- भारत में आर्थिक नियोजन की यात्रा 1950 में योजना आयोग की स्थापना से शुरू हुई थी। किंतु उदारीकरण (1991), वैश्वीकरण, संघीय राजनीति के सुदृढ़ीकरण और राज्यों की बढ़ती भूमिका के साथ केंद्रीकृत, आदेश-और-नियंत्रण (Command & Control) आधारित नियोजन मॉडल अप्रासंगिक होता गया।
- इसी पृष्ठभूमि में 1 जनवरी 2015 को नीति आयोग (National Institution for Transforming India – NITI Aayog) की स्थापना की गई।
- नीति आयोग का उद्देश्य केवल योजनाएँ बनाना नहीं, बल्कि नीति-निर्माण, सहकारी संघवाद और परिवर्तनकारी शासन को बढ़ावा देना है।
- वर्ष 2025 में नीति आयोग के 10 वर्ष पूरे होना, भारत के विकास मॉडल के एक दशक लंबे प्रयोग का मूल्यांकन करने का अवसर प्रदान करता है।
विजन इंडिया @ 2047 / विकसित भारत @ 2047
- उद्देश्य: स्वतंत्रता की 100वीं वर्षगांठ, 2047 तक भारत को विकसित राष्ट्र में बदलना।
- लक्ष्य: लोकतंत्र, जनसांख्यिकी और विविधता की नींव पर आधारित, उच्च प्रति व्यक्ति आय वाली 30 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर की अर्थव्यवस्था।
नीति आयोग की स्थापना का औचित्य
- भारत में नीति आयोग की स्थापना का प्रमुख औचित्य यह था कि उदारीकरण, वैश्वीकरण और आर्थिक सुधारों के बाद योजना आयोग का केंद्रीकृत नियोजन मॉडल अप्रासंगिक हो गया था।
- बदलती आर्थिक एवं संघीय आवश्यकताओं के अनुरूप एक ऐसे संस्थान की आवश्यकता महसूस की गई, जो नीति-निर्माण, नवाचार और राज्यों की भागीदारी को बढ़ावा दे सके।
योजना आयोग की प्रमुख सीमाएँ
- योजना आयोग को अत्यधिक केंद्रीकृत संस्था माना जाता था और उसकी छवि एक प्रकार के “Super Cabinet” के रूप में बन गई थी, जो नीतिगत निर्णयों में अत्यधिक हस्तक्षेप करती थी।
- यह आयोग अक्सर वित्त आयोग तथा विभिन्न केंद्रीय मंत्रालयों के कार्यक्षेत्र में अतिक्रमण करता था, जिससे संस्थागत टकराव की स्थिति उत्पन्न होती थी।
- योजना आयोग का “One Size Fits All” दृष्टिकोण भारत जैसे विविधता-पूर्ण देश के लिए उपयुक्त नहीं था, क्योंकि विभिन्न राज्यों की सामाजिक-आर्थिक परिस्थितियाँ भिन्न थीं।
- इस प्रणाली में राज्यों की भागीदारी सीमित थी और वे केवल योजनाओं के क्रियान्वयनकर्ता बनकर रह जाते थे।
- साथ ही, योजनाओं का स्वरूप कठोर, ऊपर से नीचे (Top-Down) था, जिससे स्थानीय आवश्यकताओं और नवाचार की उपेक्षा होती थी।
बदलते भारत की नई आवश्यकताएँ
- स्वतंत्र भारत के बदलते परिदृश्य में एक विविधता-पूर्ण संघीय ढाँचे की आवश्यकता थी, जहाँ राज्यों को उनकी विशिष्ट आवश्यकताओं के अनुरूप नीति-निर्माण का अवसर मिले।
- आर्थिक विकास के लिए प्रतिस्पर्धात्मक एवं नवाचार-आधारित मॉडल को अपनाना आवश्यक हो गया था।
- राज्यों को केवल योजना लागू करने वाला नहीं, बल्कि नीति-निर्माण में सक्रिय भागीदार बनाने की जरूरत महसूस की गई।
- इसके अतिरिक्त, इनपुट आधारित योजना के स्थान पर परिणाम-आधारित शासन (Outcome Based Governance) पर जोर देना समय की मांग बन गया।
नीति आयोग : संरचना (Structure of NITI Aayog)
1. अध्यक्ष (Chairperson)
नीति आयोग के अध्यक्ष के रूप में भारत के प्रधानमंत्री कार्य करते हैं, जो आयोग को सर्वोच्च राजनीतिक नेतृत्व प्रदान करते हैं।
2. उपाध्यक्ष (Vice-Chairperson)
उपाध्यक्ष की नियुक्ति प्रधानमंत्री द्वारा की जाती है। वे नीति आयोग के दैनिक कार्यों का संचालन, समन्वय और मार्गदर्शन करते हैं।
3. शासी परिषद (Governing Council)
- शासी परिषद नीति आयोग का सर्वोच्च नीति मंच है।
- इसमें प्रधानमंत्री, सभी राज्यों के मुख्यमंत्री, विधानमंडल वाले केंद्रशासित प्रदेशों के मुख्यमंत्री तथा अन्य केंद्रशासित प्रदेशों के उप-राज्यपाल शामिल होते हैं।
- यह परिषद सहकारी संघवाद का वास्तविक और सशक्त मंच प्रदान करती है।
4. पदेन सदस्य (Ex-officio Members)
प्रधानमंत्री द्वारा नामित अधिकतम चार केंद्रीय मंत्री नीति आयोग के पदेन सदस्य होते हैं।
5. पूर्णकालिक सदस्य
नीति आयोग में अनुभवी प्रशासक और विषय-विशेषज्ञ पूर्णकालिक सदस्य के रूप में नियुक्त किए जाते हैं।
6. विशेष आमंत्रित सदस्य
विशिष्ट क्षेत्रों में विशेषज्ञता रखने वाले व्यक्तियों को विशेष आमंत्रित सदस्य के रूप में शामिल किया जाता है।
7. मुख्य कार्यकारी अधिकारी (CEO)
CEO की नियुक्ति प्रधानमंत्री द्वारा की जाती है।उनका पद भारत सरकार के सचिव के समकक्ष होता है और वे नीति आयोग के प्रशासनिक एवं तकनीकी नेतृत्व का दायित्व निभाते हैं।
8. क्षेत्रीय परिषदें (Regional Councils)
क्षेत्रीय परिषदों का गठन प्रधानमंत्री द्वारा किया जाता है।इनका उद्देश्य बहु-राज्यीय या क्षेत्रीय समस्याओं पर ध्यान केंद्रित करना होता है और ये सीमित अवधि के लिए कार्य करती हैं।
नीति आयोग के प्रमुख सिद्धांत (Guiding Principles)
- नीति आयोग का कार्य सहकारी संघवाद के सिद्धांत पर आधारित है, जिसमें केंद्र और राज्य मिलकर विकास को आगे बढ़ाते हैं।
- इसके साथ "श्रेष्ठ प्रदर्शन को प्रोत्साहन" के लिए प्रतिस्पर्धात्मक संघवाद को भी बढ़ावा दिया जाता है।
- नीति आयोग योजना-आधारित शासन के स्थान पर नीति-आधारित शासन पर बल देता है।
- यह संस्था नीचे से ऊपर (Bottom-Up Approach) के माध्यम से स्थानीय आवश्यकताओं को नीति-निर्माण में शामिल करती है।
- नीतियाँ डेटा-आधारित और साक्ष्य-आधारित (Evidence Based) होती हैं।
- साथ ही, नवाचार और प्रौद्योगिकी-समर्थ शासन नीति आयोग की मूल भावना है।
नीति आयोग के उद्देश्य (Objectives of NITI Aayog)
1. सहकारी संघवाद
नीति आयोग का उद्देश्य राज्यों को नीति-निर्माण में सक्रिय भागीदार बनाना तथा विकास के लिए केंद्र-राज्य सहयोग को सुदृढ़ करना है।
2. समावेशी विकास
यह आयोग वंचित, पिछड़े और जोखिमग्रस्त वर्गों पर विशेष ध्यान देते हुए SDGs के अनुरूप समावेशी विकास को बढ़ावा देता है।
3. नीति निर्माण एवं सुधार
नीति आयोग दीर्घकालिक, मध्यकालिक और अल्पकालिक रणनीतियों के माध्यम से संरचनात्मक सुधारों को प्रोत्साहित करता है।
4. ज्ञान एवं नवाचार
यह संस्था सरकार के लिए एक Think Tank के रूप में कार्य करती है, श्रेष्ठ प्रथाओं का प्रसार करती है तथा नीति शोध और डेटा समर्थन प्रदान करती है।
5. अंतर-विभागीय समन्वय
विकास लक्ष्यों की प्राप्ति के लिए विभिन्न मंत्रालयों और विभागों के बीच बेहतर तालमेल स्थापित करना नीति आयोग का उद्देश्य है।
6. राष्ट्रीय सुरक्षा संरेखण
नीति आयोग यह सुनिश्चित करता है कि आर्थिक नीतियों में राष्ट्रीय सुरक्षा हितों को भी समुचित रूप से शामिल किया जाए।
नीति आयोग की प्रमुख विशेषताएँ
- नीति आयोग की एक महत्वपूर्ण विशेषता यह है कि यह सूचना तक पहुँच और उसके प्रभावी साझाकरण को बढ़ावा देता है, जिससे नीति-निर्माण में पारदर्शिता और समन्वय सुनिश्चित होता है।
- नीति आयोग ने केन्द्रीकृत नियोजन की भूमिका को कम किया है और कठोर योजना-आधारित मॉडल के स्थान पर लचीले तथा परामर्श-आधारित नीति ढाँचे को अपनाया है।
- यह संस्था सार्वजनिक और निजी दोनों क्षेत्रों में सुशासन (Good Governance) को प्रोत्साहित करती है तथा सार्वजनिक-निजी भागीदारी के माध्यम से विकास को गति देती है।
- नीति आयोग ग्राम स्तर पर व्यवहारिक और यथार्थपरक योजनाएँ बनाने पर बल देता है तथा इन योजनाओं को क्रमिक रूप से राज्य और राष्ट्रीय स्तर पर समेकित (Integrate) करने की प्रक्रिया को समर्थन प्रदान करता है।
- यह आयोग राज्यों के साथ निरंतर साझेदारी बनाए रखता है और उन्हें नीति-निर्माण की प्रक्रिया में सक्रिय सहयोगी के रूप में शामिल करता है।
- नीति आयोग प्रमुख हितधारकों, तथा राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय समान विचारधारा वाले थिंक टैंकों के साथ साझेदारी को प्रोत्साहित करता है और सरकार को नीति-सम्बंधी परामर्श प्रदान करता है।
- यह संस्था नीति-संबंधी समस्याओं के समाधान हेतु एक मंच उपलब्ध कराती है, जहाँ विभिन्न पक्ष अपने अनुभव, सुझाव और सर्वोत्तम प्रथाएँ साझा कर सकते हैं।
- नीति आयोग ने ग्राम स्तर पर व्यवहारिक योजनाएँ तैयार करने के लिए संस्थागत तंत्र विकसित किए हैं, जिससे स्थानीय आवश्यकताओं के अनुरूप एक साझा विकास दृष्टिकोण तैयार किया जा सके।
योजना आयोग और नीति आयोग : तुलनात्मक अध्ययन
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विशेषता
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योजना आयोग (Planning Commission)
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नीति आयोग (NITI Aayog)
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भूमिका
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एक केंद्रीकृत नियोजन प्राधिकरण, जो पंचवर्षीय योजनाओं का निर्माण और निगरानी करता था।
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एक नीतिगत थिंक टैंक एवं परामर्शदाता निकाय, जो नीति-निर्माण में सरकार की सहायता करता है।
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दृष्टिकोण
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शीर्ष-स्तरीय (Top-Down) नियोजन तथा राज्यों के लिए “One Size Fits All” दृष्टिकोण।
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नीचे-से-ऊपर (Bottom-Up) दृष्टिकोण, सहकारी संघवाद को बढ़ावा।
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वित्तीय शक्तियाँ
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राज्यों को विभिन्न योजनाओं एवं कार्यक्रमों के लिए निधि आवंटन की शक्ति थी।
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निधि आवंटन की कोई शक्ति नहीं; विशुद्ध रूप से परामर्शदाता संस्था।
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राज्यों का प्रतिनिधित्व
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राज्यों की भागीदारी सीमित एवं अप्रत्यक्ष।
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शासी परिषद में सभी राज्यों के मुख्यमंत्री एवं उप-राज्यपाल शामिल, जिससे प्रत्यक्ष भागीदारी सुनिश्चित।
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नीतिगत फोकस
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कड़े लक्ष्यों के साथ पंचवर्षीय योजनाओं पर केंद्रित।
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दीर्घकालिक नीति ढाँचे पर फोकस — 15 वर्षीय विज़न, 7 वर्षीय रणनीति, 3 वर्षीय कार्ययोजना।
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नीति आयोग : इसके कामकाज का मूल्यांकन
- नीति आयोग के गठन के एक दशक बाद भी इसका समग्र प्रदर्शन अपेक्षाकृत मिश्रित रहा है।
- यद्यपि आयोग ने कई नवाचारी पहलें शुरू की हैं और अनेक विज़न दस्तावेज जारी किए हैं, फिर भी नीतिगत मुद्दों पर इसका प्रत्यक्ष प्रभाव सीमित रहा है।
- इसका मुख्य कारण आयोग के सामने उपस्थित संरचनात्मक सीमाएँ (जैसे वित्तीय शक्तियों का अभाव) और परिस्थितिजन्य चुनौतियाँ (जैसे मंत्रालयों पर कार्यान्वयन की निर्भरता) मानी जाती हैं।
नीति आयोग की महत्वपूर्ण उपलब्धियाँ
1. सहकारी संघवाद को प्रोत्साहन
नीति आयोग ने केंद्र और राज्य सरकारों के बीच सेतु के रूप में कार्य किया है और क्षेत्रीय प्राथमिकताओं को राष्ट्रीय लक्ष्यों के अनुरूप ढालने के लिए सहयोग को बढ़ावा दिया है।
- टीम इंडिया हब के माध्यम से सभी राज्यों को एक साझा राष्ट्रीय विकास एजेंडे की दिशा में कार्य करने हेतु प्रेरित किया गया।
- आकांक्षी जिला कार्यक्रम (ADP) के तहत संबंधित मंत्रालयों और विकास भागीदारों के सहयोग से देश के 112 अल्प-विकसित जिलों के सामाजिक-आर्थिक संकेतकों में सुधार का प्रयास किया गया।
2. सुदृढ़ प्रतिस्पर्धात्मक संघवाद
नीति आयोग ने डेटा-आधारित, पारदर्शी सूचकांकों और रैंकिंग प्रणालियों के माध्यम से राज्यों के बीच स्वस्थ प्रतिस्पर्धा को प्रोत्साहित किया।
उदाहरण:
- राजकोषीय स्वास्थ्य सूचकांक
- समग्र जल प्रबंधन सूचकांक
- राज्य ऊर्जा एवं जलवायु सूचकांक
- आकांक्षी जिला कार्यक्रम की डेल्टा रैंकिंग
3. शासन एवं नीतिगत सलाह
- एक थिंक टैंक के रूप में नीति आयोग ने दीर्घकालिक रणनीतिक नीतियों पर सरकार को सलाह दी और वित्तीय आवंटन-केंद्रित दृष्टिकोण से हटकर नीतिगत परामर्श पर जोर दिया।
इससे विकेंद्रीकृत और परिणाम-आधारित शासन को बढ़ावा मिला।
- उदाहरण के लिए, नीति आयोग ने राज्यों में State Institute for Transformation (SITs) की स्थापना में सहयोग किया, जिससे नीति कार्यान्वयन और सुशासन को मजबूती मिली।
नीति आयोग की पहलें, रिपोर्ट्स और सूचकांक
(A) प्रमुख पहलें
- अटल नवाचार मिशन (Atal Innovation Mission)
- नेशनल डेटा एंड एनालिटिक्स प्लेटफॉर्म (NDAP)
- आकांक्षी जिला कार्यक्रम (Aspirational Districts Programme)
- महिला उद्यमशीलता प्लेटफॉर्म
(B) हालिया रिपोर्ट्स
- SAFE (Secure and Affordable Accommodation) रिपोर्ट
- Enhancing Domestic Coking Coal Availability to Reduce the Import of Coking Coal
- Pathways and Strategies for Accelerating Growth in Edible Oils towards Atmanirbharta
- साथ-ई (SATH-E) रिपोर्ट
(C) प्रमुख सूचकांक
- SDG इंडिया इंडेक्स
- संयुक्त जल प्रबंधन सूचकांक (Composite Water Management Index)
- राज्य स्वास्थ्य सूचकांक (State Health Index)
- भारत नवाचार सूचकांक (India Innovation Index)
नवाचार, उद्यमिता और डिजिटल रूपांतरण को बढ़ावा
- नीति आयोग ने नवाचार, उद्यमिता तथा डिजिटल रूपांतरण को प्रोत्साहित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।
- अटल नवाचार मिशन के अंतर्गत अटल टिंकरिंग लैब्स (ATLs) और अटल इन्क्यूबेशन सेंटर्स (AICs) की स्थापना के माध्यम से छात्रों और स्टार्ट-अप्स में नवाचार संस्कृति को बढ़ावा दिया गया।
- इसके अतिरिक्त, नॉलेज एंड इनोवेशन हब के माध्यम से नीति-निर्माण को शोध एवं ज्ञान आधारित बनाया गया।
- नेशनल डेटा एंड एनालिटिक्स प्लेटफॉर्म (NDAP) ने विभिन्न सरकारी डेटा स्रोतों को एकीकृत कर डेटा-आधारित नीति-निर्णय को सशक्त किया।
- डिजिटल भुगतान के लिए रोडमैप जैसी पहलों के माध्यम से नीति आयोग ने डिजिटल अर्थव्यवस्था और फिनटेक इकोसिस्टम को भी समर्थन प्रदान किया।
क्षेत्रीय और अंतर-क्षेत्रक सामाजिक पहलें
- नीति आयोग ने क्षेत्रीय असमानताओं और सामाजिक चुनौतियों को संबोधित करने के लिए कई क्षेत्रीय एवं अंतर-क्षेत्रक पहलें शुरू की हैं।
- उदाहरण के लिए, पूर्वोत्तर क्षेत्र के लिए नीतिगत फोरम के माध्यम से इस क्षेत्र की विशिष्ट विकास आवश्यकताओं पर ध्यान केंद्रित किया गया।
- साथ-ई (SATH-E) पहल के अंतर्गत राज्यों के साथ साझेदारी कर शिक्षा और स्वास्थ्य जैसे महत्वपूर्ण सामाजिक क्षेत्रकों में सुधार हेतु मार्गदर्शन प्रदान किया गया।
- इसी प्रकार, पोषण अभियान, राज्य स्वास्थ्य सूचकांक तथा स्कूल शिक्षा गुणवत्ता सूचकांक जैसी पहलों के माध्यम से नीति आयोग ने मानव विकास संकेतकों में सुधार पर विशेष बल दिया।
सतत विकास लक्ष्यों (SDGs) की निगरानी और क्रियान्वयन
- नीति आयोग को भारत में सतत विकास लक्ष्यों (SDGs) की निगरानी और उनके क्रियान्वयन का नोडल दायित्व सौंपा गया है।
- इस भूमिका के अंतर्गत आयोग ने SDGs के अनुरूप देश की विकास योजनाओं और कार्यक्रमों को समन्वित करने में महत्वपूर्ण योगदान दिया है।
- एसडीजी इंडिया इंडेक्स के माध्यम से राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों के प्रदर्शन का आकलन किया जाता है, जिससे SDGs के प्रति जवाबदेही, पारदर्शिता और सुधार की प्रवृत्ति को बढ़ावा मिलता है।
प्रतिस्पर्धी संघवाद को बढ़ावा देने में सूचकांकों की भूमिका
- नीति आयोग ने भारत में प्रतिस्पर्धी संघवाद को प्रोत्साहित करने के लिए विभिन्न सूचकांकों और रैंकिंग प्रणालियों का प्रभावी उपयोग किया है।
- SDG इंडिया इंडेक्स, राज्य स्वास्थ्य सूचकांक और स्कूली शिक्षा गुणवत्ता सूचकांक जैसे उपकरण राज्यों को प्रमुख सामाजिक और आर्थिक क्षेत्रकों में अपने प्रदर्शन में सुधार करने हेतु प्रेरित करते हैं।
- ये सूचकांक एक स्वस्थ प्रतिस्पर्धी वातावरण का निर्माण करते हैं, जहाँ राज्य बेहतर रैंकिंग प्राप्त करने के लिए सर्वोत्तम पद्धतियों को अपनाने, नवाचार करने तथा अपने शासन ढाँचे में सुधार करने के लिए प्रेरित होते हैं।
- इस प्रकार, सूचकांक-आधारित मूल्यांकन ने नीति आयोग को सहकारी के साथ-साथ प्रतिस्पर्धात्मक संघवाद का प्रभावी वाहक बना दिया है।
नीति आयोग के समक्ष चुनौतियाँ
नीति आयोग को भारत में नीति-निर्माण के एक प्रमुख थिंक टैंक के रूप में स्थापित किया गया था, किंतु इसके कार्यों और प्रभावशीलता के समक्ष कई संरचनात्मक, संस्थागत और कार्यात्मक चुनौतियाँ बनी हुई हैं।
संरचनात्मक चुनौतियाँ (Structural Challenges)
1. बजटीय शक्तियों का अभाव
- योजना आयोग के विपरीत, नीति आयोग के पास राज्यों की योजनाओं को स्वीकृत करने या संसाधन आवंटन को प्रत्यक्ष रूप से प्रभावित करने की कोई वित्तीय शक्ति नहीं है।
- इस कारण राज्यों के साथ सार्थक संवाद स्थापित करने और अपनी नीतिगत सिफारिशों को लागू कराने की इसकी क्षमता कमजोर पड़ जाती है।
2. केवल परामर्शदाता की भूमिका
- नीति आयोग की सिफारिशें मंत्रालयों या राज्य सरकारों पर बाध्यकारी नहीं होतीं, जिससे उनकी कार्यान्वयन क्षमता और समग्र प्रभावशीलता सीमित हो जाती है।
- उदाहरण के लिए, “Strategy for New India @75” और “तीन-वर्षीय कार्य एजेंडा” जैसे विज़न दस्तावेज अपेक्षित नीतिगत प्रभाव नहीं डाल सके।
- इसका एक कारण यह भी रहा कि इन्हें सीमित सार्वजनिक परामर्श के साथ तैयार किया गया और प्रमुख हितधारकों की राय पर्याप्त रूप से शामिल नहीं की गई।
3. केंद्रीकृत संरचना
- हालाँकि नीति आयोग का अधिदेश सहकारी संघवाद को बढ़ावा देना है, फिर भी इसकी आंतरिक संरचना अपेक्षाकृत केंद्रीकृत बनी हुई है।
- इसके परिणामस्वरूप राज्यों का सहयोग स्तर अलग-अलग रहता है, जो प्रभावी नीति कार्यान्वयन में बाधा उत्पन्न करता है।
4. राजनीतिकरण का जोखिम
- नीति आयोग को लेकर यह चिंता भी व्यक्त की जाती रही है कि यह कभी-कभी एक “गौरवान्वित अनुशंसात्मक संस्था” (glorified recommendatory body) के रूप में देखा जाता है, जिसकी वास्तविक परिवर्तनकारी क्षमता सीमित है।इससे इसके राजनीतिकरण और स्वतंत्र नीतिगत भूमिका पर प्रश्नचिह्न लगते हैं।
संस्थागत चुनौतियाँ (Institutional Challenges)
1. स्वायत्तता पर कथित बाधाएँ
- सरकार की संरचना में नीति आयोग के घनिष्ठ एकीकरण के कारण यह धारणा बनती है कि निष्पक्ष और स्वतंत्र नीतिगत सलाह देने में इसकी स्वायत्तता सीमित हो सकती है।
- उदाहरण के तौर पर, इसकी सिफारिशों का प्रचलित राजनीतिक एजेंडे के साथ अत्यधिक निकटता से जुड़ा होना कई बार आलोचना का विषय बना है।
2. अंतर-मंत्रालयी समन्वय
- नीति आयोग के समक्ष यह एक बड़ी चुनौती है कि उसकी रणनीतिक दिशा-निर्देशों को विभिन्न मंत्रालयों की विविध प्राथमिकताओं के साथ प्रभावी रूप से संरेखित किया जाए।
- उदाहरणस्वरूप, कई बार मंत्रालयों के वार्षिक बजट को नीति आयोग के दीर्घकालिक विज़न दस्तावेजों के अनुरूप ढालना कठिन सिद्ध होता है।
3. हितधारक सहभागिता
- राज्य सरकारों, उद्योग जगत और नागरिक समाज के बीच सहमति बनाना और व्यापक समर्थन सुनिश्चित करना नीति आयोग के लिए एक सतत चुनौती है।
- उदाहरण के लिए, प्रस्तावित कृषि या भूमि सुधारों पर कुछ राज्य सरकारों का विरोध नीतिगत सहमति की कमी को दर्शाता है।
कार्यात्मक चुनौतियाँ (Functional Challenges)
1. प्राथमिकता निर्धारण और संसाधन आवंटन
- नीति आयोग को प्रत्यक्ष वित्तीय अधिदेश के बिना नीतिगत क्षेत्रों को प्राथमिकता देनी और संसाधन आवंटन को अप्रत्यक्ष रूप से प्रभावित करना होता है, जो इसकी प्रभावशीलता को सीमित करता है।
- उदाहरण के लिए, GST स्लैब संशोधनों पर प्रत्यक्ष अधिकार के अभाव में इसका राजकोषीय नीति पर प्रभाव सीमित रहता है।
2. निगरानी और मूल्यांकन तंत्र की कमजोरी
- नीति आयोग के समक्ष एक चुनौती यह भी है कि वह नीतियों और पहलों की प्रगति पर सटीक निगरानी रखे और उनके वास्तविक प्रभाव का आकलन कर सके।
- सामाजिक-आर्थिक संकेतकों में सुधार का श्रेय केवल नीति आयोग की पहलों को देना अक्सर कठिन होता है।
3. प्रभाव का संप्रेषण
- नीति आयोग को अपनी उपलब्धियों और मूल्य प्रस्ताव (Value Proposition) को जनता के समक्ष प्रभावी ढंग से प्रस्तुत करने की चुनौती का भी सामना करना पड़ता है।
- प्रत्यक्ष वित्तीय उत्तरदायित्व निभाने वाले पारंपरिक मंत्रालयों की तुलना में नीति आयोग की विशिष्ट भूमिका को लेकर जन-सामान्य में भ्रम बना रहता है।
आगे की राह : नीति आयोग 2.0
नीति आयोग को एक अधिक प्रभावी, परिणामोन्मुख और परिवर्तनकारी संस्था के रूप में विकसित करने के लिए इसे “नीति आयोग 2.0” के रूप में पुनर्कल्पित करना आवश्यक है। इसके लिए निम्नलिखित प्रमुख सुधारों की आवश्यकता है—
1. सांविधिक (वैधानिक) दर्जा प्रदान करना
- नीति आयोग को एक वैधानिक दर्जा दिया जाना चाहिए ताकि उसकी भूमिका और अधिकार स्पष्ट एवं संस्थागत रूप से सुदृढ़ हो सकें।
- इसके साथ ही, इसकी नेतृत्व टीम को कैबिनेट मंत्री का दर्जा प्रदान किया जाना चाहिए, जिससे आयोग की नीतिगत सलाह को सरकारी निर्णय-निर्माण प्रक्रिया में अधिक गंभीरता से शामिल किया जा सके।
2. अनुसंधान क्षमता को मजबूत करना
- नीति आयोग की प्रभावशीलता बढ़ाने के लिए बाहरी सलाहकारों पर निर्भरता कम की जानी चाहिए और घरेलू अनुसंधान क्षमता को सुदृढ़ किया जाना चाहिए।
- इसके लिए शीर्ष क्षेत्रीय एवं विषय-विशेषज्ञों की नियुक्ति की जानी चाहिए तथा उच्च गुणवत्ता, समयबद्ध और विश्वसनीय डेटा तक पहुँच को बेहतर बनाया जाना चाहिए।
3. परिणाम-आधारित मूल्यांकन प्रणाली
- नीतिगत हस्तक्षेपों के वास्तविक प्रभाव को सुनिश्चित करने के लिए एक मजबूत और स्वतंत्र परिणाम-आधारित मूल्यांकन प्रणाली स्थापित की जानी चाहिए।
- नीति आयोग को सीमित निरीक्षण एवं निगरानी अधिकार प्रदान किए जाने चाहिए, ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि उसकी नीतिगत सिफारिशें प्रभावी ढंग से लागू हो रही हैं।
4. सीमित वित्तीय प्रभाव और बजटीय शक्तियाँ
- राज्यों को प्रोत्साहित करने और नीति आयोग की सलाह को गंभीरता से लिए जाने के लिए इसे सीमित बजटीय शक्तियों से सशक्त बनाया जाना चाहिए।
- विशेष रूप से, व्यय पर “अनुमोदन की शक्ति” (Approval Power) प्रदान की जानी चाहिए, जिससे नीतिगत सुझावों और संसाधन आवंटन के बीच बेहतर तालमेल स्थापित हो सके।
5. दीर्घकालिक रूपरेखाओं का विकास
- नीति आयोग को 2047 तक का दीर्घकालिक राष्ट्रीय दृष्टिकोण विकसित करना चाहिए, साथ ही मध्यावधि SDG लक्ष्यों को स्पष्ट रूप से निर्धारित करना चाहिए।
- इसके अतिरिक्त, पाँच वर्षीय योजनाओं के आधुनिक स्वरूप तैयार करने और एक एकीकृत राष्ट्रीय वित्तीय ढाँचे के निर्माण में नेतृत्वकारी भूमिका निभानी चाहिए।
6. सहकारी संघवाद को और सुदृढ़ करना
- नीति आयोग को राज्यों के साथ समन्वय और संवाद की गुणवत्ता में सुधार करना चाहिए तथा क्षेत्रीय असंतुलनों को सक्रिय रूप से दूर करने की दिशा में कार्य करना चाहिए।
- केंद्र प्रायोजित योजनाओं को सुव्यवस्थित करते हुए प्रमुख राष्ट्रीय पहलों के लिए 100% केंद्रीय वित्तपोषण की व्यवस्था की जा सकती है, जिससे राज्यों पर वित्तीय बोझ कम हो और नीति क्रियान्वयन प्रभावी बने।