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पेट्रोलियम उत्पादों का खाद्य पदार्थों की कीमतों पर प्रभाव

(प्रारंभिक परीक्षा : राष्ट्रीय महत्त्व की सामयिक घटनाओं से संबंधित प्रश्न)
(मुख्य परीक्षा; सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र- 3 मुद्रास्फीति, ऊर्जा सुरक्षा से संबंधित विषय)

संदर्भ

हाल ही में, खाद्य एवं कृषि संगठन (Food and Agriculture Organisation) ने विश्व खाद्य सूचकांक (Food Price Index) से संबंधित आँकड़े जारी किये हैं। इसके अनुसार विश्व खाद्य सूचकांक 133.2 अंकों पर पहुँच गया है, जो जुलाई 2011 के बाद सबसे अधिक है।

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ईंधन तथा खाद्य कीमतों के मध्य अंतर्सबंध

  • पेट्रोलियम और कृषि-वस्तुओं की कीमतों के एक साथ बढ़ने का प्रमुख कारण जैव-ईंधन लिंक है। जब कच्चे तेल की कीमतें बढ़ती हैं तो गन्ने और मक्का से प्राप्त इथेनॉल को पेट्रोल के साथ मिलाना अथवा बायोडीजल उत्पादन के लिये ताड़ और सोयाबीन के तेल का उपयोग अधिक किफ़ायती हो जाता है। 
  • इसी प्रकार, पेट्रो-केमिकल आधारित कृत्रिम रेशे के स्थान पर कपास अधिक उपयुक्त विकल्प बन जाता है। फलत: खाद्यन्न के वैकल्पिक उपयोग के कारण भी इनकी कीमतों में वृद्धि होती है।   
  • मकई (Corn) जैसे पशुचारे का उपयोग एथेनॅाल उत्पादन के लिये करने पर गेहूँ सहित अन्य अनाजों का उपयोग पशुओं के चारे के रूप में किया जाता है। फलत: खाद्यान्न की कीमतों में वृद्धि होती है। 
  •  इसी प्रकार चीनी मिलें गन्ने का उपयोग शराब के किण्वन के लिये कर रही हैं, फलत: चीनी की कीमतों में वृद्धि होती है।
  • ईंधन की कीमतों में वृद्धि होने पर कृषि आगतों तथा कृषि उपज की परिवहन लागत में वृद्धि होती है फलत: खाद्यान्नों की कीमतें बढ़ जाती हैं।

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अन्य कारक 

  • अंतर्राष्ट्रीय कॉफी की कीमतें विगत एक वर्ष में लगभग दोगुनी हो गई हैं, साथ ही पिछले तीन महीनों में कच्चे तेल के साथ अन्य कृषि जिंसों की कीमतों में भी वृद्धि हुई है जिसका प्रभाव ईंधन तथा कृषि जिंस बाज़ारों पर भी देखा जा सकता है।
  • कोविड-19 महामारी के घटते मामले तथा बढ़ती टीकाकरण की दरों के बीच वैश्विक स्तर पर आर्थिक गतिविधियों में तेज़ी आने से मांग में भी वृद्धि हुई है जिसका प्रभाव खाद्यान्नों की बढ़ती कीमतों के रूप में देखा जा सकता है।
  • महामारी की आर्थिक क्षति को कम करने के लिये अमेरिकी फेडरल बैंक सहित अन्य वैश्विक बैंकों ने भी ब्याज दरों को कम किया है फलत: मांगजनित महंगाई में वृद्धि हुई है।
  • महामारी के पश्चात् जिस दर पर मांग में वृद्धि हुई उस अनुपात में आपूर्ति न होने के कारण वस्तुओं एवं सेवाओं की कीमतों में वृद्धि हुई है।
  • दूसरी ओर, यूरिया की कीमत 900 डॉलर प्रति टन के स्तर को पार कर गई है। साथ ही उर्वरकों में प्रयुक्त मध्यवर्ती कच्चे माल की कीमतें भी उच्चतम स्तर पर हैं जो महंगाई में वृद्धि का एक प्रमुख कारण है। 

किसानों पर प्रभाव

  • बढ़ती अंतर्राष्ट्रीय कीमतों का कुछ क्षेत्र के किसानों पर सकारात्मक प्रभाव पड़ा है, जैसे-  गुजरात में कपास (कच्ची गांठें) वर्तमान में 7,500-8,000 रुपए प्रति क्विंटल पर बिक रहा है, जो उच्च किस्म वाले कपास हेतु सरकार के न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) से  6,025 रुपए से काफी अधिक है।
  • इसी प्रकार, मध्य प्रदेश तथा महारष्ट्र के सोयाबीन उत्पादक किसानों को बाज़ारों में 5,000 रुपए प्रति क्विंटल की कीमत मिल रही है, जबकि न्यूनतम समर्थन मूल्य 3,950 रुपए है।
  • दूसरी ओर, अंतर्राष्ट्रीय कीमतों में वृद्धि के कारण किसानों को ईंधन तथा उर्वरकों के लिये अधिक भुगतान करना पड़ रहा है।
  • उर्वरकों के संबंध में स्थिति और भी प्रतिकूल है जहाँ डाई-अमोनियम फॉस्फेट (DAP) वर्तमान में भारत में 800 डॉलर प्रति टन पर आयात किया जा रहा है वहीं म्यूरेट ऑफ पोटाश (MOP) 450 डॉलर प्रति टन पर उपलब्ध है। ये वर्ष 2007-08 के विश्व खाद्य संकट के दौरान प्रचलित कीमतों के करीब हैं।

निष्कर्ष

यद्यपि खाद्य मुद्रास्फीति को कम करने के लिये हाल ही में सरकार ने पेट्रोलियम उत्पादों पर करों में कटौती की है, परंतु यह पर्याप्त नहीं है। इसके लिये यह आवश्यक है कि उर्वरक सब्सिडी को युक्तिसंगत बनाते हुए इसकी कालाबाज़ारी को रोकने के उपाय किये जाएँ। इसके अतिरिक्त, मांग तथा आपूर्ति पक्ष में सामंजस्य स्थापित कर मुद्रास्फीति की चुनौती से निपटा जा सकता है।

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