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भारत में इलेक्ट्रॉनिक्स क्षेत्र और सेमीकंडक्टर मिशन

भारत का इलेक्ट्रॉनिक्स विनिर्माण क्षेत्र उच्च-विकास वाले रणनीतिक क्षेत्र के रूप में उभरा है।

  • घरेलू उत्पादन मूल्य में कई गुना वृद्धि ने भारत को इलेक्ट्रॉनिक्स असेंबली हब से आगे बढ़ाकर मूल्य-संवर्धन (Value Addition) की दिशा में अग्रसर किया है।
  • मोबाइल फोन, उपभोक्ता इलेक्ट्रॉनिक्स, आईटी हार्डवेयर और ऑटोमोटिव इलेक्ट्रॉनिक्स में भारत की भागीदारी बढ़ी है।

अब भारत केवल आयात-आधारित उपभोक्ता नहीं रहा, बल्कि—

  • वैश्विक इलेक्ट्रॉनिक्स वैल्यू चेन (Global Value Chain – GVC) में एक उभरता विनिर्माण और निर्यात केंद्र बन रहा है।
  • चीन+1 रणनीति के तहत बहुराष्ट्रीय कंपनियों के लिए एक वैकल्पिक गंतव्य के रूप में उभरा है।

सेमीकंडक्टर का केंद्रीय महत्व

सेमीकंडक्टर आधुनिक डिजिटल अर्थव्यवस्था की रीढ़ (Backbone) हैं—

  • उपभोक्ता क्षेत्र: स्मार्टफोन, कंप्यूटर, टीवी, स्मार्ट होम डिवाइस
  • डिजिटल इंफ्रास्ट्रक्चर: डेटा सेंटर, क्लाउड कंप्यूटिंग, 5G/6G नेटवर्क
  • रणनीतिक क्षेत्र: ऑटोमोबाइल, EV, रक्षा उपकरण, अंतरिक्ष और उपग्रह प्रणाली

बिना सेमीकंडक्टर के डिजिटल इंडिया, इंडस्ट्री 4.0 और आत्मनिर्भर भारत की कल्पना संभव नहीं।

स्वदेशी सेमीकंडक्टर उद्योग का महत्व

(क) आर्थिक स्वतंत्रता (Economic Sovereignty)

  • आयातित चिप्स पर निर्भरता कम होने से विदेशी मुद्रा बचत
  • वैश्विक आपूर्ति-श्रृंखला व्यवधान (जैसे कोविड या भू-राजनीतिक तनाव) से सुरक्षा
  • घरेलू MSME और बड़े इलेक्ट्रॉनिक्स निर्माताओं को स्थिर इनपुट सप्लाई
  • यह भारत को रणनीतिक स्वायत्तता (Strategic Autonomy) प्रदान करता है।

(ख) तकनीकी आधार (Technological Foundation)

  • सेमीकंडक्टर आधुनिक डिजिटल समाज की मूलभूत सक्षम तकनीक हैं।
  • AI, ML, IoT, रोबोटिक्स, स्वचालन, बिग डेटा और डिजिटलीकरण इन्हीं पर आधारित हैं।
  • स्मार्टफोन, कंप्यूटर, ऑटोमोबाइल ECU, औद्योगिक मशीनरी, स्मार्ट फैक्ट्री—सबका मूल घटक।
  • स्वदेशी सेमीकंडक्टर = टेक्नोलॉजी पर नियंत्रण, केवल उपभोग नहीं।

(ग) अंतर-क्षेत्रीय प्रभाव (Cross-Sectoral Impact)

स्वास्थ्य सेवाएँ

  • मेडिकल इमेजिंग (MRI, CT Scan)
  • रियल-टाइम रोगी निगरानी, टेलीमेडिसिन

लॉजिस्टिक्स और परिवहन

  • स्मार्ट ट्रैकिंग, GPS आधारित फ्लीट मैनेजमेंट
  • ऊर्जा-कुशल शिपिंग और वेयरहाउस ऑटोमेशन

रक्षा और सुरक्षा

  • रडार सिस्टम, मिसाइल गाइडेंस
  • सुरक्षित संचार, साइबर और इलेक्ट्रॉनिक वारफेयर
  • सेमीकंडक्टर उद्योग समग्र राष्ट्रीय शक्ति (Comprehensive National Power) को बढ़ाता है।

(घ) हरित ऊर्जा और वैश्विक स्थिति

  • इलेक्ट्रिक वाहन (EV), चार्जिंग इंफ्रास्ट्रक्चर और बैटरी मैनेजमेंट सिस्टम
  • ADAS जैसी उन्नत वाहन सुरक्षा प्रणालियाँ
  • नवीकरणीय ऊर्जा ग्रिड, स्मार्ट मीटर और ऊर्जा दक्षता समाधान

इनके माध्यम से भारत—

  • जलवायु लक्ष्यों (Net Zero) की ओर बढ़ता है
  • वैश्विक तकनीकी मानचित्र पर विश्वसनीय और जिम्मेदार टेक्नोलॉजी पावर के रूप में स्थापित होता है

यह पूरी रणनीति Make in India के उद्देश्यों के पूर्णतः अनुरूप है— भारत को वैश्विक विनिर्माण केंद्र बनाना, रोजगार सृजन और तकनीकी आत्मनिर्भरता सुनिश्चित करना।

प्रमुख सरकारी पहल 

(क) PLI – बड़े पैमाने पर इलेक्ट्रॉनिक्स विनिर्माण

Production Linked Incentive Scheme

PLI योजना भारत में इलेक्ट्रॉनिक्स विनिर्माण के विस्तार की सबसे महत्वपूर्ण नीति रही है। इसका उद्देश्य केवल असेंबली नहीं, बल्कि मूल्य-संवर्धन और निर्यात-उन्मुख उत्पादन को बढ़ावा देना है।

मुख्य विशेषताएँ

  • उत्पादन/बिक्री के आधार पर प्रत्यक्ष वित्तीय प्रोत्साहन
  • बहुराष्ट्रीय कंपनियों को भारत में विनिर्माण इकाइयाँ स्थापित करने के लिए आकर्षण
  • घरेलू कंपनियों को वैश्विक स्तर पर प्रतिस्पर्धी बनने में सहायता

प्रभाव और उपलब्धियाँ

  • मोबाइल फोन विनिर्माण में भारत विश्व के अग्रणी देशों में शामिल
  • इलेक्ट्रॉनिक्स निर्यात में उल्लेखनीय वृद्धि
  • कंपोनेंट इकोसिस्टम (PCB, कैमरा मॉड्यूल, चार्जर, डिस्प्ले पार्ट्स) का विकास
  • बड़े पैमाने पर रोज़गार सृजन, विशेषकर युवाओं और महिलाओं के लिए
  • PLI ने भारत को “assembly hub” से आगे बढ़ाकर “manufacturing + export hub” बनने की दिशा में अग्रसर किया।

(ख) भारत सेमीकंडक्टर मिशन (ISM) India Semiconductor Mission

  • प्रारंभ: 2021
  • कुल परिव्यय: 76,000 करोड़

उद्देश्य

  • भारत में सेमीकंडक्टर और डिस्प्ले निर्माण का समग्र पारिस्थितिकी तंत्र विकसित करना
  • फैब, डिस्प्ले यूनिट, ATMP/OSAT, डिज़ाइन और R&D को एकीकृत करना
  • परियोजना लागत का 50% तक वित्तीय सहयोग, जिससे उच्च पूंजी लागत की बाधा कम हो

रणनीतिक महत्व

  • वैश्विक चिप संकट जैसी स्थितियों से सुरक्षा
  • रक्षा, अंतरिक्ष और डिजिटल इंफ्रास्ट्रक्चर के लिए सुरक्षित आपूर्ति
  • भारत को वैश्विक सेमीकंडक्टर वैल्यू चेन में विश्वसनीय भागीदार बनाना
  • ISM भारत की रणनीतिक स्वायत्तता (Strategic Autonomy) और तकनीकी संप्रभुता की नींव है।

हालिया स्वीकृतियाँ (2024) 

(क) भारत का पहला वाणिज्यिक सेमीकंडक्टर फैब

  • गुजरात में भारत का पहला कमर्शियल सेमीकंडक्टर फैब्रिकेशन प्लांट
  • नेतृत्व: Tata Group
  • यह भारत के लिए ऐतिहासिक कदम है, क्योंकि अब तक देश में पूर्ण फैब क्षमता नहीं थी

महत्व

  • उच्च-मूल्य (High-value) सेमीकंडक्टर निर्माण में भारत की औपचारिक एंट्री
  • ऑटोमोबाइल, EV, पावर इलेक्ट्रॉनिक्स और औद्योगिक चिप्स के लिए घरेलू आपूर्ति
  • कौशल विकास, अनुसंधान और उन्नत इंजीनियरिंग को बढ़ावा

(ख) ATMP / OSAT इकाइयाँ

  • दो अतिरिक्त इकाइयों को मंज़ूरी
  • कार्य:
    • असेंबली (Assembly)
    • परीक्षण (Testing)
    • अंकन और पैकेजिंग (Packaging)

महत्व

  • सेमीकंडक्टर वैल्यू चेन का अनिवार्य चरण
  • कम समय में बड़े पैमाने पर रोज़गार सृजन
  • भारत को Chip Design → Fab → Packaging की एंड-टू-एंड क्षमता की ओर ले जाना
  • इससे भारत केवल चिप उपभोक्ता नहीं, बल्कि पूर्ण सेमीकंडक्टर निर्माण राष्ट्र बनने की दिशा में बढ़ा है।

सेमीकॉन इंडिया कार्यक्रम के अंतर्गत योजनाएँ

सेमीकॉन इंडिया कार्यक्रम का उद्देश्य भारत में सेमीकंडक्टर वैल्यू चेन का एंड-टू-एंड विकास करना है—जिसमें डिज़ाइन से लेकर फैब्रिकेशन, पैकेजिंग और डिस्प्ले निर्माण तक सभी चरण शामिल हों। यह कार्यक्रम India Semiconductor Mission के अंतर्गत संचालित है।

(1) सेमीकंडक्टर फ़ैब स्थापना योजना

मुख्य विशेषताएँ

  • सिलिकॉन CMOS (Complementary Metal-Oxide-Semiconductor) आधारित फ़ैब
  • लॉजिक चिप्स, मेमोरी, पावर और ऑटोमोटिव सेमीकंडक्टर के निर्माण पर फोकस
  • परियोजना लागत का 50% तक प्रत्यक्ष वित्तीय समर्थन

महत्व

  • फ़ैब निर्माण अत्यधिक पूंजी-सघन (Capital Intensive) होता है—सरकारी सहयोग से निवेश जोखिम घटता है
  • भारत को हाई-एंड मैन्युफैक्चरिंग और उन्नत इंजीनियरिंग में प्रवेश
  • ऑटोमोबाइल, EV, रक्षा, औद्योगिक इलेक्ट्रॉनिक्स के लिए घरेलू चिप आपूर्ति
  • यह योजना भारत को fab-less design hub से fab-enabled manufacturing nation में बदलने की दिशा में निर्णायक है।

(2) डिस्प्ले फ़ैब स्थापना योजना

कवर्ड तकनीक

  • TFT-LCD
  • AMOLED (मोबाइल, टीवी, वेयरेबल्स के लिए उन्नत डिस्प्ले)

प्रोत्साहन संरचना

  • परियोजना लागत का 50% तक वित्तीय सहयोग

महत्व

  • डिस्प्ले इलेक्ट्रॉनिक्स उत्पादों का सबसे महँगा और आयात-निर्भर घटक
  • मोबाइल फोन, टीवी और लैपटॉप विनिर्माण में घरेलू मूल्य-संवर्धन
  • आयात बिल में कमी और निर्यात प्रतिस्पर्धा में वृद्धि
  • डिस्प्ले फ़ैब भारत को पूर्ण इलेक्ट्रॉनिक्स इकोसिस्टम की ओर ले जाती है, न कि केवल अंतिम असेंबली तक सीमित।

(3) यौगिक सेमीकंडक्टर एवं ATMP/OSAT योजना

कवर्ड क्षेत्र

  • Compound Semiconductors (GaN, SiC आदि)
  • Silicon Photonics
  • Sensors और Discrete Semiconductors
  • ATMP / OSAT: Assembly, Testing, Marking & Packaging

प्रोत्साहन

  • पूंजीगत व्यय (CapEx) का 50% तक वित्तीय समर्थन

रणनीतिक महत्व

  • Compound semiconductors:
    • EV, 5G/6G, रिन्यूएबल एनर्जी, पावर इलेक्ट्रॉनिक्स में अनिवार्य
  • ATMP/OSAT:
    • सेमीकंडक्टर वैल्यू चेन का सबसे बड़ा रोजगार-सृजक चरण
    • अपेक्षाकृत कम समय में परिचालन शुरू किया जा सकता है
  • यह योजना भारत को डिज़ाइन + पैकेजिंग + एडवांस्ड एप्लिकेशन का मजबूत केंद्र बनाती है।

(4) डिज़ाइन-आधारित प्रोत्साहन (DLI) योजना

  • यह योजना भारत की चिप डिज़ाइन क्षमता को मज़बूत करने पर केंद्रित है, जिससे भारत केवल विनिर्माण ही नहीं बल्कि बौद्धिक संपदा (IP) सृजन में भी अग्रणी बने।

(क) उत्पाद डिज़ाइन-आधारित प्रोत्साहन

  • पात्र डिज़ाइन व्यय का 50% तक प्रोत्साहन
  • अधिकतम सीमा: 15 करोड़ प्रति आवेदन

लाभ

  • स्टार्टअप्स, MSMEs और घरेलू कंपनियों को बढ़ावा
  • ASICs, SoCs, AI और IoT चिप्स का स्वदेशी डिज़ाइन

(ख) उत्पादन-आधारित प्रोत्साहन

  • 5 वर्षों में शुद्ध बिक्री का 6% से 4% तक
  • अधिकतम सीमा: 30 करोड़ प्रति आवेदन

महत्व

  • डिज़ाइन से लेकर बाज़ार तक की यात्रा को प्रोत्साहन
  • Design in India → Make in India का वास्तविक क्रियान्वयन
  • DLI भारत को वैश्विक चिप डिज़ाइन हब के रूप में स्थापित करने की क्षमता रखती है।

प्रमुख चुनौतियाँ (Rewritten / Original Version)

  • आयात पर अत्यधिक निर्भरता: इलेक्ट्रॉनिक्स असेंबली में प्रगति के बावजूद, भारत अब भी उच्च-मूल्य वाले घटकों-विशेषकर सेमीकंडक्टर चिप्स-के लिए विदेशों पर निर्भर है, जहाँ चीन की आपूर्ति भूमिका काफी प्रभावशाली है।
  • पूंजी और संसाधन-सघन प्रकृति: सेमीकंडक्टर फैब इकाइयों की स्थापना अत्यधिक निवेश मांगती है। इसके साथ ही अल्ट्रा-शुद्ध जल, निर्बाध और उच्च-गुणवत्ता वाली बिजली जैसी महत्वपूर्ण संसाधन आवश्यकताएँ भी जुड़ी होती हैं।
  • सहायक पारिस्थितिकी तंत्र की कमजोरी: भारत में चिप निर्माण को सहारा देने वाले उद्योग-जैसे विशेष गैसें, रसायन, प्रिसिजन उपकरण और मशीनरी-अभी पर्याप्त रूप से विकसित नहीं हैं, जिससे संपूर्ण आपूर्ति शृंखला कमजोर बनी हुई है।
  • कौशल और अनुभव का अंतर: हालाँकि देश में सेमीकंडक्टर डिज़ाइन से जुड़े इंजीनियरों की संख्या अच्छी है, लेकिन वास्तविक चिप निर्माण और अत्यधिक विशिष्ट तकनीकी भूमिकाओं में व्यावहारिक अनुभव की भारी कमी है।
  • अवसंरचनात्मक बाधाएँ: उच्च निवेश आवश्यकताएँ, सहायक उद्योगों का अभाव और कुशल मानव संसाधन की कमी—इन सभी का संयुक्त प्रभाव भारत के सेमीकंडक्टर विनिर्माण क्षेत्र की गति को सीमित करता है।
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