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हसदेव अरण्ड वन

(मुख्य परीक्षा : सामान्य अध्ययन प्रश्नप्रत्र-3 ;प्रौद्योगिकी, आर्थिक विकास, जैव विविधता, पर्यावरण, सुरक्षा तथा आपदा प्रबंधन)

संदर्भ 

हाल ही में छत्तीसगढ़ के हसदेव अरण्ड वन में कोयले के खनन के लिए पेड़ों की कटाई के विरोध में ग्रामीणों और पर्यावरण कार्यकर्ताओं द्वारा लगातार विरोध किया जा रहा है इस संदर्भ में वन अधिकारियों और ग्रामीणों  के बीच झड़प की कई घटनाएं सामने आई हैं। 

हालिया विरोध का कारण 

  • वर्ष 2021 की केंद्रीय कोयला मंत्रालय अधिसूचना के अनुसार इस क्षेत्र में 40 कोल ब्लॉक (रिजर्व के अंदर 31 और आसपास के 9) के आवंटन को रद्द कर दिया गया था। 
    • वर्तमान विवाद इस अधिसूचना को दरकिनार करते हुए सरकार द्वारा खनन गतिविधि को मंजूरी प्रदान किए जाने से उपजा है।   
  • ग्रामीणों का यह भी आरोप है कि परसा कोल ब्लॉक के लिए वन एवं पर्यावरण मंजूरी हासिल करने के लिए साल्ही और हरिहरपुर ग्रामसभाओं के फर्जी ग्रामसभा प्रस्ताव दस्तावेजों का उपयोग किया गया है। 
    • इसके अलावा, परसा कोल ब्लॉक के दूसरे चरण के लिए भूमि अधिग्रहण के लिए घाटबर्रा में एक फर्जी ग्रामसभा आयोजित की गई थी। 
  • स्थानीय लोगों के अनुसार खनन से गाँव के आस-पास के जंगल नष्ट हो जाएंगे और उनकी आजीविका प्रभावित होगी। 
    • क्योंकि स्थानीय आबादी पूरी तरह से खेती और वन उपज पर ही निर्भर है। 
  • ग्रामीणों ने  सरकार द्वारा दिए गए मुआवजे और पुनर्वास प्रस्ताव पर भी विरोध जताया है जिसके तहत उन्हें पुनर्वास के लिए वर्तमान की तुलना में छोटे घर उपलब्ध कराए गए हैं। 
  • हसदेव पेड़ कटाई विरोध प्रदर्शन का नेतृत्व छत्तीसगढ़ बचाओ आंदोलन द्वारा किया जा रहा है। 
    • इसके अलावा इस विरोध में हसदेव बचाओ संघर्ष समिति, छत्तीसगढ़ क्रांति सेना, जोहार छत्तीसगढ़ पार्टी, सर्व आदिवासी समाज की युवा सेना, आदिवासी युवा छात्र संगठन, सीपीआई (एम) और संयुक्त किसान मोर्चा जैसे अन्य संगठन भी शामिल हैं। 

हसदेव अरण्ड वन के बारे में 

  • भारतीय वानिकी अनुसंधान एवं शिक्षा परिषद (Indian Council of Forestry Research and Education : ICFRE) के अनुसार हसदेव अरण्ड वन मध्य भारत का सबसे बड़ा अखंडित वन है,जो लगभग 170,000 हेक्टेयर क्षेत्र में फैला हुआ है। 
  • भारतीय वन्यजीव संस्थान की एक रिपोर्ट के अनुसार स्थानीय समुदायों की वार्षिक आय का लगभग 60-70% हिस्सा वन आधारित संसाधनों से आता है।
    • हसदेव अरण्ड जंगल में गोंड , उरांव और अन्य जनजातियों के 10,000 लोग निवास करते हैं।
  • इस वन  को “छत्तीसगढ़ के फेफड़े” के रूप में जाना जाता है, जिसमें जैव विविधता का प्रचुर भंडार है जिसमें प्राचीन साल (शोरिया रोबस्टा) और सागौन के जंगल शामिल हैं।
  • भारतीय वन्यजीव संस्थान की रिपोर्ट के अनुसार इस वन में पाई जाने वाली नौ प्रजातियों को वन्यजीव संरक्षण अधिनियम, 1972 की अनुसूची I के तहत विशेष संरक्षण भी प्रदान किया गया  है।
    • इनमें हाथी, तेंदुआ, स्लॉथ बियर, इंडियन ग्रे वुल्फ, हनी बेजर, चार सींग वाला मृग, भारतीय पैंगोलिन, विशाल गिलहरी और जंगली धब्बेदार बिल्ली शामिल हैं।
  • यहाँ पक्षियों की 92 प्रजातियाँ और 25 विभिन्न स्तनधारी, 16 प्रकार के सर्प की प्रजातियाँ  भीम पाई जाती हैं।
  •  इसके अलावा यह हाथियों के लिए एक निवास स्थान होने के साथ-साथ बाघों के लिए एक गलियारा भी है।
  • यह जंगल हसदेव नदी के जलग्रहण क्षेत्र के रूप में भी कार्य करता है । 

खनन की दृष्टि से हसदेव का महत्व

  • वन क्षेत्र के अंतर्गत 1,879.6 वर्ग किमी. क्षेत्र में हसदेव-अरंड कोयला क्षेत्र विस्तृत है, जो छत्तीसगढ़ के उत्तरी आदिवासी क्षेत्र सरगुजा, कोरबा और सूरजपुर के तीन जिलों में फैला है।
    • अब तक 23 कोयला ब्लॉकों की पहचान की गई है, जो 437.72 वर्ग किमी. क्षेत्र में फैले हैं, जो कि इस वन क्षेत्र का लगभग 25% है।
  • आँकड़ों के अनुसार परसा कोल ब्लॉक में लगभग 350 मिलियन टन कोयला भंडार है जिसका खनन अभी होना बाकी है।
    • यह भंडार लगभग 20 वर्षों तक 4,340 मेगावाट के बिजली संयंत्रों की पूरी कोयला मांग को पूरा करने के लिए पर्याप्त है।

इसे भी जानिए

हसदेव नदी 

  • यह राज्य में बहने वाली महानदी की एक प्रमुख सहायक नदी है जो कोरिया ज़िले की कैमूर पहाड़ियों से निकलकर कोरबा, जांजगीर-चाम्पा जिलों में बहती हुई सिलाडीह (जांजगीर-चाम्पा ज़िला) के पास महानदी में मिल जाती है।
  • इसकी कुल लंबाई 176 किमी. है। इसकी सहायक नदियां तान, झींग, उतेंग, गज, चोरनई है। 
  • इस नदी पर अमृतधारा जलप्रपात है जो कोरिया ज़िले में है। 
  • यह छत्तीसगढ़ की सबसे प्रदूषित नदियों में से एक है जिसका कारण इसके किनारे बसे कोरबा तथा चाम्पा जैसे प्रमुख औद्योगिक नगर हैं। 

महानदी 

  • महानदी का उद्गम रायपुर के समीप धमतरी जिले में स्थित सिहावा नामक पर्वत श्रेणी से हुआ है।
  • प्रमुख सहायक नदियां : इसकी प्रमुख सहायक नदियों में पैरी, सोंढुर, शिवनाथ, हसदेव, अरपा, जोंक, तेल आदि हैं। 
  • प्रमुख बाँध: रुद्री, गंगरेल तथा हीराकुंड। 
  • यह नदी पूर्वी मध्यप्रदेश और उड़ीसा की सीमाओं को भी निर्धारित करती है।
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