबंधों में छूट देने का अधिकार दिया गया था।

चिंता का कारण

  • अमेरिका ने वर्ष 2016 में भारत को एक प्रमुख रक्षा भागीदार के रूप में मान्यता दी। हालाँकि, अमेरिका मुख्य रूप से विमान और तोपखाने के मामलें में दूसरा सबसे बड़ा रक्षा आपूर्तिकर्ता बन गया है, फिर भी भारत अभी पनडुब्बियों और मिसाइलों जैसी उन रूसी उपकरणों पर बहुत अधिक निर्भर करता है जिन उपकरणों को प्रदान करने के लिये अमेरिका तैयार नहीं हुआ है।
  • भारत में प्रयोग होने वाले सैन्य साज़ो-सामान व हार्डवेयर के लगभग 70 % का स्रोत रूस है।
  • इसके अतिरिक्त भारत, रूस के साथ S - 400 वायु रक्षा प्रणाली की ख़रीद प्रक्रिया में भी संलग्न है अतः भारत सी.ए.ए.टी.एस.ए. के अंतर्गत अमरीकी प्रतिबंधों का भी सामना कर सकता है। अमेरिकी ने बार-बार कहा है कि भारत को यह नहीं मानना चाहिये कि उसे कोई विशेष छूट मिलेगी।
  • अमेरिका के अनुसार, यह निश्चित नहीं है कि किस प्रकार के विशिष्ट लेन-देन के परिणामस्वरूप प्रतिबंधों का परिणाम कैसा होगा।
  • S - 400 को रूस की सबसे उन्नत लम्बी दूरी की सतह से हवा में मार करने वाली मिसाइल रक्षा प्रणाली के रूप में जाना जाता है। इस प्रणाली की ख़रीद के लिये वर्ष 2014 में रूस के साथ सरकार-से-सरकार समझौते पर मुहर लगाने वाला चीन पहला विदेशी खरीदार था।

सी.ए.ए.टी.एस.ए. प्रतिबंधों का सामना करने वाले देश

  • ध्यान देने योग्य है कि रूस 6 दशकों से अधिक समय से भारत का प्रमुख रक्षा आपूर्तिकर्ता देश रहा है। साथ ही ईरान, भारत के लिये एक बड़ा तेल आपूर्तिकर्ता देश रहा है।
  • सी.ए.ए.टी.एस.ए. के तहत अब तक अमेरिका द्वारा दो बार पहले ही प्रतिबंध लागू किया जा चुका है और दोनों बार यह प्रतिबंध रूस से वायु रक्षा प्रणाली की खरीद करने वाले देशों पर ही लगाया गया है।
  • सितम्बर 2018 में, अमेरिका ने S- 400 वायु रक्षा प्रणाली और सुखोई S - 35 लड़ाकू विमानों की खरीद में शामिल देशों के विरुद्ध प्रतिबंधों की घोषणा की थी।
  • उल्लेखनीय है कि रूस द्वारा तुर्की को S- 400 की पहली खेप सौंपने के बाद अमेरिका ने तुर्की को अमेरिकी F- 35 विमान कार्यक्रम से निलम्बित करते हुए जेट खरीदने से रोक दिया था। हालाँकि, यह प्रतिबंध सी.ए.ए.टी.एस.ए. को लागू किये बिना ही कर दिया गया था।

निष्कर्ष

वास्तविक नियंत्रण रेखा (LAC) पर चीन के साथ सीमा संघर्ष के बीच भारत के लिये रक्षा खरीद महत्त्वपूर्ण हो गई है। रूस, भारत का पुराना रक्षा साझेदार है जबकि अमेरिका भी वर्तमान में भारत का बड़ा कूटनीतिक सहयोगी है। ऐसी स्थिति में, भारत को अपने राष्ट्रीय हित से समझौता किये बिना रूस और अमेरिका दोनों के साथ अपने सम्बंध को संतुलित करने की आवश्यकता है।

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