संदर्भ
- सर्वोच्च न्यायालय ने पहली बार प्रतिकूल जलवायु प्रभावों के विरुद्ध अधिकार को जीवन और समानता के अधिकार के अभिन्न अंग के रूप में मान्यता दी है।
- हालिया फैसला गंभीर रूप से लुप्तप्राय ग्रेट इंडियन बस्टर्ड (GIB) व लेसर फ्लोरिकन के संरक्षण से संबंधित एक मामले में भारत के मुख्य न्यायाधीश (CJI) डीवाई चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति जेबी पारदीवाला और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा की तीन-न्यायाधीशों की पीठ ने सुनाया है।
पृष्टभूमि:
- वर्ष 2019 में पर्यावरणविदों ने सर्वोच्च न्यायालय में याचिका दायर की, जिसमें अनुरोध किया गया कि सभी मौजूदा और संभावित ओवरहेड लाइनों को भूमिगत स्थानांतरित कर दिया जाए।
- अप्रैल 2021 में, सर्वोच्च न्यायालय ने पक्षियों की सुरक्षा के लिए गुजरात और राजस्थान के एक विशाल क्षेत्र के भीतर ओवरहेड ट्रांसमिशन लाइनों पर प्रतिबंध लगाते हुए, उन्हें भूमिगत बिजली लाइनों में बदलने का प्रस्ताव दिया था।
- केंद्र के नवीन और नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय (MNRE) द्वारा समर्थित निजी और सार्वजनिक बिजली कंपनियों ने तर्क दिया कि सभी ओवरहेड लाइनों को भूमिगत स्थानांतरित करना महंगा और अव्यवहारिक होगा और इससे सौर ऊर्जा की लागत में काफी वृद्धि होगी, जिससे हरित विकास के लिए भारत की प्रतिबद्धता कमजोर होगी।
- मार्च 2024 में, सर्वोच्च न्यायालय ने तकनीकी जटिलताओं और उच्च लागत जैसी व्यावहारिक चुनौतियों को स्वीकार करते हुए उपरोक्त फैसले को पलट दिया।
- कोर्ट ने कहा कि, भूमिगत विद्युतीकरण भारत की सौर विद्युतीकरण की राह में बाधा बनेगा।
- कोर्ट ने नवीकरणीय ऊर्जा और पर्यावरण संरक्षण को बढ़ावा देने के साथ GIB के संरक्षण को संतुलित करने के महत्व पर जोर दिया है।
ग्रेट इंडियन बस्टर्ड (GIB)
- ऐतिहासिक रूप से, ग्रेट इंडियन बस्टर्ड पूरे पश्चिमी भारत में, 11 राज्यों के साथ-साथ पाकिस्तान के कुछ हिस्सों में पाए जाते थें।
- वर्तमान में इसकी आबादी ज्यादातर राजस्थान और गुजरात तक ही सीमित है।
- हालाँकि, इसकी एक छोटी आबादी महाराष्ट्र, कर्नाटक और आंध्र प्रदेश में भी पाई जाती है।
- इसे प्रमुख घासभूमि प्रजाति माना जाता है, जो घासभूमि पारिस्थितिकी के स्वास्थ्य का प्रतिनिधित्व करती है।
- वैज्ञानिक नाम: ‘अर्देओटिस नाइग्रिसेप्स’।
खतरा:
- बिजली पारेषण लाइनों के साथ टकराव/विद्युत के झटके,
- शिकार (पाकिस्तान में अभी भी प्रचलित)
- व्यापक कृषि विस्तार के परिणामस्वरूप निवास स्थान की हानि और परिवर्तन
- रासायनिक उर्वरकों और कीटनाशकों का उपयोग
- अत्यधिक चराई
- औद्योगीकरण
- खनन और खदान गतिविधियाँ
- अनैतिक फोटोग्राफी से अशांति
- जंगली कुत्तों द्वारा चूजे का शिकार आदि।
संरक्षण:
- IUCN लाल सूची: गंभीर रूप से लुप्तप्राय (CR)
- CITES: परिशिष्ट 1 में
- प्रवासी प्रजातियों पर कन्वेंशन (सीएमएस): परिशिष्ट 1 में।
- वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम, 1972: अनुसूची 1 में।
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लेसर फ्लोरिकन
- लेसर फ्लोरिकन घास के मैदानों का एक विशिष्ट पक्षी है, जो भारतीय उपमहाद्वीप में पाया जाता है।
- यह बस्टर्ड परिवार से संबंधित है।
- यह भारत में पाई जाने वाली सभी बस्टर्ड प्रजातियों में से सबसे छोटी है।
- स्थानीय रूप से, इस पक्षी को गुजरात में खरमोर (घास का मोर) और राजस्थान में खार टिटर (घास का तीतर) के नाम से जाना जाता है।
- यह प्रजाति राजस्थान, गुजरात, मध्य प्रदेश और आंध्र प्रदेश, महाराष्ट्र और कर्नाटक के कुछ हिस्सों में पायी जाती है।
- वैज्ञानिक नाम: ‘साइफियोटाइड्स इंडिकस’।
- संरक्षण:
- IUCN लाल सूची: गंभीर रूप से लुप्तप्राय (CR)।
- CITES: परिशिष्ट 2 में।
- वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम, 1972: अनुसूची 1 में।
- यह वर्ष 2009 में MoEFCC द्वारा पुनर्प्राप्ति के लिए प्राथमिकता वाली प्रजाति के रूप में घोषित की गई है।
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- सर्वोच्च न्यायालय के फैसले की मुख्य बातें:
- मौलिक अधिकारों का विस्तार:
- जलवायु परिवर्तन के दुष्प्रभावों से सुरक्षित स्वस्थ पर्यावरण का अधिकार को शामिल करने के लिए मौलिक अधिकारों के दायरें का विस्तार किया गया है।
- संवैधानिक अधिकारों की मान्यता:
- कोर्ट ने अनुच्छेद 14 और अनुच्छेद 21 को स्वच्छ पर्यावरण के अधिकार एवं जलवायु परिवर्तन के प्रतिकूल प्रभावों के विरुद्ध अधिकार के महत्वपूर्ण स्रोतों के रूप में उजागर किया है।
- जलवायु परिवर्तन के कारण स्वास्थ्य के अधिकार (अनुच्छेद 21) पर प्रभाव-
- यह वायु प्रदूषण, वेक्टर जनित बीमारियों, बढ़ते तापमान, सूखे जैसे कारकों के कारण प्रभावित होता है।
- जलवायु परिवर्तन के कारण उपरोक्त कारक और भी गंभीर हो गए हैं।
- जलवायु परिवर्तन के कारण समानता के अधिकार (अनुच्छेद 14) पर प्रभाव-
- जलवायु परिवर्तन और पर्यावरणीय गिरावट के कारण एक विशेष क्षेत्र में भोजन और पानी की तीव्र कमी हो जाती है, जहां गरीब समुदाय अमीर लोगों की तुलना में अधिक पीड़ित होते हैं।
- अन्य समुदायों की तुलना में वनवासियों, आदिवासी और मूल समुदायों में जलवायु परिवर्तन के कारण अपने घरों एवं संस्कृति को खोने का जोखिम अधिक है।
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- संवैधानिक प्रावधानों पर जोर:
- अनुच्छेद 48A - राज्य पर्यावरण की रक्षा और सुधार करने तथा देश के वनों और वन्यजीवों की रक्षा करने का प्रयास करेगा।
- अनुच्छेद 51A(g)- जंगलों, झीलों, नदियों और वन्यजीवों सहित प्राकृतिक पर्यावरण की रक्षा और सुधार करना और जीवित प्राणियों के प्रति दया रखना।
- जलवायु परिवर्तन और मानवाधिकारों का अंतर्संबंध:
- कोर्ट के अनुसार, जलवायु परिवर्तन विभिन्न मानवाधिकारों जैसे स्वास्थ्य का अधिकार, लैंगिक समानता और विकास के अधिकार को प्रभावित करता है।
- यह राज्यों के लिए अधिकारों के नजरिए से जलवायु प्रभावों को संबोधित करने की अनिवार्यता को रेखांकित करता है।
सर्वोच्च न्यायालय के महत्वपूर्ण निर्णयों का संदर्भ
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एमसी मेहता बनाम कमल नाथ, 1996
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- न्यायालय ने माना कि अनुच्छेद 48A और 51A(g) की व्याख्या अनुच्छेद 21 के आलोक में की जानी चाहिए।
- न्यायालय ने स्पष्ट किया कि, पर्यावरण के बुनियादी तत्वों, अर्थात् वायु, जल और मिट्टी, जो "जीवन" के लिए आवश्यक हैं, में कोई भी गड़बड़ी संविधान के अनुच्छेद 21 के अर्थ के तहत "जीवन" के लिए खतरनाक होगी।
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वीरेंद्र गौड़ बनाम हरियाणा राज्य, 1994
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- न्यायालय ने स्वच्छ पर्यावरण के अधिकार को मान्यता दी।
- न्यायालय ने कहा कि, स्वच्छ पर्यावरण का अधिकार स्वस्थ जीवन के अधिकार का एक अभिन्न पहलू है।
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कर्नाटक औद्योगिक क्षेत्र विकास बोर्ड बनाम सी केंचप्पा, 2006
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- न्यायालय ने बढ़ते समुद्र स्तर और बढ़ते वैश्विक तापमान के प्रतिकूल प्रभावों पर ध्यान दिया।
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बॉम्बे डाइंग एंड Mfg. कंपनी लिमिटेड बनाम बॉम्बे एनवायर्नमेंटल एक्शन ग्रुप, 2006
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- न्यायालय ने माना कि जलवायु परिवर्तन पर्यावरण के लिए एक "बड़ा खतरा" है।
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- सौर ऊर्जा की महत्वपूर्ण भूमिका को रेखांकित:
- भारत को तीन मुद्दों के कारण तत्काल सौर ऊर्जा की ओर बढ़ने की आवश्यकता है-
- अगले दो दशकों में वैश्विक ऊर्जा मांग वृद्धि में देश की हिस्सेदारी 25% होने की संभावना है।
- अनियंत्रित वायु प्रदूषण स्वच्छ ऊर्जा स्रोतों की आवश्यकता पर जोर देता है।
- भूजल स्तर में गिरावट और वार्षिक वर्षा में कमी।
- कोर्ट के अनुसार, देश विशाल सौर ऊर्जा क्षमता से संपन्न है और प्रति वर्ष लगभग 5,000 ट्रिलियन किलोवाट सौर ऊर्जा प्राप्त करता है।
- भारत का लक्ष्य वर्ष 2030 तक 500 गीगावॉट गैर-जीवाश्म आधारित बिजली उत्पादन क्षमता हासिल करना है जो वर्ष 2070 तक उसके शुद्ध शून्य उत्सर्जन के प्रयासों के अनुरूप है।
- अंतर्राष्ट्रीय नवीकरणीय ऊर्जा एजेंसी (IRENA) द्वारा जारी नवीकरणीय ऊर्जा सांख्यिकी, 2023 के अनुसार, भारत में नवीकरणीय ऊर्जा की चौथी सबसे बड़ी स्थापित क्षमता है।
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सर्वोच्च न्यायालय के फैसले का महत्व:
- जलवायु परिवर्तन के ख़िलाफ़ अधिकार को मौलिक अधिकार के रूप में मान्यता, नागरिकों को भविष्य में जलवायु परिवर्तन के मुद्दों पर मुकदमा चलाने के लिए संवैधानिक अदालतों के दरवाजे खोलती है।
- सर्वोच्च न्यायालय का फैसला अंतर्राष्ट्रीय कानूनों और पेरिस समझौते जैसे समझौतों के तहत भारत की जलवायु जिम्मेदारियों को दोहराता है, जिसका उद्देश्य पर्यावरण और जलवायु न्याय प्रदान करना है।
- जलवायु परिवर्तन के ख़िलाफ़ अधिकार को मौलिक अधिकार के रूप में मान्यता देना, जलवायु परिवर्तन संबंधी मुद्दे को देश में सार्वजनिक और राजनीतिक चर्चा का विषय बनाता है।
- यह संसद को जलवायु परिवर्तन के मुद्दों पर कानून बनाने के लिए प्रेरित करेगा।
कुछ अंतर्राष्ट्रीय मिसाल
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- वर्ष 2015 के पेरिस समझौते के बाद से जलवायु परिवर्तन और मानवाधिकारों के बीच संबंध मजबूत हो गया है।
- समझौते की प्रस्तावना में "मानवाधिकारों" का संदर्भ था।
- संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार निकायों और मानवाधिकार परिषद के प्रस्तावों की कई रिपोर्टें अब अधिकारों और जलवायु परिवर्तन के बीच एक संबंध स्थापित कर रही हैं।
- विद्वानों का यह भी तर्क है कि जलवायु परिवर्तन को भावी पीढ़ियों को प्रभावित करने और रहने योग्य ग्रह पर उनके अधिकार को खतरे में डालना मानव अधिकारों से लिंक से होता है।
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- उदाहरण के लिए, ग्रेटा थनबर्ग की जलवायु सक्रियता और उनकी 'जलवायु के लिए स्कूल हड़ताल' को इसी तरह समझा जाना चाहिए।
केस स्टडी
- हाल ही में यूरोप की मानवाधिकार अदालत (ECHR) ने जलवायु परिवर्तन के विरुद्ध अधिकार के एक मामले में 64 वर्ष से अधिक उम्र की 2,000 स्विस महिलाओं के एक समूह [क्लिमासेनियोरिनन श्वेइज़ (जलवायु संरक्षण स्विट्जरलैंड के लिए वरिष्ठ महिलाओं का संघ)] के पक्ष में फैसला दिया है।
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- इन महिलाओं ने स्विट्जरलैंड सरकार के खिलाफ मुकदमा दायर किया था।
- महिलाओं ने दावा किया कि स्विस सरकार की अपर्याप्त जलवायु नीतियां ‘मानवाधिकारों पर यूरोपीय कन्वेंशन’ के तहत उनके जीवन और अन्य गारंटी के अधिकारों का उल्लंघन करती हैं।
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- यह सम्मेलन यूरोप में मानवाधिकारों और राजनीतिक स्वतंत्रता की रक्षा के लिए एक अंतरराष्ट्रीय समझौता है।
- एक रिपोर्ट के अनुसार, स्विस आबादी में वरिष्ठ महिलाएं - विशेष रूप से 75 वर्ष से अधिक उम्र की महिलाएं - 'निर्जलीकरण, अतिताप, थकान, चेतना की हानि, हीट क्रैम्प और हीट स्ट्रोक' जैसी गर्मी से संबंधित चिकित्सा समस्याओं से ग्रस्त हैं।
- परिणामस्वरूप, मामला केवल वरिष्ठ महिलाओं द्वारा दायर किया गया था।
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- हालांकि उन्होंने स्वीकार किया कि वृद्ध पुरुष, बीमारियों से पीड़ित लोग और छोटे बच्चे भी गर्मी की लहरों और अन्य जलवायु प्रभावों से पीड़ित हैं।
कोर्ट ने क्या कहा?
- ECHR ने माना कि, स्विस सरकार ने कानून का उल्लंघन किया है क्योंकि उसने न केवल जलवायु परिवर्तन के प्रभावों से निपटने के लिए पर्याप्त कानून नहीं बनाए बल्कि अदालत के अनुसार ग्रीनहाउस गैस (GHG) उत्सर्जन लक्ष्यों को पूरा करने में भी विफल रही है।
- दरअसल ‘मानवाधिकारों पर यूरोपीय कन्वेंशन’ का अनुच्छेद 8, "व्यक्तियों को उनके जीवन, स्वास्थ्य, कल्याण और जीवन की गुणवत्ता पर जलवायु परिवर्तन के गंभीर प्रतिकूल प्रभावों से राज्य अधिकारियों द्वारा प्रभावी सुरक्षा के अधिकार को शामिल करता है।"
- कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि "यह स्पष्ट है कि भविष्य की पीढ़ियों को जलवायु परिवर्तन से निपटने में वर्तमान विफलताओं और चूक के परिणामों का गंभीर बोझ उठाना पड़ सकता है"।
फैसले की महत्ता:
- ECHR का ऐतिहासिक फैसला 46 सदस्य देशों में लागू है, जिसमें सभी यूरोपीय संघ (EU), साथ ही यूनाइटेड किंगडम (UK) और कई अन्य गैर-EU देश शामिल हैं।
- फैसला इस बात को प्रभावित कर सकता है कि पूरे यूरोप और उससे आगे की अदालतें जलवायु परिवर्तन के परिणामस्वरूप मानवाधिकारों के उल्लंघन के मामलों से कैसे निपटती हैं।
- यह नागरिकों और समुदायों को उन देशों में इसी तरह के मामले दायर करने के लिए प्रोत्साहित कर सकता है जो मानवाधिकार पर यूरोपीय कन्वेंशन के पक्षकार हैं।
- यह फैसला अन्य समुदायों को भी ऐसे मामलों में सरकारों पर मुकदमा करने के लिए प्रोत्साहित कर सकता है।
- एक ऐसा मुकदमा नॉर्वेजियन सरकार के खिलाफ भी है, जिसमें वर्ष 2035 के बाद बैरेंट्स सागर में तेल और गैस की खोज के लिए नए लाइसेंस देकर मानवाधिकारों का उल्लंघन करने का आरोप लगाया गया है।
- वैश्विक जलवायु अभियोग रिपोर्ट: 2023 स्थिति समीक्षा के अनुसार, दिसंबर 2022 तक, दुनिया भर में अंतरराष्ट्रीय और क्षेत्रीय अदालतों एवं विभिन्न न्यायाधिकरणों सहित 65 न्यायालयों में 2,180 जलवायु-संबंधी मामले दायर किए गए हैं।
- अगस्त 2023 में, अमेरिका के मोंटाना के युवा वादी ने अपनी राज्य सरकार के खिलाफ एक मामला जीता था, जिसमें सरकार को स्वच्छ और स्वस्थ वातावरण के वादी के संवैधानिक अधिकार का उल्लंघन करने का दोषी पाया गया था।
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