चर्चा में क्यों?
जर्मनी 1990 के बाद पहली बार जापान को पीछे छोड़ते हुए दुनिया का सबसे बड़ा शुद्ध ऋणदाता बन गया।

प्रमुख बिंदु:
- जापान के रिकॉर्ड-उच्च शुद्ध बाह्य परिसंपत्तियों तक पहुँचने के बावजूद,जर्मनी ने विकास और मूल्यांकन में इसे पीछे छोड़ दिया।
- मुद्रा में उतार-चढ़ाव और व्यापार अधिशेष ने इस उलटफेर में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
शुद्ध बाह्य परिसंपत्तियाँ क्या होती हैं?
- सूत्र:
- शुद्ध बाह्य परिसंपत्तियाँ = देश की विदेशी परिसंपत्तियाँ − विदेशियों की घरेलू परिसंपत्तियाँ
- इसमें शामिल: विदेशी निवेश, बांड, शेयर, संपत्ति आदि।
जर्मनी के शीर्ष पर पहुँचने के कारण
- चालू खाता अधिशेष
- 2024 में €240 बिलियन (~$250 बिलियन)।
- निर्यात की तुलना में आयात में अधिक गिरावट।
- मुद्रा लाभ
- यूरो में ~5% वृद्धि (जापानी येन के मुकाबले)।
- जर्मनी की परिसंपत्तियाँ अधिक मूल्यवान दिखीं।
- यूरोजोन लाभ
- आर्थिक स्थिरता और व्यापारिक छत्र से समर्थन।
- तरल विदेशी परिसंपत्तियों में निवेश (बांड, इक्विटी)।
जापान के पीछे खिसकने के कारण
- कमजोर येन
- कम ब्याज दरों की वजह से विनिमय दर में घाटा।
- घरेलू सुस्ती
- आर्थिक ठहराव ने निवेश आकर्षण घटाया।
- अधिक निवेश लंबी अवधि की विदेशी परिसंपत्तियों में।
- 2024 आँकड़े
- जापान की शुद्ध परिसंपत्तियाँ: ¥533 ट्रिलियन ($3.7 ट्रिलियन)।
- जर्मनी की: ¥569 ट्रिलियन ($3.9 ट्रिलियन)।
- जापान का चालू खाता अधिशेष: ¥30 ट्रिलियन (~€180 बिलियन)।
जापान की संरचनात्मक चुनौतियाँ
- वृद्ध जनसंख्या: अधिक बचत, कम घरेलू निवेश।
- सतर्क निवेश: कम जोखिम वाली परिसंपत्तियाँ पसंद।
- कॉर्पोरेट रणनीति: प्रत्यक्ष विदेशी निवेश से तरलता में कमी।
जर्मनी के समक्ष जोखिम
- निर्यात-निर्भर अर्थव्यवस्था।
- अमेरिकी टैरिफ के प्रति संवेदनशीलता, विशेषकर ऑटोमोबाइल सेक्टर।
प्रश्न: जर्मनी किस वर्ष के बाद पहली बार दुनिया का सबसे बड़ा शुद्ध ऋणदाता बना है?
(a) 1980
(b) 1990
(c) 2000
(d) 1995
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