(मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र- 3: संरक्षण, पर्यावरण प्रदूषण एवं क्षरण, पर्यावरण प्रभाव का आकलन) |
संदर्भ
एक हालिया रिपोर्ट के अनुसार प्लास्टिक उद्योग कथित रूप से पर्यावरण नीति निर्माण को प्रभावित कर रहे हैं जिससे इनके विनियमन में कमी के साथ ही हरित परिवर्तन में भी देरी हो रही है।
हरित नीतियों को प्रभावित करने के प्रयास
उद्योग लॉबिंग
- प्लास्टिक एवं पेट्रोकेमिकल उद्योगों ने कथित तौर पर पर्यावरण नीतियों को अपने पक्ष में करने के लिए लॉबिंग के प्रयासों को बढ़ावा दिया है।
- इन प्रयासों का उद्देश्य विस्तारित उत्पादक उत्तरदायित्व (Extended Producer Responsibility: EPR) मानदंडों और एकल-उपयोग प्लास्टिक पर प्रतिबंध को कमज़ोर करना है।
- प्लास्टिक एवं जीवाश्म ईंधन उद्योगों ने संयुक्त राष्ट्र के तहत वैश्विक प्लास्टिक संधि के लिए वार्ता को प्रभावित करने की कोशिश की है।
नैरेटिव में बदलाव
- प्लास्टिक उत्पादन को कम करने के बजाय उद्योग प्राथमिक समाधान के रूप में पुनर्चक्रण एवं अपशिष्ट प्रबंधन को बढ़ावा दे रहे हैं।
- यह दृष्टिकोण प्लास्टिक को उसके मूल स्रोत पर ही रोकने से ध्यान को विचलित करता है।
- प्लास्टिक निर्माताओं ने कॉर्पोरेट जवाबदेही से ध्यान भटकाते हुए उपभोक्ताओं पर पुनर्चक्रण न करने का आरोप लगाया है।
- इसका परिणाम यह होता है कि व्यवस्थित (सामूहिक) क्षति को व्यक्तिगत विफलता के रूप में प्रस्तुत किया जाता है।
भ्रामक प्रचार और विज्ञान का वित्तपोषण
- प्लास्टिक उद्योग ने 1980 के दशक से पुनर्चक्रण को एक समाधान के रूप में बढ़ावा दिया, जबकि निजी तौर पर बड़े पैमाने पर इसकी आर्थिक व तकनीकी अव्यवहारिकता को स्वीकार किया गया था।
- जब व्यापारिक समूहों ने प्रतिबंधों से बचने के लिए प्लास्टिक की ‘पुनर्चक्रणीयता’ के बारे में सार्वजनिक अभियान चलाए, तब भी अधिकांश प्लास्टिक कचरे को जलाने के साथ ही लैंडफिल में डाला या खुले में फेंका जाता रहा।
ग्रीनवाशिंग
- वर्तमान में स्पष्ट, लागू करने योग्य मानकों का अभाव और देश के अपशिष्ट प्रसंस्करण ढाँचे में कमियाँ ‘बायोडिग्रेडेबल’ या ‘कम्पोस्टेबल’ लेबल लगे प्लास्टिक को बिल्कुल भी उस तरह नहीं बनातीं है जिस प्रकार उनका प्रचार किया जाता है।
- इससे उपभोक्ताओं को इन प्लास्टिक के वास्तविक पर्यावरणीय प्रभावों के बारे में गलत धारणा हो सकती है।
- उदाहरण के लिए, कोका-कोला पर हाल ही में ग्रीनवाशिंग का आरोप लगा था क्योंकि उसने वर्ष 2030 तक 25% पुन: प्रयोज्य पैकेजिंग के अपने लक्ष्य को त्याग देने के साथ ही अपने पुनर्चक्रण लक्ष्यों को कम कर दिया था।
वैश्विक प्रभाव पैटर्न
- वैश्विक स्तर पर भी इसी तरह के रुझान देखे जा रहे हैं, जहाँ प्लास्टिक लॉबी अंतर्राष्ट्रीय जलवायु समझौतों और वैश्विक प्लास्टिक संधियों के तहत कड़े नियमों का विरोध करती हैं।
- प्लास्टिक के लिए कच्चे माल की उपलब्धता सुनिश्चित करने वाला जीवाश्म ईंधन उद्योग, इन लॉबिंग प्रयासों से निकटता से जुड़ा हुआ है।
वैश्विक दक्षिण की ओर ध्यान केंद्रित करना
- वैश्विक उत्तर (Global North) में एकल-उपयोग वाले प्लास्टिक के उपयोग को कम करने और पैकेजिंग में इस सामग्री के उपयोग को युक्तिसंगत बनाने के नियमों के सख्त होने के साथ प्लास्टिक उत्पादक विकास को बनाए रखने के लिए वैश्विक दक्षिण (निम्न एवं मध्यम आय वाले देशों) पर ध्यान केंद्रित कर रहे हैं।
- वर्ष 2022 में OECD की ‘ग्लोबल प्लास्टिक आउटलुक’ रिपोर्ट के अनुसार, वर्ष 2060 तक उप-सहारा अफ्रीका में प्लास्टिक की खपत दोगुनी से अधिक और एशिया में तिगुनी होने का अनुमान है।
- हालाँकि, इसी अवधि में यूरोप में केवल 15% और उत्तरी अमेरिका में 34% की वृद्धि होगी।
- विज्ञान एवं पर्यावरण केंद्र की वर्ष 2023 की एक रिपोर्ट के अनुसार भारत द्वारा 19 एकल-उपयोग वाले प्लास्टिक पर प्रतिबंध उसके एकल-उपयोग वाले प्लास्टिक कचरे के केवल लगभग 11% को ही कवर करता है और इसका प्रवर्तन असंगत रहा है।
- प्लास्टिक उद्योग द्वारा वैश्विक दक्षिण की ओर ध्यान केंद्रित करने का प्रमुख कारण कमजोर पर्यावरण नियम, सीमित सार्वजनिक जागरूकता और अपर्याप्त अपशिष्ट प्रबंधन प्रणालियाँ हैं जिससे ये क्षेत्र विशेष रूप से बढ़ते प्लास्टिक प्रदूषण के प्रति संवेदनशील हो गए हैं।
भारत पर प्रभाव
- औद्योगिक दबाव से अनुचित रूप से प्रभावित होने पर भारत के प्लास्टिक अपशिष्ट प्रबंधन नियम एवं ई.पी.आर. ढाँचे के कमज़ोर होने का खतरा है।
- गैर-सरकारी संगठन और पर्यावरणविद की चेतावनी है कि इस तरह का प्रभाव जनहित तथा भारत की जलवायु प्रतिबद्धताओं को कमज़ोर करता है।
भारत में प्लास्टिक अपशिष्ट प्रबंधन की स्थिति
अनौपचारिक क्षेत्र द्वारा प्रबंधन
- भारत में अपशिष्ट प्रबंधन प्रणाली में अधिकांशत: अनौपचारिक क्षेत्र के लोग शामिल हैं जो पुनर्चक्रित होने वाले 70% प्लास्टिक को एकत्र करने और उसका प्रसंस्करण करने के लिए ज़िम्मेदार हैं।
- हालाँकि, इसका कार्य प्राय: उनके स्वास्थ्य एवं सम्मान की कीमत पर होता है, जिससे वे बिना किसी सुरक्षात्मक उपकरण, कानूनी मान्यता या सामाजिक सुरक्षा के खतरनाक पदार्थों तथा ज़हरीले धुएँ के संपर्क में आ जाते हैं।
- उन्हें दीर्घकालिक स्वास्थ्य जोखिमों का सामना करना पड़ता है, जिनमें श्वसन संबंधी बीमारियाँ और संक्रमण शामिल हैं।
- स्थिर आय और बुनियादी सामाजिक सुरक्षा तक पहुँच के अभाव के कारण वे प्राय: गरीबी रेखा से नीचे जीवन यापन करते हैं।
सरकार द्वारा प्रयास
भारत सरकार ने अपशिष्ट प्रबंधन में अनौपचारिक क्षेत्र की भूमिका को समझते हुए उन्हें औपचारिक क्षेत्र में शामिल करने और उनकी सुरक्षा के लिए कुछ कदम उठाए हैं।
राष्ट्रीय यंत्रीकृत स्वच्छता पारिस्थितिकी तंत्र योजना
- वर्ष 2024 में शुरू की गई राष्ट्रीय यंत्रीकृत स्वच्छता पारिस्थितिकी तंत्र योजना का उद्देश्य कचरा बीनने वालों को सुरक्षा उपाय, आयुष्मान भारत के तहत स्वास्थ्य बीमा और सामाजिक सुरक्षा लाभों तक पहुँच प्रदान करके औपचारिक अपशिष्ट प्रणालियों में एकीकृत करना है।
- सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्रालय के अनुसार, मई 2025 तक इस योजना के तहत 80,000 से ज़्यादा सफ़ाई व कचरा बीनने वाले कर्मचारियों का प्रोफ़ाइल तैयार किया जा चुका है।
- इनमें से 45,700 से ज़्यादा को व्यक्तिगत सुरक्षा उपकरण दिए गए हैं और लगभग 26,400 को आयुष्मान भारत स्वास्थ्य कार्ड जारी किए गए हैं।
प्लास्टिक अपशिष्ट प्रबंधन नियम 2016 (2022 में संशोधित)
- प्लास्टिक अपशिष्ट प्रबंधन नियम, 2016 (2022 में संशोधित) के तहत विस्तारित उत्पादक उत्तरदायित्व दिशानिर्देशों के अनुसार, निर्माताओं को अपने द्वारा उत्पादित प्लास्टिक की वित्तीय एवं परिचालनात्मक ज़िम्मेदारी लेनी होगी।
- हालाँकि, विशेषज्ञों ने इस अधिनियम के प्रवर्तन में खामियों की आलोचना की है, जहाँ आधे से भी कम उत्पादक अपने दायित्वों का पालन कर रहे हैं।
निष्कर्ष
यद्यपि सतत नीति कार्यान्वयन के लिए औद्योगिक सहयोग आवश्यक है किंतु प्लास्टिक लॉबी के अनुचित प्रभाव से भारत के हरित संक्रमण में विचलन का जोखिम है। ऐसे में आर्थिक एवं पर्यावरणीय हितों के संतुलन के लिए सतर्क विनियमन व पारदर्शी नीति निर्माण अत्यंत महत्त्वपूर्ण हैं।