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‘डिफिकल्ट फोर’ देश (Difficult four Countries)

संदर्भ

हाल ही में, ब्रिटेन के थिंक-टैंक 'रॉयल ​​इंस्टीट्यूट ऑफ इंटरनेशनल अफेयर्स' ने अपनी एक रिपोर्ट में भारत को चीन, सऊदी अरब और तुर्की के साथ ‘डिफिकल्ट फोर देशों’ के रूप में सूचीबद्ध किया है।

प्रमुख बिंदु

  • 'ग्‍लोबल ब्रिटेन, ग्‍लोबल ब्रोकर' नामक शीर्षक से छपी रिपोर्ट में ब्रेक्जिट के बाद ब्रिटेन की भविष्य की विदेश नीति का खाका पेश किया गया है।
  • इस रिपोर्ट में यू.के. के कम होते प्रभाव की बात की गई है।
  • इसके अलावा रिपोर्ट में भारत को उन चार 'मुश्किल (Difficult)' देशों की सूची में रखा गया है, जो यू.के. लिये 'प्रतिद्वंदी' साबित होंगे।
  • रिपोर्ट में कहा गया है कि यू.के. सरकार को भारत से आर्थिक या कूटनीतिक किसी भी प्रकार का फायदा होने की संभावना नहीं है।
  • हालाँकि रिपोर्ट में इस तथ्य को स्वीकार किया गया है कि भारत बहुत जल्द जनसंख्या के हिसाब से दुनिया का सबसे बड़ा देश बनने वाला है तथा इस दशक में कभी भी वह विश्व की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था और रक्षा बजट वाला देश बन सकता है।
  • ब्रिटिश औपनिवेशिक शासनकाल की विरासत लगातार दोनों देशों के रिश्‍तों में रुकावट बनती रही है। इसके मुकाबले अमेरिका भारत का सबसे अहम रणनीतिक साझेदार बन गया है।

अन्य बिंदु :

  • रिपोर्ट में प्रधानमंत्री बोरिस जॉनसन की लोकतांत्रिक देशों का ‘क्‍लब डी10’ बनाने की पहल की भी आलोचना की गई है।
  • रिपोर्ट में भारत द्वारा हमेशा पश्चिमी कैंप में शामिल होने का विरोध करने की बात भी की गई है।
  • भारत ने शीत युद्ध के समय गुटनिरपेक्ष आंदोलन का नेतृत्‍व किया और वर्ष 2017 में औपचारिक रूप से चीन और रूस के नेतृत्‍व वाले ‘शंघाई सहयोग संगठन’ में शामिल हो गया।
  • रिपोर्ट में भारत के कूटनीतिक व्‍यवहार पर कहा गया है कि चीन के साथ सीमा पर झड़पों के बावजूद भारत उन देशों के समूह में शामिल नहीं हुआ, जिन्होंने शि‍नजियांग में मानवाधिकार उल्‍लंघन को लेकर जुलाई 2019 में संयुक्त राष्ट्र के भीतर चीन की आलोचना की थी।
  • भारत ने हांगकांग में नए सुरक्षा कानून के पारित होने की आलोचना भी नहीं की।
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