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विजयनगरकालीन द्वारफलक की खोज

संदर्भ

कर्नाटक के उडुपी ज़िले के पेरडूर स्थित अनंतपद्मनाभ मंदिर में एक दुर्लभ विजयनगर कालीन धातु निर्मित द्वारफलक की खोज की गई है। यह द्वारफलक भगवान विष्णु के दस अवतारों (दशावतार) की मूर्तियों से अलंकृत है और इससे जुड़ी कलात्मक, धार्मिक तथा ऐतिहासिक विशेषताएँ इस खोज को विशेष महत्व प्रदान करती हैं।

खोज से सबंधित प्रमुख बिंदु 

  • खोजस्थल : अनंतपद्मनाभ मंदिर, पेरडूर, उडुपी ज़िला, कर्नाटक
  • खोजकर्ता : टी. मुरुगेशी
  • निर्माणकाल : मंदिर से प्राप्त अभिलेख के अनुसार यह संरचना विजयनगर सम्राट कृष्णदेवराय के शासनकाल (1519 ई.) की है।
    • अभिलेख में उल्लेख है कि सम्राट ने मंदिर में दान दिया और सुरप्पय्या नामक अधिकारी को मंदिर प्रशासन के लिए नियुक्त किया

द्वार फलक के बारे में 

यह द्वारफलक लगभग 4.5 फीट ऊँचा और 3.5 फीट चौड़ा है। इसके दाएँ एवं बाएँ दोनों स्तंभों पर विष्णु के दशावतारों को क्रमशः प्रदर्शित किया गया है:

  • दायाँ स्तंभ (नीचे से ऊपर) : हनुमान की मुद्रा में अभिवादन करते हुए मूर्ति, उसके ऊपर व्यातली (Vyali), एक काल्पनिक राक्षसी प्राणी और फिर विष्णु के विभिन्न अवतार : मत्स्य (मछली), कूर्म (कछुआ), वराह (सूअर) और वामन
  • केंद्र में : गजलक्ष्मी की प्रतिमा दो हाथियों के साथ है जो उन पर पवित्र जलाभिषेक कर रहे हैं तथा सूर्य व चंद्रमा की आकृति गजलक्ष्मी के ऊपर स्थित है।
  • बायाँ स्तंभ (ऊपर से नीचे) : परशुराम, राम, कालिंगमर्दन कृष्ण, बुद्ध एवं कल्कि। अंतिम प्रतिमा के रूप में गरुड़ की मूर्ति हाथ जोड़कर अभिवादन करते हुए है।

धार्मिक एवं सामाजिक परिप्रेक्ष्य

  • यह खोज भगवत परंपरा (Bhagavata Cult) के पश्चिमी तट पर प्रसार को रेखांकित करती है जिसमें अनंतपद्मनाभ की उपासना केंद्र में रही है।
  • दशावतार का अंकन हिंदू धर्म में सृष्टि-पालन-प्रलय के चक्र एवं अधर्म के विनाश की अवधारणा को मूर्त रूप प्रदान करता है।
  • इसमें बुद्ध का समावेश यह दिखाता है कि विजयनगर के ब्राह्मण शिल्पकार बौद्ध धर्म को विष्णु के अवतार के रूप में मान्यता देते थे । 

ऐतिहासिक एवं सांस्कृतिक महत्व

  • यह द्वारफलक विजयनगर काल की मूर्तिकला एवं धार्मिक कलाओं का उत्कृष्ट उदाहरण है।
  • मूर्तियों की शैली, विशेष रूप से कालिंगमर्दन कृष्ण (Cheese Ball Krishna) और नग्न बुद्ध, स्पष्ट रूप से उस काल के वैचारिक एवं कलात्मक प्रवृत्तियों को दर्शाती है।
  • यह मूर्तिकला परंपरा शृंगेरी के विद्याशंकर मंदिर जैसी अन्य संरचनाओं से साम्यता दर्शाती है जो विजयनगर काल की समानताएँ पुष्ट करती है।
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