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हड़प्पाई स्थल लोथल

प्रारम्भिक परीक्षा 

(भारत का इतिहास)

मुख्य परीक्षा

(सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र-1 : भारतीय विरासत एवं संस्कृति, भारतीय संस्कृति में प्राचीन काल से आधुनिक काल तक के कला के रूप, साहित्य व वास्तुकला के मुख्य पहलू)

संदर्भ 

  • आईआईटी (IIT) गांधीनगर के एक नए अध्ययन में हड़प्पा स्थल लोथल में एक गोदी-बाड़ा (Dockyard) के अस्तित्व की पुष्टि हुई है। 
  • 1950 के दशक में लोथल की खोज के बाद इस स्थान पर मौजूद गोदी-बाड़ा के अस्तित्व को लेकर पुरातत्वविदों में हमेशा से मतभेद रहा है। 

अध्ययन के प्रमुख निष्कर्ष 

  • हालिया अध्ययन लोथल से कच्छ के रण तक एक अंतर्देशीय नेटवर्क से जुड़े होने की परिकल्पना पर आधारित था। इस अंतर्देशीय जलमार्ग की पहचान साबरमती नदी की रूप में की गई। 
    • अध्ययन के अनुसार साबरमती नदी लोथल से होकर प्रवाहित होती थी, जो वर्तमान में दिशा परिवर्तित कर उस स्थान से 20 किमी. दूर प्रवाहित हो रही है।
    • यह अध्ययन साबरमती नदी के क्रमिक बदलाव को दर्शाता है।   
  • अध्ययन के अनुसार, अहमदाबाद को लोथल, नल सरोवर आर्द्रभूमि और छोटे रण से होते हुए धौलावीरा तक जोड़ने वाला एक यात्रा मार्ग भी था।
    • यह नदी एवं समुद्री मार्गों के माध्यम से व्यापार के लिए लोथल के महत्व को प्रदर्शित करता है। 
  • अध्ययन में विदेशी व्यापार के साक्ष्य मिलते है। इसके अनुसार संभवतः व्यापारी खंभात की खाड़ी के माध्यम से गुजरात से माल प्राप्त कर उन्हें मेसोपोटामिया (आधुनिक इराक) तक ले जाते थे। 
  • लोथल में डॉकयार्ड की पुष्टि करने वाली आरंभिक खोज 222 x 37 मीटर के बेसिन की खोज पर आधारित थी। हालाँकि, पुरातत्वविदों के अनुसार यह सिर्फ़ एक ‘सिंचाई टैंक’ था।
  • शोधकर्ताओं ने खास तौर पर 19वीं सदी के दो स्थलाकृतिक मानचित्रों पर ध्यान केंद्रित किया। उन्होंने इनका प्रयोग पैलियोचैनल्स- पुरानी या प्राचीन नदी चैनलों- को बारहमासी धाराओं से अलग करने और पिछले 150 वर्षों में हुए भू-आकृतिक परिवर्तनों को समझने के लिए किया।

लोथल के बारे में 

  • परिचय : यह सिंधु घाटी सभ्यता के सबसे दक्षिणी स्थलों में से एक है, जो गुजरात के भाल क्षेत्र में भोगवा नदी के किनारे स्थित है।
  • खोजकर्ता : पुरातत्वविद् शिकारीपुरा रंगनाथ राव (SR राव)
  • विशेषताएं : यह एक महत्वपूर्ण एवं संपन्न व्यापार केंद्र था, जहाँ से मोती, जवाहरात एवं कीमती गहने पश्चिम एशिया व अफ्रीका निर्यात किए जाते थे।
    • लोथल में गढ़ी एवं नगर दोनों एक ही रक्षा प्राचीर से घिरे हैं। यहाँ बने घरों के दरवाजे सड़क की ओर खुलते है। 
  • प्राप्त अवशेष : यहाँ की सर्वाधिक प्रसिद्ध उपलब्धि हड़प्पाकालीन बंदरगाह के अतिरिक्त विशिष्ट मृदभांड, उपकरण, मुहरें, बांट तथा माप एवं पाषाण उपकरण है। 
    • यहाँ के एक घर से सोने के दाने(Grains), सेलखड़ी की चार मुहरें, सींप एवं तांबे की बनी चूड़ियों और मिट्टी का लेपित जार मिला है।
    • शंख के कार्य करने वाले दस्तकारों व ताम्रकर्मियों के कारखाने भी मिले हैं।
    • यहाँ तीन युग्मित समाधि के भी उदाहरण मिलते हैं। साथ ही, स्त्री-पुरुष शवाधान के साक्ष्य भी प्राप्त हुए हैं। 
    • अन्य अवशेष : अन्य अवशेषों में धान (चावल), फ़ारस की मुहरों एवं घोड़ों की लघु मृण्मूर्तियां प्राप्त हुई हैं। इसके अतिरिक्त प्राप्त अन्य अवशेष-
      • नाव के आकार की दो मुहरें
      • लकड़ी का अन्नागार 
      • अन्न पीसने की चक्की 
      • हाथी दांत तथा पिसाई करने के लिए टुकड़ा 
      • दिशा मापक यंत्र 
      • पक्षी, बैल, खरगोश व कुत्ते की तांबे की आकृतियां
      • मोसोपोटामिया मूल की तीन बेलनाकार मुहरे
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