भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) की हालिया वित्तीय स्थिरता रिपोर्ट (FSR) के अनुसार, भारतीय अर्थव्यवस्था सतत गति से विकास कर रही है और वैश्विक आर्थिक परिवेश की अनिश्चितताओं के बावजूद विश्व अर्थव्यवस्था की प्रमुख प्रेरक शक्ति बनी हुई है। यह उपलब्धि सुदृढ़ संरचनात्मक मूल तत्वों एवं विवेकपूर्ण नीतिगत निर्णयों का परिणाम है।
रिपोर्ट से संबंधित प्रमुख बिंदु
रिज़र्व बैंक की इस अर्ध-वार्षिक मूल्यांकन के अनुसार वैश्विक आर्थिक अनिश्चितताओं व चुनौतियों के बावजूद भारतीय अर्थव्यवस्था मजबूत मैक्रोइकॉनॉमिक आधारों और सतर्क नीतियों के कारण वैश्विक विकास में महत्वपूर्ण योगदान दे रही है। अर्थव्यवस्था की यह स्थिरता निम्नलिखित कारकों पर आधारित है:
- मजबूत वित्तीय प्रणाली : भारतीय वित्तीय प्रणाली स्थिर बनी हुई है, जिसमें बैंकों एवं गैर-बैंकिंग वित्तीय संस्थानों (NBFCs) के पास स्वस्थ बैलेंस शीट्स हैं।
- अनुसूचित वाणिज्यिक बैंकों (SCBs) की स्थिति मजबूत पूंजी बफर, दशकों में सबसे कम गैर-निष्पादित परिसंपत्ति (NPA) अनुपात और मजबूत आय के कारण बेहतर हुई है।
- मौद्रिक नीति का समर्थन : उदार मौद्रिक नीति एवं वित्तीय बाजारों में कम अस्थिरता ने वित्तीय परिस्थितियों को अधिक आसान बनाया है। कॉरपोरेट बैलेंस शीट्स की मजबूती ने समग्र मैक्रोइकॉनॉमिक स्थिरता को और समर्थन दिया है।
- विनियामक उपाय : शहरी सहकारी बैंकों (UCBs) एवं NBFCs ने अपनी पूंजी स्थिति को मजबूत किया है। जीवन व गैर-जीवन बीमा कंपनियों के समेकित सॉल्वेंसी अनुपात न्यूनतम आवश्यकताओं से अधिक हैं।
- म्यूचुअल फंड्स एवं क्लियरिंग कॉरपोरेशन्स के तनाव परीक्षणों ने भी इनके लचीलेपन को सिद्ध किया है।
वैश्विक चुनौतियाँ एवं जोखिम
रिपोर्ट में वैश्विक आर्थिक व व्यापार नीति अनिश्चितताओं को प्रमुख जोखिम के रूप में चिह्नित किया गया है। ये जोखिम निम्नलिखित हैं:
- वित्तीय बाजारों में अस्थिरता : विशेष रूप से प्रमुख सरकारी बॉन्ड बाजारों में अस्थिरता, नीतिगत एवं भू-राजनीतिक बदलावों से प्रेरित है।
- उच्च सार्वजनिक ऋण स्तर : वैश्विक स्तर पर बढ़ते सार्वजनिक ऋण और परिसंपत्ति का उच्च मूल्यांकन (Valuation) नए आघातों को बढ़ा सकती है।
- भू-राजनीतिक संघर्ष एवं पूंजी प्रवाह : भू-राजनीतिक तनाव, पूंजी का बहिर्वाह एवं व्यापार व्यवधान घरेलू वित्तीय स्थिरता के लिए निकट अवधि के जोखिम हैं।