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डिजिटल एड्रेस कोड

(प्रारंभिक परीक्षा: राष्ट्रीय महत्त्व की सामयिक घटनाएँ)
(मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र-2 : ई- गवर्नेंस : अनुप्रयोग, मॉडल, सफलताएँ, संभावनाएँ से संबंधित विषय)

संदर्भ

डाक विभाग देश में प्रत्येक पते (Adress) के लिये एक ‘डिजिटल एड्रेस कोड’ (Digital Adress Code: DAC) विकसित करने की प्रक्रिया में है।

डिजिटल एड्रेस कोड : प्रमुख बिंदु

  • डिजिटल एड्रेस कोड भौतिक पते को डिजिटल रूप में पेश करने की एक विशेषता है, जिसमें आसपास के कई स्थानों को एक ही पते से जोड़ा जा सकता है।
  • डी.ए.सी. को पते या स्थान के भू-स्थानिक निर्देशांक (Geo-Spatial Cordinates) से जोड़ा जाएगा। ये निर्देशांक प्रवेश द्वार पर उपयुक्त पते का प्रतिनिधित्व करेंगे
  • संवेदनशील प्रतिष्ठानों के लिये डी.ए.सी. जारी नहीं किया जाएगा अथवा उसके आसपास के शहर के निर्देशांक से इसके पते को जोड़ा/दर्शाया जा सकता है।
  • डी.ए.सी. प्रत्येक पते के लिये अद्वितीय होगा। इस संदर्भ में पते का अभिप्राय व्यक्तियों की आवासीय, कार्यालयी या व्यावसायिक इकाई से है। किसी भवन में स्थित सभी अपार्टमेंट को अद्वितीय डी.ए.सी. आवंटित किया जाएगा।
  • प्रत्येक पते के लिये डी.ए.सी. स्थायी होगा। हालाँकि, यदि वह पता (भवन/संपत्ति आदि) पैतृक हस्तांतरण या क्रय-विक्रय या अन्य किसी कारण से विभाजित होकर कई पतों में बदल जाता है तो प्रत्येक नए पते के लिये अलग डी.ए.सी. आवंटित किया जाएगा।
  • गलियों व कॉलोनियों के नाम तथा गली नंबर जैसे परिवर्तनशील मानदंडों को डिजिटल एड्रेस में शामिल नहीं किया जाएगा।
  • डिजिटल एड्रेस कोड को अंकीय या अक्षरांकीय (Numeric or Alpha-Numeric) कोड के रूप में प्रस्तावित किया गया है।

डिजिटल एड्रेस कोड की आवश्यकता

  • सटीक स्थान तक पहुँचने में सरलता : ऑनलाइन व्यापार और लेन-देन में वृद्धि के साथ पारंपरिक विधियों तथा सीमाचिह्नों (Landmark) के माध्यम से उपयुक्त पतों तक पहुँचना अपेक्षाकृत जटिल कार्य है। डी.ए.सी. से इसमें सुगमता होगी। 
  • निवास स्थानों का प्रमाण : वर्तमान में निवास स्थानों या पतों के प्रमाण के लिये  आमतौर पर उपयोग किये जाने वाले दस्तावेज़ों में उल्लिखित पते को डिजटल रूप से प्रमाणित नहीं किया जा सकता है।
  • जाली पते पर रोक : विभिन्न ई-कॉमर्स व अन्य वणिज्यिक माध्यमों में जाली पते का प्रयोग धोखाधड़ी के लिये किया जाता है। ऐसे में भू-स्थानिक निर्देशांक (Geo-Spatial Cordinates) से जुड़े सत्यापित पतों को ऑनलाइन प्रमाणित किया जा सकता है।
  • पते की विशिष्टता : पारंपरिक पते की अपेक्षा डी.ए.सी. हमेशा अद्वितीय व विशिष्ट होता है, ऐसे में इन स्थानों तक पहुँचना सुगम हो जाता है।

डिजिटल एड्रेस कोड के लाभ

  • डी.ए.सी. से पते को ऑनलाइन प्रमाणित किया जा सकता है, जिससे यह जीवन सुगमता, के.वाई.सी. (Know Your Customer: KYC) जैसी प्रक्रियाओं को सरल बनाने की दिशा में एक महत्त्वपूर्ण कदम है।
  • डी.ए.सी. डिलीवरी सेवाओं, विशेष रूप से ई-कॉमर्स में सेवा की गुणवत्ता और उत्पादकता को बढ़ावा देगा।
  • डी.ए.सी. के माध्यम से संपत्ति कराधान, आपातकालीन सहायता व आपदा प्रबंधन आदि क्षेत्रों में वित्तीय और प्रशासनिक क्षमता में वृद्धि होगी।
  • डी.ए.सी. सरकारी योजनाओं के वितरण और कार्यान्वयन को सरल बनाएगा जिससे शासन व्यवस्था में पारदर्शिता व जवाबदेहिता में वृद्धि होगी।

चुनौतियाँ

  • भारत जैसे विशाल भौगोलिक क्षेत्र वाले देश में व्यापक स्तर पर अद्वितीय डी.ए.सी. उपलब्ध करना एक चुनौती होगी।
  • सुदूर क्षेत्रों में सड़क-मार्ग की संपर्क सुविधा उपलब्ध न होने के कारण इन स्थानों पर डी.ए.सी. के उपयोग में समस्याएँ होंगी।
  • भारत में ग्रामीण-शहरी डिजिटल विभाजन के कारण इस योजना के सफल होने को लेकर प्रश्नचिह्न है।
  • इसमें प्रावधान है की एक ही संपत्ति के अलग-अलग स्थानों के लिये विशिष्ट कोड डीएव जाएंगे ऐसे में यह भ्रम की स्थिति उत्पन्न करेगा।
  • ई-कॉमर्स में अधिकांशत: धोखाधड़ी भुगतान के स्तर पर होती है, जिसके लिये अपेक्षाकृत एक सक्षम एवं सुरक्षित भुगतान प्रणाली की आवश्यकता है।

निष्कर्ष

डाक विभाग द्वारा ‘डिजिटल एड्रेस कोड’ की शुरुआत ई-गवर्नेंस के संदर्भ में एक महत्त्वपूर्ण कदम है। यह शासन व्यवस्था में पारदर्शिता सुनिश्चित करने के साथ-साथ सेवा वितरण की कुशलता में भी वृद्धि करेगा। यद्यपि इसमें विद्यमान कुछ अस्पष्टताओं व चुनौतियों का समाधान आवश्यक है ताकि ‘डिजिटल भारत’ मज़बूती दी जा सके।

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