पोप लियो ने ‘गॉड इन्फ्लुन्सर’ के रूप में जाने जाने वाले किशोर ‘कार्लो एक्यूटिस’ को पहला मिलेनियल संत घोषित किया है।
इसके अतिरिक्त पोप ने पियर जियोर्जियो फ्रैसाती को भी संत घोषित किया है जिनका वर्ष 1924 में निधन हो गया था, जिन्हें उनके धर्मार्थ कार्यों के लिए व्यापक रूप से जाना जाता था।
कार्लो एक्यूटिस के बारे में
एक्यूटिस का जन्म वर्ष 1991 में लंदन में हुआ था किंतु वे अपने जीवन के शुरुआती दिनों में अपने परिवार के साथ उत्तरी इटली के मिलान शहर चले गए।
वर्ष 2006 में 15 वर्ष की आयु में कार्लो एक्यूटिस की ल्यूकेमिया से मृत्यु हो गई थी। उन्होंने कैथोलिक धर्म के बारे में जागरूकता फैलाने के लिए अपने कंप्यूटिंग कौशल का इस्तेमाल किया और चमत्कारों की रिपोर्ट दर्ज करने वाली एक वेबसाइट बनाई।
उन्हें डिजिटल दुनिया में चर्च के प्रचार प्रयासों के अग्रदूत के रूप में देखा जाता है। एक भरोसेमंद संत के रूप में युवाओं के बीच उनकी वैश्विक लोकप्रियता बढ़ गई है।
इनके चमत्कारी कार्यों के बारे में पॉप फ्रांसिस ने अपने मृत्यु से पूर्व ही कैथोलिक चर्च को जानकारी दी थी।
संत घोषित करने की प्रक्रिया (कैननाइजेशन)
ईश्वर का सेवक :स्थानीय बिशप उम्मीदवार के जीवन, लेखन एवं सद्गुणों की जाँच करता है।
आदरणीय या श्रद्धेय :वेटिकन के संतों के लिए गठित धर्मसंघ समीक्षा करता है तथा पोप उम्मीदवार को ‘सद्गुण’ के साथ जीवन जीने की घोषणा करता है।
मोक्ष की प्राप्ति : एक चमत्कार के प्रमाण की आवश्यकता होती है (शहीदों के मामले को छोड़कर)। व्यक्ति को ‘धन्य’ कहा जाता है।
कैननाइजेशन (संतत्व) :एक दूसरे सत्यापित चमत्कार की आवश्यकता होती है। पोप आधिकारिक तौर पर व्यक्ति को संत घोषित करते हैं जिससे सार्वभौमिक सम्मान की अनुमति मिलती है।
एक्यूटिस ने कथित तौर पर एक ब्राज़ीलियाई लड़के और कोस्टा रिका की एक लड़की को अपने चमत्कारिक प्रभावों से ठीक किया था।
महत्त्व
डिजिटल संस्कृति से जुड़ी धार्मिक भक्ति के एक नए रूप की मान्यता का प्रतिनिधित्व करता है।
युवा पीढ़ी से जुड़ने के कैथोलिक चर्च के प्रयास को दर्शाता है।
प्रतीकात्मक बदलाव :यह स्वीकार करता है कि संतत्व साधारण आधुनिक जीवन से भी उभर सकता है।