New
GS Foundation (P+M) - Delhi : 20th Nov., 11:30 AM Diwali Special Offer UPTO 75% + 10% Off, Valid Till : 22nd Oct., 2025 GS Foundation (P+M) - Prayagraj : 03rd Nov., 11:00 AM Diwali Special Offer UPTO 75% + 10% Off, Valid Till : 22nd Oct. 2025 GS Foundation (P+M) - Delhi : 20th Nov., 11:30 AM GS Foundation (P+M) - Prayagraj : 03rd Nov., 11:00 AM

बैंकिंग उद्योग में औद्योगिक घरानों के प्रवेश की सिफारिश : सम्बंधित चिंताएँ

(प्रारम्भिक परीक्षा- राष्ट्रीय महत्त्व की सामयिक घटनाएँ)
(मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र- 3 : भारतीय अर्थव्यवस्था तथा औद्योगिक नीति में परिवर्तन आदि)

चर्चा में क्यों?

हाल ही में, भारतीय रिज़र्व बैंक के आंतरिक कार्यदल (IWG) ने बड़े कॉर्पोरेट/औद्योगिक घरानों को बैंक लाइसेंस देने सिफारिश की है। आई.डब्ल्यू.जी. का गठन ‘भारतीय निजी क्षेत्र के बैंकों के लिये मौजूदा स्वामित्व, दिशानिर्देशों और कॉर्पोरेट संरचना की समीक्षा’ के लिये किया गया था।

बैंकिंग उद्योग में औद्योगिक घरानों के प्रवेश के विचार की पृष्ठभूमि

  • कॉर्पोरेट घरानों को बैंकिंग क्षेत्र में अनुमति देने का विचार नया नहीं है। फरवरी 2013 में आर.बी.आई. ने औद्योगिक घरानों को भी बैंकिंग लाइसेंस के लिये आवेदन करने की अनुमति देने के लिये दिशानिर्देश जारी किये थे।
  • हालाँकि, इसके लिये कुछ आवेदन प्राप्त होने के बावजूद अंततः किसी भी कॉर्पोरेट घराने को बैंक लाइसेंस नहीं दिया गया और केवल दो संस्थाएँ आई.डी.एफ.सी. और बंधन फाइनेंशियल सर्विसेज लाइसेंस के योग्य पाई गईं।
  • वर्ष 2014 में आर.बी.आई. ने कॉर्पोरेट घरानों के बैंकिंग क्षेत्र में प्रवेश को पुन: रोक दिया। इस विषय पर आर.बी.आई. की स्थिति वर्ष 2014 से अपरिवर्तित ही रही है। विदित है कि वर्ष 2014 में आर.बी.आई. के गवर्नर रघुराम राजन थे।
  • इससे पूर्व वर्ष 2008 में रघुराम राजन की अध्यक्षता वाली ‘वित्तीय क्षेत्र सुधार समिति’ के अनुसार औद्योगिक घरानों को बैंकिंग की अनुमति देना अपरिपक्वता है और यह वर्तमान स्थिति के अनुरूप नहीं है।

जोखिम की चिंता

  • आंतरिक कार्यदल की रिपोर्ट कॉर्पोरेट घरानों के बैंकिंग उद्योग में प्रवेश के लाभ और हानि की तुलना करती है। तर्क है कि कॉर्पोरेट घरानों के प्रवेश से बैंकिंग क्षेत्र में पूंजी और विशेषज्ञता का प्रवाह होगा। विश्व भर में कई जगह पर कॉर्पोरेट घरानों को बैंकिंग उद्योग में प्रवेश की अनुमति प्राप्त है।
  • हालाँकि, नकारात्मक जोखिम की समस्या अत्यधिक चिंता का विषय है। प्रमुख चिंता अंत:सम्बद्ध व पारस्परिक उधारी (Interconnected Lending), आर्थिक शक्ति के संकेंद्रण और अर्थव्यवस्था के वाणिज्यिक क्षेत्रों के लिये बैंकों (जमा की गारंटी के माध्यम से) को प्रदान किये गए सुरक्षा जाल का जोखिम है।
  • ‘इंटरकनेक्टेड लेंडिंग’ एक ऐसी स्थिति को संदर्भित करता है जहाँ किसी बैंक का प्रमोटर स्वयं उधारकर्ता भी होता है और इस प्रकार, एक प्रमोटर के लिये जमाकर्ताओं के धन को स्वयं के उपक्रम के लिये उपयोग करना सम्भव हो जाता है। इसके हालिया उदाहरण आई.सी.आई.सी.आई, यस बैंक व डी.एच.एफ.एल. आदि हैं।
  • इंटरकनेक्टेड लेंडिंग को ट्रेस करना भी एक चुनौती है। साथ ही, कॉरपोरेट घराने कानून प्रवर्तन एजेंसियों के कार्यों में बाधा डालने के लिये अपनी राजनीतिक पहुँच का भी प्रयोग कर सकते हैं।
  • एक मुद्दा आर.बी.आई. द्वारा इंटरकनेक्‍टेड लेंडिंग पर रोक लगाने से सम्बंधित प्रतिक्रिया से सम्बंधित है। आर.बी.आई. द्वारा की जाने वाली कोई भी कार्रवाई सम्बंधित बैंक से जमा राशि की निकासी और इसकी विफलता का कारण बन सकती है।
  • इसके अतिरिक्त आर.बी.आई. केवल पूर्व में दिये गए ऋण पर ही कोई कार्रवाई कर सकता है अतः इसमें इस तरह के जोखिम को रोक पाने की सम्भावना लगभग न के बराबर है।
  • कॉर्पोरेट घराने स्वयं के व्यवसायों के लिये बैंकों को आसानी से धन के एक स्रोत में बदल सकते हैं। साथ ही, सहयोगियों को लाभ पहुँचाने के लिये वे अपने अनुसार धनराशि का इस्तेमाल कर सकते हैं।
  • इसके अतिरिक्त, बैंकों को किसी कॉर्पोरेट घराने से जोड़ने से आर्थिक शक्ति के संकेन्द्रण में वृद्धि होगी।

नियामक की साख

  • शक्तिशाली कॉर्पोरेट घरानों के खिलाफ नियामक संस्थाओं को खड़ा करने से उनकी छवि को नुकसान हो सकता है। नियामकों पर नियमों से समझौता करने का काफी दबाव होगा और इस प्रक्रिया में इसकी विश्वसनीयता को आघात पहुँचेगा।
  • ऐसे कई कॉर्पोरेट घराने हैं जो पहले से ही गैर-बैंकिंग वित्तीय कम्पनियों (NBFC) के माध्यम से बैंकिंग गतिविधियों में संलग्न हैं। वर्तमान नीति के तहत 10 वर्ष के सफल ट्रैक रिकॉर्ड वाले एन.बी.एफ.सी. को बैंकों में बदलने की अनुमति है। यह कॉर्पोरेट घरानों के बैंकिंग में प्रवेश करने का एक आसान मार्ग है।
  • कॉर्पोरेट घराने द्वारा किसी बैंक के स्वामित्व और एन.बी.एफ.सी. के स्वामित्व में काफी अंतर होता है। बैंक का स्वामित्व सार्वजनिक सुरक्षा नेट तक पहुँच प्रदान करता है जबकि एन.बी.एफ.सी. के स्वामित्व में ऐसा नहीं है। बैंक स्वामित्व द्वारा प्राप्त पहुँच और शक्ति एन.बी.एफ.सी. की तुलना में काफी अधिक होती है। अत: दोनों के संचालनगत अंतर को भी ध्यान में रखा जाना चाहिये।

निजीकरण की ओर इशारा

  • कॉर्पोरेट घरानों के लिये वास्तविक आकर्षण सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों के अधिग्रहण की सम्भावना से सम्बंधित है, जिनकी साख हाल के वर्षों में खराब हुई है।
  • सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों को पूंजी की आवश्यकता है जिसे सरकार प्रदान करने में असमर्थ है। इस प्रकार बैंकिंग उद्योग में कॉर्पोरेट घरानों का प्रवेश निजीकरण की सम्भावना में वृद्धि करेगा।
  • सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों को कॉर्पोरेट घरानों को बेचने या उसकी हिस्सेदारी में वृद्धि होने से वित्तीय स्थिरता को लेकर गम्भीर चिंताएँ उत्पन्न हो सकती हैं।

निष्कर्ष

कॉर्पोरेट घरानों को बैंकिंग क्षेत्र में प्रवेश देने से पहले आर.बी.आई. से अंत:सम्बद्ध व पारस्परिक ऋणों से निपटने के लिये एक कानूनी ढाँचे से सुसज्जित होना होगा। भारत के संदर्भ में इंटरकनेक्टेड लेंडिंग के जोखिमों से निपटने के लिये कानूनी ढाँचे के निर्माण और निगरानी तंत्र के साथ-साथ अतिरिक्त उपायों की भी आवश्यकता है। कॉर्पोरेट घरानों के लेन-देन की निगरानी के लिये विभिन्न कानून प्रवर्तन एजेंसियों को और अधिक मज़बूत और एकीकृत किये जाने की आवश्यकता है।

« »
  • SUN
  • MON
  • TUE
  • WED
  • THU
  • FRI
  • SAT
Have any Query?

Our support team will be happy to assist you!

OR
X