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दिरांग जियोथर्मल परियोजना

पृथ्वी विज्ञान एवं हिमालय अध्ययन केंद्र (CESHS) ने अरुणाचल प्रदेश के पश्चिम कामेंग जिले के दिरांग क्षेत्र में पूर्वोत्तर भारत के पहले जियोथर्मल प्रोडक्शन वेल की सफल ड्रिलिंग की है। यह परियोजना क्षेत्रीय ऊर्जा आत्मनिर्भरता एवं पर्यावरणीय स्थिरता की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है।

दिरांग जियोथर्मल परियोजना 

  • भौगोलिक एवं भूवैज्ञानिक पृष्ठभूमि : दिरांग क्षेत्र मुख्य केंद्रीय थ्रस्ट (Main Central Thrust : MCT) के निकट स्थित है जो हिमालयी भू-संरचनाओं में उच्च तापीय प्रवाह एवं भ्रंश-संलग्न जलस्रोतों के लिए अनुकूल होता है।
    • गहराई में स्थित वेल (कूप) का तापमान लगभग 115 °C है। 
    • भूपटल संरचना : क्वार्टजाइट की परतें शिस्ट पर अवस्थित हैं जो ऊष्मा के प्रवाह को बनाए रखने में सहायक हैं।
  • प्रौद्योगिकी एवं प्रक्रिया : कूप की ड्रिलिंग सटीक भू-संरचनात्मक विश्लेषण के आधार पर की गई है जिससे पर्यावरणीय क्षति न्यूनतम रही।
  • परियोजना का संचालन : पृथ्वी विज्ञान एवं हिमालय अध्ययन केंद्र  
  • प्रमुख सहयोगी संस्थान :
    • नॉर्वेजियन भू-तकनीकी संस्थान (Norwegian Geotechnical Institute (NGI), ओस्लो (नॉर्वे)
    • जियोट्रॉपी ईएचएफ (Geotropy ehf), आइसलैंड
    • गुवाहाटी बोरिंग सर्विस (Guwahati Boring Services : GBS), भारत

महत्व 

  • ऊर्जा सुरक्षा एवं विविधता : भारत वर्ष 2070 तक नेट-जीरो उत्सर्जन के लक्ष्य को प्राप्त करने में स्थानीय, विकेंद्रीकृत एवं अक्षय स्रोतों की भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण है। ऐसे में दिरांग जैसी परियोजनाएँ ऊर्जा आयात पर निर्भरता घटाने में मदद करेंगी।
  • पूर्वोत्तर क्षेत्र का सतत विकास : यह परियोजना पूर्वोत्तर के लिए स्थानीय संसाधनों पर आधारित विकास मॉडल प्रस्तुत करती है। 
  • कृषि एवं खाद्य प्रसंस्करण में क्रांति : जियोथर्मल ऊर्जा का उपयोग फल-सुखाने, मांस प्रसंस्करण एवं वायुमंडलीय नियंत्रित भंडारण में किया जाएगा जिससे हिमालयी कृषि उत्पादों का मूल्य संवर्धन व बाजारीकरण संभव हो सकेगा।
  • पर्यावरणीय प्रभाव एवं स्थायित्व : जियोथर्मल सतत ऊर्जा है और इसके संचालन में कार्बन उत्सर्जन नगण्य होता है। इससे पारिस्थितिक संतुलन पर न्यूनतम प्रभाव पड़ता है, विशेषकर हिमालय जैसे नाजुक पारिस्थितिकी क्षेत्रों में।
  • वैज्ञानिक क्षमता एवं अंतर्राष्ट्रीय सहयोग :  यह परियोजना विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में वैश्विक सहयोग का उत्कृष्ट उदाहरण है। इसमें यूरोपीय अनुभव, भारतीय भूगर्भीय समझ एवं स्थानीय ज्ञान का सम्मिलन है।
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