(प्रारंभिक परीक्षा: समसामयिक घटनाक्रम) (मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र- 2: विभिन्न संवैधानिक पदों पर नियुक्ति और विभिन्न संवैधानिक निकायों की शक्तियाँ, कार्य एवं उत्तरदायित्व) |
संदर्भ
लोकसभा में विपक्ष के नेता राहुल गांधी ने आरोप लगाया है कि कर्नाटक के अलंद विधानसभा क्षेत्र में वर्ष 2023 के दौरान 6,000 से अधिक मतदाताओं के नाम ऑनलाइन फॉर्म भरकर उनकी जानकारी के बिना मतदाता सूची से हटाने का प्रयास किया गया। इस घटना ने मतदाता सूची की पारदर्शिता, ऑनलाइन प्रक्रिया की सुरक्षा और लोकतंत्र में नागरिक अधिकारों को लेकर बड़ी बहस छेड़ दी है।
क्या है हालिया मुद्दा
- आरोप है कि फॉर्म-7 का उपयोग कर बड़े पैमाने पर मतदाता नाम हटाने की कोशिश की गई।
- प्रभावित लोगों को इस बारे में जानकारी नहीं दी गई।
- कर्नाटक CID ने 18 बार चुनाव आयोग (ECI) से जानकारी मांगी किंतु कोई ठोस जवाब नहीं मिला।
- यह मामला डाटा सुरक्षा और चुनावी पारदर्शिता के लिए चिंता का विषय है।
मतदाता नाम हटाने की प्रक्रिया के बारे में
- आवेदन दाखिल करना:
- मतदाता स्वयं या किसी अन्य के खिलाफ फॉर्म-7 भर सकता है।
- इसका कारण देना होता है- मृत्यु, 18 वर्ष से कम आयु, स्थायी रूप से स्थानांतरित, पहले से कहीं अन्य नाम दर्ज होना या भारतीय नागरिक न होना।
- जांच प्रक्रिया:
- आवेदन मिलने पर निर्वाचक पंजीकरण अधिकारी (ERO) नोटिस जारी करता है।
- प्रभावित व्यक्ति को उत्तर देने के लिए 7 दिन का समय दिया जाता है।
- बूथ लेवल ऑफिसर (BLO) स्थल निरीक्षण करता है।
- सुनवाई के बाद ERO आदेश पारित करता है। तभी नाम हटाया जा सकता है।
कानूनी प्रावधान
- जन प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1950 की धारा 22 : ERO को नाम संशोधन या विलोपन का अधिकार।
- चुनाव पंजीकरण प्रक्रिया, 1960 : यह आवेदन के फॉर्म एवं प्रक्रिया तय करते हैं।
- फॉर्म 7 : यह नाम जोड़ने/हटाने पर आपत्ति का आधिकारिक फॉर्म है।
सहमति और सूचना
- कानून के अनुसार, नाम हटाने से पहले प्रभावित व्यक्ति को नोटिस और जवाब देने का अवसर मिलना अनिवार्य है।
- बिना सुनवाई और आदेश के नाम विलोपन अवैध है।
फॉर्म 7 और ऑनलाइन प्रक्रिया
- ऑनलाइन पोर्टल/ECINet पर अकाउंट बनाना और EPIC नंबर व मोबाइल नंबर लिंक करना आवश्यक है।
- फॉर्म में आवेदक और जिस व्यक्ति के खिलाफ आपत्ति है, दोनों की जानकारी भरनी होती है।
- कोई सबूत अपलोड करना अनिवार्य नहीं है, केवल स्व-घोषणा (Self-Declaration) करनी होती है।
- फॉर्म सबमिट करने के बाद यह ERO को जांच के लिए भेजा जाता है।
ऑनलाइन सिस्टम की खामियां
- EPIC और मोबाइल नंबर का सख्त सत्यापन नहीं
- किसी का EPIC किसी अन्य मोबाइल नंबर से लिंक कर फॉर्म भरना संभव
- सबूत की अनिवार्यता नहीं होने से फर्जी आवेदन करना आसान
दुरुपयोग
- अलंद मामले में कथित तौर पर बड़े पैमाने पर फर्जी फॉर्म भरे गए।
- यदि जांच न हो तो हजारों नाम गलत तरीके से हटाए जा सकते हैं।
- इससे मतदान अधिकार (Right to Vote) प्रभावित हो सकता है।
चुनौतियाँ
- ऑनलाइन प्रक्रिया में साइबर सुरक्षा और सत्यापन कमजोर हो सकता है।
- प्रभावित मतदाता को समय पर सूचना न मिलने पर नाम हट सकता है।
- जांच की प्रक्रिया लंबी होने से चुनाव से पहले सुधार मुश्किल है।
आगे की राह
- ऑनलाइन सिस्टम में OTP व आधार-आधारित सत्यापन अनिवार्य करना
- फर्जी आवेदनों पर सख्त दंड लागू करना
- ERO एवं BLO की जिम्मेदारी तय करना
- प्रभावित मतदाताओं को SMS/Email के जरिए तुरंत सूचना देना
- नागरिकों में जागरूकता बढ़ाना कि वे नियमित रूप से अपना नाम मतदाता सूची में जांच करें।