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आपदा प्रबंधन: भीड़ जनित संकट पर प्रतिक्रिया और वैज्ञानिक नियंत्रण

(प्रारंभिक परीक्षा : समसामयिक घटनाक्रम)
(मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र- 3: आपदा और आपदा प्रबंधन)

संदर्भ

  • तमिलनाडु के करूर में सितंबर में तमिलगा वेत्रि कज़गम (TVK) के संस्थापक अभिनेता विजय की रैली में हुई भगदड़ की भयावह त्रासदी ने पुन: भारत में भीड़ प्रबंधन की गंभीर चुनौतियों को उजागर कर दिया है। अत्यधिक भीड़भाड़ और दम घुटने के कारण इस घटना में 41 लोगों की मौत हो गई, जिनमें से अधिकांश युवा थे। 
  • तमिलनाडु सरकार ने सेवानिवृत्त न्यायाधीश अरुणा जगदीशन की अध्यक्षता में एक सदस्यीय आयोग नियुक्त किया है, जिसका उद्देश्य सार्वजनिक आयोजनों के लिए उचित नियम और दिशा-निर्देश तैयार करना है। यह कदम संकेत देता है कि अब संकट के समाधान के लिए कानूनी जवाबदेही और मजबूत नियामक ढाँचे की आवश्यकता महसूस की जा रही है।

क्या है भगदड़ 

  • भगदड़ शब्द का अर्थ लोगों की भीड़ का अचानक से दिशाहीन होकर भागना है जिसके परिणामस्वरूप दम घुटने व कुचलने से चोटिल होने एवं मृत्यु की घटनाएँ होती हैं। 
  • भगदड़ में भीड़ शब्द का उपयोग लोगों के एक एकत्रित, सक्रिय, ध्रुवीकृत समूह को संदर्भित करने के लिए किया जाता है।
  • भीड़ की सबसे प्रमुख विशेषताओं में भीड़ में शामिल लोगों के बीच विचार एवं क्रिया की एकरूपता और उनकी आवेगपूर्ण व तर्कहीन क्रियाएं शामिल हैं।

राष्ट्रीय प्रयास: सलाहकारी ढाँचे से आगे बढ़ने की चुनौती

  • राष्ट्रीय स्तर पर भारत ने भीड़ प्रबंधन के लिए कई मार्गदर्शन दस्तावेज़ विकसित किए हैं। हालाँकि, ये मुख्य रूप से सलाहकारी (Advisory) प्रकृति के हैं, न कि वैधानिक।
    1. ज्ञान एवं मार्गदर्शन:
      • पुलिस अनुसंधान एवं विकास ब्यूरो (BPR&D) ने जून 2025 में पुलिस और कानून प्रवर्तन एजेंसियों के लिए व्यापक दिशानिर्देश प्रकाशित किए हैं जो वैज्ञानिक भीड़ प्रबंधन प्रथाओं को अपनाने पर जोर देते हैं।
      • राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (NDMA) 2020 से ही भीड़ प्रबंधन मार्गदर्शिकाएँ जारी कर रहा है। ये दस्तावेज़ पूर्व जोखिम मूल्यांकन, विस्तृत स्थल लेआउट, पूर्व-निर्धारित प्रवेश और निकास मार्ग, वास्तविक समय निगरानी तथा मजबूत संचार प्रोटोकॉल जैसी निवारक रणनीतियों पर जोर देते हैं।
    2. क्षमता निर्माण: राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन संस्थान (NIDM) नियमित रूप से बड़ी सभाओं को सुरक्षित रूप से संभालने के लिए प्रशिक्षण मॉड्यूल और क्षमता निर्माण कार्यक्रम आयोजित करता है।
    3. बुनियादी ढाँचा पहल: फरवरी में नई दिल्ली रेलवे स्टेशन पर भीड़ की घटना के बाद भारतीय रेलवे ने भी कदम उठाए हैं। लगभग 60 अधिक भीड़-भाड़ वाले स्टेशनों के मैनुअल को अपडेट किया गया है जिसमें होल्डिंग एरिया एवं बेहतर डिस्पर्सल ज़ोन बनाने जैसे नियम शामिल हैं।
  • वस्तुतः ये सभी प्रयास भारत के प्रशासनिक इरादे को दर्शाते हैं किंतु करूर जैसी घटनाओं से स्पष्ट है कि इन उपायों को स्थानीय क्रियान्वयन में प्राय: नजरअंदाज कर दिया जाता है, खासकर जब राजनीतिक दबाव या अपर्याप्त तैयारी का सामना करना पड़ता है।

राज्यों का प्रतिक्रिया-आधारित दृष्टिकोण

  • भीड़ प्रबंधन के संबंध में अधिकांश राज्य-स्तरीय पहलें किसी न किसी विशिष्ट दुर्घटना के तुरंत बाद शुरू की गई हैं, जो एक प्रतिक्रिया-आधारित दृष्टिकोण को दर्शाती हैं:
  • कर्नाटक ने बेंगलुरु के स्टेडियम के बाहर हुई भगदड़ के बाद जून 2025 में भीड़ नियंत्रण विधेयक, 2025 पेश किया। यह विधेयक राजनीतिक व सांस्कृतिक आयोजनों के लिए आयोजकों की कानूनी ज़िम्मेदारी तय करता है और जिला मजिस्ट्रेटों को कार्यक्रमों को रद्द करने या उल्लंघनों के लिए जुर्माना एवं कारावास लगाने का अधिकार देता है।
  • उत्तर प्रदेश राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकरण ने सामूहिक आयोजनों में भीड़ प्रबंधन के लिए दिशानिर्देश, 2023 जारी किए हैं जो विशेष रूप से धार्मिक एवं सांस्कृतिक आयोजनों के लिए हैं।
  • उत्तराखंड ने हरिद्वार के मनसा देवी मंदिर में भगदड़ के बाद प्रमुख मंदिरों में सुरक्षा व्यवस्था को अद्यतन करने के निर्देश दिए।
  • महाराष्ट्र ने कुंभ मेला प्राधिकरण को बड़ी सभाओं के लिए अस्थायी टाउनशिप और सुविधाओं के निर्माण हेतु शहरी नियोजन मानदंडों को दरकिनार करने का अधिकार देने वाला एक विधेयक पेश किया।
  • गुजरात आपदा प्रबंधन संस्थान स्थल क्षमता गणना, निकास योजना एवं प्राथमिक चिकित्सा सुनिश्चित करने के लिए तकनीकी प्रशिक्षण सामग्री तैयार कर रहा है।

हालाँकि, ये पहल स्वागत योग्य हैं किंतु स्थानीय पुलिस द्वारा आयोजकों को दिए गए अधिकांश निर्देश (जैसे- भीड़ की संख्या सीमित करना, चिकित्सा दल तैनात करना) अभी भी केवल प्रशासनिक आदेश हैं, जिन्हें कानूनी समर्थन की आवश्यकता है।

वैज्ञानिक भीड़ नियंत्रण की अनिवार्यता

करूर जैसी त्रासदियों को रोकने के लिए भारत को राष्ट्रीय दिशानिर्देशों से आगे बढ़कर वैज्ञानिक भीड़ नियंत्रण के सिद्धांतों को अनिवार्य रूप से लागू करना होगा।

1. घनत्व प्रबंधन एवं प्रौद्योगिकी का उपयोग

  • वैज्ञानिक सिद्धांत स्पष्ट रूप से बताते हैं कि जब भीड़ का घनत्व 5 व्यक्ति प्रति वर्ग मीटर के करीब पहुँचता है तो जानलेवा दबाव (Crushing) का खतरा बढ़ जाता है। इस जोखिम को कम करने के लिए:
    • वास्तविक समय निगरानी: आयोजकों को ड्रोन कैमरों और कंप्यूटरों का उपयोग करके भीड़ के घनत्व पर लगातार नज़र रखनी चाहिए। यह तकनीक भीड़ को सुरक्षित रूप से प्रबंधित करने के लिए अपरिहार्य है।
    • प्रवाह और दिशात्मक नियंत्रण: भीड़ को कभी भी अड़चनों (Bottlenecks), ढलानों या विपरीत दिशाओं में नहीं ले जाना चाहिए। भीड़ के प्रवाह को एक दिशा में नियंत्रित करना और पर्याप्त निकासों की व्यवस्था करना महत्वपूर्ण है।

2. व्यक्तिगत एवं संरचनात्मक सुरक्षा

  • भीड़ के कारण होने वाली मृत्यु का प्राथमिक कारण कुचलना नहीं, बल्कि दबाव से दम घुटना होता है। इसलिए, वैज्ञानिक नियंत्रण में व्यक्तिगत सुरक्षा के लिए जागरूकता शामिल होनी चाहिए:
    • लोगों को अत्यधिक दबाव की स्थिति में अपनी साँस लेने की जगह की रक्षा के लिए बाँहों को छाती पर रखना चाहिए।
    • उन्हें बाड़, दीवारों या मंच जैसी कठोर बाधाओं से दूर रहने की सलाह दी जानी चाहिए, जहाँ शारीरिक दबाव घातक रूप से बढ़ सकता है।
    • आयोजकों को प्रशिक्षित भीड़ प्रबंधकों, स्पष्ट संकेतों एवं सार्वजनिक संबोधन संदेशों का उपयोग करना चाहिए ताकि किसी भी अशांति (Turulence) को रोका जा सके।

दिशानिर्देश एवं नीतियां

भारत में भीड़ प्रबंधन के लिए प्रमुख दिशानिर्देश और नीतियां निम्न हैं:

  • एन.डी.एम.ए. दिशानिर्देश (2014): मास गेदरिंग में भीड़ प्रबंधन’ पर आधारित, जिसमें क्षमता मूल्यांकन, जोखिम विश्लेषण, सीसीटीवी और ड्रोन निगरानी, आपातकालीन चिकित्सा सुविधाएं और बहु-एजेंसी समन्वय शामिल हैं।
  • आपदा प्रबंधन अधिनियम, 2005: बड़े आयोजनों को आपदा के रूप में वर्गीकृत करता है, जिसमें राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (एस.डी.एम.ए.) की भूमिका है।
  • पुलिस एक्ट, 1861: सभाओं और जुलूसों को विनियमित करता है, जिसमें शर्तें लगाने का अधिकार है।
  • राज्य-स्तरीय नीतियां: जैसे कर्नाटक क्राउड कंट्रोल बिल 2025, जो राजनीतिक रैलियों पर प्रभाव डालता है। आयोजकों को पूर्व अनुमति, सुरक्षा योजना और जुर्माना अनिवार्य है। 
    • ये दिशानिर्देश पूर्व-योजना पर जोर देते हैं, लेकिन कार्यान्वयन की कमी बनी रहती है।

सर्वोच्च न्यायालय के महत्त्वपूर्ण निर्णय

  • 2013 रतनगढ़ मंदिर भगदड़ (मध्य प्रदेश): धार्मिक आयोजनों के लिए अनिवार्य भीड़ नियंत्रण उपाय, जैसे जोखिम मूल्यांकन और सुरक्षा योजनाएं।
  • महा कुम्भ भगदड़ (2025): यूपी अधिकारियों पर कार्रवाई की याचिका खारिज की, लेकिन हाईकोर्ट जाने को कहा; भीड़ प्रबंधन नीतियों को मजबूत करने का निर्देश।
  • नई दिल्ली रेलवे स्टेशन भगदड़ (2025): सीबीआई जांच की याचिका खारिज, लेकिन एनडीएमए 2014 रिपोर्ट लागू करने का आदेश; फुट ओवरब्रिज विस्तार और रैंप की सिफारिश।
  • हाथरस भगदड़ (2024): आयोजकों और अधिकारियों पर संयुक्त दायित्व, जुर्माना और सजा का प्रावधान। ये निर्णय पूर्व-निवारक उपायों, समन्वय और जवाबदेही पर जोर देते हैं, लेकिन बार-बार होने वाली घटनाएं कार्यान्वयन की कमजोरी दर्शाती हैं।

भविष्य की रणनीति 

करूर घटना भारत के आपदा प्रबंधन तंत्र के लिए एक कठोर चेतावनी है। भारत के पास राष्ट्रीय स्तर पर सलाह और राज्यों के पास प्रतिक्रिया-आधारित उपाय मौजूद हैं किंतु सामूहिक सभाओं को सुरक्षित बनाने के लिए अब कानूनी, वैधानिक व वैज्ञानिक अनिवार्यता लागू करने का समय आ गया है। केवल आयोगों की नियुक्ति या सलाह जारी करने से बात नहीं बनेगी; आवश्यक है कि आयोजकों की जवाबदेही को कानून के दायरे में लाया जाए और वैज्ञानिक भीड़ नियंत्रण की तकनीकों को सख्ती से क्रियान्वित किया जाए ताकि भविष्य में ऐसी त्रासदियों को रोका जा सके।

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