UPSC Mains :- Genera Studies-III (Environment) |
- जलवायु परिवर्तन मानवता के लिए एक वास्तविक और आपातकालीन संकट बन चुका है। बढ़ते वैश्विक तापमान, चरम मौसमी घटनाएँ, समुद्र स्तर वृद्धि, गंगा-जमुना जैसी नदियों में परिवर्तन, सूखा, बाढ़ और जैव विविधता ह्रास इसके स्पष्ट संकेत हैं।
- इसके प्रभाव न केवल पारिस्थितिकी तंत्र बल्कि सामाजिक और आर्थिक ढांचे पर भी पड़ते हैं।
- इस गंभीर समस्या से निपटने के लिए शमन (Mitigation) और अनुकूलन (Adaptation) दो मुख्य रणनीतियाँ हैं, जिन्हें प्रभावी वित्तीय साधनों, वैश्विक सहयोग और तकनीकी नवाचार के साथ लागू करना आवश्यक है।

शमन (Mitigation)
शमन का उद्देश्य
शमन का उद्देश्य ग्रीनहाउस गैस (GHG) उत्सर्जन को कम करना और वैश्विक तापमान वृद्धि को नियंत्रित करना है।
- वैश्विक लक्ष्य:
- पेरिस समझौता 2015: वैश्विक औसत तापमान वृद्धि को 2°C से नीचे और संभव हो तो 1.5°C तक सीमित रखना।
- 2030 तक उत्सर्जन में 42% और 2035 तक 57% कटौती (2019 के स्तर से) आवश्यक (Emission Gap Report, 2024)।
भारत और वैश्विक परिप्रेक्ष्य
- भारत:
- कुल GHG उत्सर्जन में तीसरा स्थान (UNEP 2024)
- प्रति व्यक्ति उत्सर्जन वैश्विक उत्सर्जन का 4% (आर्थिक सर्वेक्षण, 2023-24)
- वैश्विक स्तर:
- 2023 में वैश्विक GHG उत्सर्जन 2022 की तुलना में 1.3% बढ़कर रिकॉर्ड स्तर पर पहुँच गया।
चुनौतियाँ
- उत्सर्जन अंतराल: राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय नीतियां पेरिस लक्ष्य को पूरा करने के लिए पर्याप्त नहीं।
- अंतरराष्ट्रीय सहयोग की कमी: उदाहरण- अमेरिका का वैश्विक समझौतों से हटना।
- उत्सर्जन में असमानता: केवल छह देश वैश्विक उत्सर्जन का 63% उत्पन्न करते हैं।
- तकनीकी कठिनाई: विमानन, जहाजरानी, सीमेंट उत्पादन जैसे हार्ड टू अबेट सेक्टर में उत्सर्जन कम करना चुनौतीपूर्ण।
- ऊर्जा खपत में वृद्धि: AI, डाटा सेंटर और डिजिटल टेक्नोलॉजीज उच्च ऊर्जा की खपत बढ़ा रहे हैं।
वैश्विक और भारत की पहलें
- वैश्विक पहलें:
- ग्लोबल मीथेन संकल्प
- पावरिंग पास्ट कोल अलायंस
- जस्ट एनर्जी ट्रांजिशन पार्टनरशिप्स (JETS)
- मिशन इनोवेशन
- भारत की पहलें:
- पंचामृत लक्ष्य (COP26): 2070 तक नेट-जीरो
- पर्यावरण के अनुकूल जीवन शैली (LIFE)
- राष्ट्रीय जलवायु परिवर्तन कार्य योजना (NAPCC)
- नवीकरणीय ऊर्जा परियोजनाओं में तेज़ी और ग्रीन बॉन्ड जारी
तकनीकी उपाय और अनुसंधान
- हार्ड टू अबेट सेक्टर: सीमेंट, स्टील, विमानन के लिए कम-कार्बन तकनीक
- कार्बन कैप्चर और स्टोरेज (CCS) पर निवेश और अनुसंधान
- नवीकरणीय ऊर्जा: सौर, पवन, बायोमास पर निवेश बढ़ाना
- ऊर्जा दक्षता और स्मार्ट ग्रिड तकनीक लागू करना
अनुकूलन (Adaptation)
अनुकूलन का महत्व
अनुकूलन का उद्देश्य उन प्रभावों को कम करना है जो शमन प्रयासों के बावजूद उत्पन्न होते हैं। उदाहरण:
- समुद्र स्तर वृद्धि से तटीय शहरों और विरासत स्थलों का नुकसान
- बाढ़, सूखा और तूफानों के प्रति ग्रामीण और कमजोर समुदायों की सुरक्षा
भारत में अनुकूलन प्रयास
- राष्ट्रीय जलवायु परिवर्तन अनुकूलन कोष (NAFCC, 2015)
- कृषि, जल प्रबंधन और वन क्षेत्र के लिए स्थानीय अनुकूलन परियोजनाएँ
- जलवायु लचीले शहरों के लिए जलवायु बजट और योजनाएँ
जलवायु वित्त (Climate Finance)
वैश्विक रुझान
- वैश्विक जलवायु वित्त 2018 के 674 बिलियन USD से बढ़कर 2021-22 में 1.46 ट्रिलियन USD
- शमन कार्यों के लिए कुल वित्त का 54% निजी क्षेत्र से
- CAGR 2018-2022: 20%
भारत के लिए आवश्यक वित्त
- 2047 तक एनर्जी ट्रांजिशन के लिए ~250 बिलियन USD/वर्ष
- 2030 तक अपडेटेड NDC लक्ष्यों के लिए ~2.5 ट्रिलियन USD
- 2070 तक नेट-ज़ीरो लक्ष्य के लिए ~10 ट्रिलियन USD
प्रमुख चुनौतियाँ
- विकसित देशों को 45% वित्त, LDCs को केवल 3%
- 90% वित्त शमन में, केवल 10% अनुकूलन में
- अधिकांश निवेश ऋण या इक्विटी आधारित, जिससे विकासशील देशों पर ऋण का बोझ बढ़ा
समाधान और उपाय
- वैश्विक स्तर: LDF, GCF, SCCF, अनुकूलन निधि
- भारत में: NAFCC, ग्रीन बॉन्ड, सस्टेनेबल फाइनेंस ग्रुप
- अभिनव वित्तीय उपाय: डेब्ट-फॉर-क्लाइमेट स्वैप, निजी पूंजी, कार्बन बाज़ार
लॉस एंड डैमेज फंड (Loss and Damage Fund – LDF)
परिचय
- COP27 में सहमति, COP28 में संचालन प्रारंभ
- WIM (Warsaw International Mechanism) का आउटपुट
- उद्देश्य: शमन और अनुकूलन के बावजूद उत्पन्न हानियों के लिए वित्तीय सहायता
विशेषताएँ
- कुल प्रतिबद्धता: $730 मिलियन से अधिक
- लक्षित: सबसे अधिक प्रभावित देश और समुदाय
- उदाहरण: समुद्र स्तर वृद्धि से तटीय विरासत स्थल, छोटे द्वीपीय विकासशील देश (SIDS)
चुनौतियाँ
- L&D गतिविधियों का वर्गीकरण
- डेटा और रिपोर्टिंग की सीमित उपलब्धता
- गैर-आर्थिक नुकसान (संस्कृति, जीवन शैली) मापना कठिन
आगे की राह
- अर्थव्यवस्था से इतर क्षति का मूल्यांकन
- आपदा-प्रवण देशों और समुदायों को प्राथमिकता
- पारिस्थितिकी तंत्र, मानव उत्पादकता, सांस्कृतिक और मानसिक पहलुओं का मूल्यांकन
- योगदान स्तर निर्धारण और अनुपालन निगरानी
निष्कर्ष
- जलवायु परिवर्तन के प्रभाव न केवल पर्यावरणीय हैं, बल्कि सामाजिक, आर्थिक और सांस्कृतिक हैं।
- शमन, अनुकूलन और जलवायु वित्त इन प्रभावों से निपटने के मुख्य स्तंभ हैं।
- लॉस एंड डैमेज फंड जैसी पहलें विकसित और विकासशील देशों के बीच न्याय और समानता सुनिश्चित करती हैं।
- भारत और वैश्विक समुदाय के लिए अब समय है तकनीकी नवाचार, वित्तीय संसाधनों, वैश्विक सहयोग और न्यायपूर्ण नीतियों को मिलाकर प्रभावी रणनीतियाँ अपनाने का।
- जलवायु न्याय तभी संभव है जब वे क्षेत्र जिनका कार्बन उत्सर्जन न्यूनतम है लेकिन जलवायु आपदाओं का सामना कर रहे हैं, उन्हें प्राथमिकता और वित्तीय सुरक्षा मिले।
- यह केवल पर्यावरण संरक्षण नहीं, बल्कि मानवीय और आर्थिक आवश्यकता भी है।