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बादल विस्फोट: कारण, चुनौतियाँ एवं समाधान

(प्रारंभिक परीक्षा: समसामयिक घटनाक्रम)
(मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र- 1: भूकंप, सुनामी, चक्रवात आदि जैसी महत्त्वपूर्ण भू-भौतिकीय घटनाएँ, भौगोलिक विशेषताएँ और उनके स्थान)

संदर्भ

हाल ही में, जम्मू एवं कश्मीर के किश्तवाड़ जिले में एक सुदूर पहाड़ी गांव में बादल फटने की घटना से भारी नुकसान हुआ। इस घटना में 30 से अधिक लोगों की मौत हो गई और कई अन्य घायल हुए।

बादल फटना (Cloud Burst) से तात्पर्य

बादल फटना एक ऐसी प्राकृतिक घटना है जिसमें बहुत कम समय में और छोटे क्षेत्र में अत्यधिक तीव्र बारिश होती है। भारतीय मौसम विभाग के अनुसार, जब लगभग 10 वर्ग किमी. के क्षेत्र में प्रति घंटे 10 सेमी. या उससे अधिक बारिश दर्ज की जाती है, तब इस घटना को बादल फटना (Cloud Burst) कहते हैं। यह घटना प्राय: पर्वतीय क्षेत्रों में मानसून के दौरान अधिक देखने को मिलती है।

बादल फटने के कारण

बादल फटने की घटना के लिए कई भौगोलिक एवं मौसमी कारक जिम्मेदार होते हैं:

  • पर्वतीय भू-आकृति (Orographic Lift) : हिमालयी क्षेत्रों में, अरब सागर से आने वाली आर्द्र वायु पहाड़ों से टकराकर ऊपर की ओर उठती हैं। इस प्रक्रिया को ‘ओरोग्राफिक लिफ्ट’ कहा जाता है, जो बादलों को और सघन बनाती है।
  • नमी युक्त बादल : मानसून के दौरान आर्द्र वायु भारी मात्रा में जलवाष्प लेकर चलती हैं। जब ये वायु ठंडी होकर संतृप्त हो जाती हैं, तो भारी बारिश का कारण बनती हैं।
  • तापमान का अंतर : ऊँचाई पर गर्म हवा का ऊपर उठना और ठंडी हवा के साथ संघनन (Condensation) बादल फटने का कारण बन सकता है।

बादल फटने की प्रक्रिया

  • आर्द्र वायु का ऊपर उठना: गर्म एवं आर्द्र वायु पर्वतों से टकराकर ऊपर की ओर उठती हैं जिससे क्यूमुलोनिम्बस (कपास वर्षी) बादल बनते हैं।
  • बादलों का सघन होना: ये बादल भारी मात्रा में जलवाष्प को जमा करते हैं किंतु गर्म वायु के कारण बारिश तुरंत नहीं होती है।
  • अचानक भारी बारिश: जब बादल इतने भारी हो जाते हैं कि वे जलवाष्प को और नहीं संभाल पाते हैं तो अचानक तीव्र बारिश होती है। बारिश के तीव्र होने से जल निकासी व्यवस्था इसे संभाल नहीं पाती है जिससे बाढ़ और भूस्खलन की स्थिति बनती है।

किश्तवाड़ में बादल फटने की हालिया घटना

14 अगस्त, 2025 को जम्मू एवं कश्मीर के किश्तवाड़ जिले के चशोती गांव में बादल फटने की घटना हुई। यह गांव मचैल माता मंदिर के रास्ते पर अंतिम मोटर योग्य गांव है। इस आपदा से कई संरचनाएँ एवं लंगर को बह गए, जिसके परिणामस्वरूप 30 से अधिक लोगों की मौत हुई और दर्जनों घायल हुए। इस घटना ने एक बार फिर इस क्षेत्र की प्राकृतिक आपदाओं के प्रति संवेदनशीलता को उजागर किया है।

जम्मू एवं कश्मीर का ऐसी आपदाओं के प्रति संवेदनशील होने का कारण

जम्मू एवं कश्मीर में बादल फटने और अन्य प्राकृतिक आपदाओं की बार-बार होने वाली घटनाओं के पीछे कई कारण हैं:

  • भौगोलिक स्थिति: जम्मू एवं कश्मीर हिमालय पर्वत श्रृंखला में स्थित है जो इसे भूस्खलन, बाढ़ व बादल फटने के लिए स्वाभाविक रूप से संवेदनशील बनाता है।
  • मानसून की तीव्रता: मानसून के दौरान अरब सागर और बंगाल की खाड़ी से आने वाली आर्द्र वायु इस क्षेत्र में भारी बारिश का कारण बनती हैं।
  • भूकंपीय गतिविधियाँ: यह क्षेत्र भूकंपीय रूप से सक्रिय है, जिसके कारण भूस्खलन और मिट्टी का कटाव सामान्य है।
  • जलवायु परिवर्तन: बढ़ता तापमान एवं अनियमित मौसमी पैटर्न बादल फटने की घटनाओं को और बढ़ावा दे रहे हैं।
  • अवसंरचना और बस्तियाँ: कई गांव और बस्तियाँ नदियों एवं खड़ी ढलानों के पास बसी हैं, जो आपदा के प्रभाव को अधिक गंभीर बनाते हैं।

चुनौतियाँ

  • प्रारंभिक चेतावनी प्रणाली की कमी: बादल फटने की घटनाएँ अचानक होती हैं और इनका पूर्वानुमान लगाना मुश्किल है।
  • अवसंरचना का अभाव: पहाड़ी क्षेत्रों में जल निकासी और आपदा प्रबंधन की अपर्याप्त सुविधाएँ आपदा के प्रभाव को बढ़ाती हैं।
  • जागरूकता की कमी: स्थानीय लोगों में ऐसी आपदाओं के प्रति जागरूकता और तैयारी का अभाव है।
  • पहुंच की कठिनाई: सुदूर गांवों तक राहत और बचाव कार्यों को पहुंचाना चुनौतीपूर्ण होता है।

समाधान

  • उन्नत मौसम पूर्वानुमान: बादल फटने की घटनाओं के पूर्वानुमान के लिए अधिक सटीक और स्थानीयकृत मौसम निगरानी प्रणालियों की आवश्यकता
  • आपदा प्रबंधन: आपदा प्रबंधन के लिए मजबूत बुनियादी ढांचे का विकास, जैसे कि बेहतर जल निकासी और बाढ़ रोधी दीवारें
  • जागरूकता अभियान: स्थानीय समुदायों को प्राकृतिक आपदाओं के प्रति शिक्षित करना और आपातकालीन योजनाओं को लागू करना
  • पर्यावरण संरक्षण: भूस्खलन और मृदा के कटाव को कम करने के लिए वनों की कटाई को रोकना और पर्यावरण संरक्षण के उपायों को बढ़ावा देना
  • जलवायु परिवर्तन पर कार्रवाई: वैश्विक एवं स्थानीय स्तर पर जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को कम करने के लिए नीतियां बनाना और लागू करना
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