| (मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र- 1) |
चर्चा में क्यों ?
हाल ही में कश्मीर घाटी में बारिश और बर्फबारी का सिलसिला शुरू होने की संभावना जताई गई है, जिसके साथ ही क्षेत्र में ‘चिल्लई-कलां’ की शुरुआत होने जा रही है। यह अवधि कश्मीर की सबसे भीषण शीत ऋतु मानी जाती है।

क्या है चिल्लई-कलां ?
- चिल्लई-कलां कश्मीर क्षेत्र में 40 दिनों की अत्यधिक ठंड की अवधि होती है।
- यह एक फारसी शब्द है, जिसका अर्थ “अत्यधिक सर्दी” होता है।
- चिल्लई-कलां की अवधि सामान्यतः 21 दिसंबर से 30 जनवरी तक रहती है।
- इस दौरान तापमान अक्सर शून्य से नीचे चला जाता है।
- इस समय कश्मीर घाटी में भारी हिमपात देखने को मिलता है।
चिल्लई के तीन चरण:
- चिल्लई-कलां (भयंकर सर्दी):
- कश्मीर में सर्दियों का सबसे कठोर चरण होता है।
- इसकी अवधि 21 दिसंबर से 30 जनवरी तक होती है, जो कुल 40 दिन की होती है।
- इस चरण में सबसे अधिक ठंड और भारी हिमपात होता है।
- चिल्लई-खुर्द (छोटी सर्दी):
- चिल्लई-कलां के बाद का चरण होता है।
- इसकी अवधि 31 जनवरी से 19 फरवरी तक होती है, जो 20 दिन की होती है।
- इस दौरान ठंड की तीव्रता अपेक्षाकृत कम हो जाती है।
- चिल्लई-बच्चा (मामूली सर्दी):
- सर्दियों का अंतिम चरण होता है।
- इसकी अवधि 20 फरवरी से 2 मार्च तक होती है, जो 10 दिन की होती है।
- इस चरण में ठंड हल्की होती है और सर्दियों का अंत माना जाता है।
सांस्कृतिक महत्व:
- फारसी परंपरा में 21 दिसंबर की रात का विशेष सांस्कृतिक महत्व है।
- इस रात को शब-ए यल्दा कहा जाता है, जिसका अर्थ है “जन्म की रात”।
- इसे शब-ए चेलेह भी कहा जाता है, जिसका अर्थ “चालीस की रात” होता है।
- यह रात सर्दियों की सबसे लंबी रात मानी जाती है।
- शब-ए यल्दा को प्रकाश के पुनर्जन्म और अंधकार पर उजाले की विजय के प्रतीक के रूप में देखा जाता है।
चिल्लई-कलां के प्रमुख प्रभाव: जलवायु और जीवन पर असर
- चिल्लई-कलां के दौरान कश्मीर घाटी को अत्यधिक कठोर जलवायु का सामना करना पड़ता है।
- इस अवधि में क्षेत्र में तीव्र शीत लहरें चलती हैं।
- भारी और लगातार हिमपात होता है।
- तापमान लंबे समय तक शून्य से नीचे बना रहता है।
- इसका प्रभाव सामान्य जनजीवन, आवागमन और दैनिक गतिविधियों पर स्पष्ट रूप से दिखाई देता है।
जल संसाधनों के लिए वरदान:
- चिल्लई-कलां के दौरान होने वाली बर्फबारी जल संसाधनों के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण मानी जाती है।
- पारंपरिक रूप से इस अवधि की बर्फबारी ऊपरी जल भंडारों को भर देती है।
- यही जमी हुई बर्फ गर्मियों में धीरे-धीरे पिघलती है।
- इससे नदियों को निरंतर जल प्रवाह मिलता है।
- धाराएँ और झीलें भी इसी हिमपात के कारण जीवित रहती हैं।
- इस प्रकार चिल्लई-कलां दीर्घकालीन जल सुरक्षा में अहम भूमिका निभाता है।
कृषि और अर्थव्यवस्था पर प्रभाव:
- चिल्लई-कलां के दौरान जमी बर्फ की मोटी परत कृषि के लिए उपयोगी मानी जाती है।
- यह परत रबी फसलों को अत्यधिक ठंड से सुरक्षा प्रदान करती है।
- बर्फ की मौजूदगी से मिट्टी में नमी बनी रहती है।
- पर्यटन क्षेत्र में इस अवधि के दौरान विंटर टूरिज्म को बढ़ावा मिलता है।
- स्नो स्पोर्ट्स और शीतकालीन पर्यटन गतिविधियाँ आकर्षण का केंद्र बनती हैं।
- हालांकि, भारी बर्फबारी के कारण सामान्य जनजीवन और आवागमन प्रभावित होता है।
निष्कर्ष :
- चिल्लई-कलां केवल कश्मीर घाटी की भीषण सर्दी का प्रतीक नहीं है, बल्कि यह क्षेत्र के प्राकृतिक संतुलन, जल सुरक्षा और पारिस्थितिकी तंत्र से गहराई से जुड़ा हुआ है।
- इस अवधि में होने वाला हिमपात नदियों, झीलों और भूजल के लिए दीर्घकालीन जल आपूर्ति सुनिश्चित करता है, जो गर्मियों के महीनों में जीवनरेखा का कार्य करता है।
- साथ ही, चिल्लई-कलां कश्मीर की सांस्कृतिक पहचान और परंपराओं से भी जुड़ा है, जो स्थानीय समाज के जीवन-चक्र को आकार देता है।
- हालांकि, जलवायु परिवर्तन के चलते बर्फबारी की मात्रा, समय और तीव्रता में हो रहे बदलाव भविष्य के लिए चिंता का विषय हैं।
- ऐसे में चिल्लई-कलां के बदलते स्वरूप की वैज्ञानिक निगरानी, जल प्रबंधन की दीर्घकालीन योजना और आपदा-तैयारी को मजबूत करना अत्यंत आवश्यक हो गया है।
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प्रश्न. ‘चिल्लई-कलां’ शब्द का संबंध किससे है ?
(a) मानसून अवधि
(b) कश्मीर की भीषण सर्दी
(c) फसल चक्र
(d) पर्वतीय पर्यटन
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