हाल ही में झारखंड के जमशेदपुर स्थित प्राणि उद्यान में संदिग्ध रक्तस्रावी सेप्टीसीमिया (Haemorrhagic Septicaemia) के कारण दस काले हिरणों (कृष्णमृग) की मौत हो गई।
रक्तस्रावी सेप्टिसीमिया को पास्चरेलोसिस (Pasteurellosis) के नाम से भी जाना जाता है। यह एक जीवाणुजनित रोग है जो पास्चरेला मल्टोसिडा (Pasteurella Multocida) के कुछ सीरोटाइप के कारण होता है।
इन प्रजातियों में रोग से संबद्ध पी. मल्टोसिडा के दो सामान्य सीरोटाइप ‘टाइप B:2’ (एशिया में) और E:2 (अफ्रीका में) हैं।
ये भौगोलिक दृष्टि से एशिया, अफ्रीका, मध्य-पूर्व एवं दक्षिणी यूरोप के कुछ क्षेत्रों तक ही सीमित हैं।
यह मवेशियों एवं भैंसों में होने वाला एक प्रमुख रोग है जो तीव्र व अत्यधिक घातक सेप्टीसीमिया के साथ उच्च रुग्णता व मृत्यु दर का कारण बनता है। दोनों प्रजातियों में वृद्ध जानवरों की तुलना में युवा एवं प्रौढ़ जानवर अधिक संवेदनशील होते हैं।
इस रोग के रोगाणु आर्द्र एवं जलभराव वाली स्थितियों में अधिक समय तक जीवित रहते हैं। यह सीधे संपर्क के दौरान या दूषित भोजन एवं पानी जैसे फोमाइट्स के माध्यम से अंतर्ग्रहण या साँस द्वारा संचारित हो सकता है।
रक्तस्रावी सेप्टिसीमिया के लक्षण
इस रोग में जानवर सुस्त हो जाते हैं और उन्हें तेज़ बुखार हो जाता है। वे आहार (चारा) नहीं ग्रहण करते हैं और सामान्य से आधिक लार निकलने लगती है।
प्राय: एवं तेजी से सूजन का विस्तार होता है जो विशेषकर गले, छाती के ऊपरी हिस्से में, गर्दन के नीचे की त्वचा में और कभी-कभी सिर के आसपास वाले क्षेत्र को प्रभावित करता है।
इसके उपचार के लिए टीके उपलब्ध हैं। इस रोग की शुरुआत के तुरंत बाद अंतःशिरा द्वारा दिया जाने वाला रोगाणुरोधी उपचार मृत्यु दर को कम कर सकता है।